दिग्गजों को अपने ही दे रहे टक्कर
गोपाल सिंह, देहरादून
भारतीय जनता पार्टी सत्ता पाने को तो कांग्रेस सत्ता बचाने के लिए पूरी ताकत लगा रही है, लेकिन इस बार के चुनावों में पहली बार बगावती दोनों ही दलों का खेल बिगाड़ते दिख रहे हैं। इस बार चुनाव में काफी उलटफेर की भी आशंकाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है। बहरहाल राज्य में जब भीषण बर्फबारी से शीतलहर का प्रकोप बढ़ा हुआ है वहीं दूसरी ओर सियासत की गर्मी भी काफी बढ़ गई है। बहरहाल इससे सत्ता का संघर्ष भी रोचक मोड़ लेता दिख रहा है। देवभूमि उत्तराखंड में सियासी महाभारत धीरे-धीरे अपने चरम पर पहुंच रहा है। सत्ताधारी पार्टी अपनी सत्ता बनाने की गणित में उलझी है तो विपक्षी सत्ता पाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इन सबसे अलग जिस तरह से दोनों प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों में बगावत का तूफान उठा है और अपनों ने अपनों के ही खिलाफ तलवारें खीचीं हैं उससे दोनों ही पार्टियों के सत्ता समीकरण बिगड़ सकते हैं। हालांकि सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी भाजपा दोनों ही अपने अपने बागियों को मनाने में जुटी हुई हैं, लेकिन मतदान की तिथि के अब चंद दिन बचे हैं और बागी हथियार डालने को तैयार नहीं हैं। इससे दोनों ही दलों के आलाकमान की मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं। बगावत के मोर्चे पर दोनों दलों के हालात एक जैसे हैं। बागियों ने भाजपा और कांग्रेस की लीडरशिप के पसीने छुड़ा दिए हैं। दोनों दलों में एक दर्जन से अधिक सीटों पर दावेदार रहे नाराज लोगों ने निर्दलीय ही ताल ठोक कर सीधे-सीधे अपने-अपने आलाकमान को चुनौती दे डाली है।
ये बागी मुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री पद के दावेदारों कीभी चिंता का कारण बन बैठे हैं। भाजपा में सीएम की रेस में दिख रहे कुछ दावेदार इस बगावत से जहां संकट में आते दिख रहे हैं। वहीं कांग्रेस में सीएम हरीश रावत और प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय की सीट पर निर्दलीय बागियों ने ताल ठोक कर जीत और हार के समीकरणों को उलझा दिया है। हालांकि दोनों पार्टियों के आलाकमान और राज्य व चुनाव प्रभारी डैमेज कंट्रोल के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं, लेकिन बागियों के तेवरों में कोई नरमी नहीं दिख रही है। इससे परेशान भारतीय जनता पार्टी के राज्य प्रभारी श्याम जाजू के तेवर काफी कड़े हो रहे हैं। उन्होंने बागियों को प्यार मनुहार के बाद अब कड़ी कार्रवाई का डर दिखाते हुए कहा है कि वे लोग दो दिन में पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों के पक्ष में काम करें नहीं तो उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि भाजपा का मुकाबला केवल कांग्रेस से है। निर्दलीय प्रत्याशियों से किसी भी सीट पर भाजपा का कोई मुकाबला नहीं है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की जनता परिवर्तन का मन बना चुकी है। पार्टी में स्वार्थी लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। टिकट न मिलने पर जो लोग बगावत कर रहे हैं उन्हें पार्टी में वापसी के लिए दो दिन का समय दिया गया है। यदि तय समय में उन्होंने पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार नहीं शुरू किया तो उन्हें पार्टी से निकाल दिया जाएगा। जिन प्रमुख सीटों पर भाजपा को बगावत का सामना करना पड़ रहा है उसमें सतपाल महाराज की चौबट्टाखाल सीट है जिस पर महाराज को पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और निवर्तमान विधायक तीरथ सिंह रावत का टिकट काट कर मैदान में उतारा गया है। यहां पार्टी तीरथ सिंह रावत को तो मैनेज करने में कामयाब रही है, लेकिन एक अन्य भाजपाई कविन्द्र इष्टवाल अपना नामांकन वापस लेने को तैयार नहीं हैं जिससे पार्टी परेशान है। इसी तरह भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट भी अपनी रानीखेत सीट पर बगावत की बयार झेलने को मजबूर हैं। उनकी सीट पर पार्टी के बागी प्रमोद नैनवाल खुद और पत्नी हिमानी नैनवाल का नामांकन भी करा चुके हैं। भट्ट अभी तक नैनवाल को समझाने में कामयाब नहीं हुए हैं। यह उनकी चिंता का सबब बना हुआ है। हालांकि अमित शाह के करीबी और झारखंड के प्रभारी त्रिवेन्द्र रावत अपनी डोईवाला सीट पर बागियों को मनाने में काफी हद तक सफल रहे हैं लेकिन उनको अपनी सीट पर बगावत का कम और भितरघात की शंका ज्यादा है। इसलिए वे अपनी रणनीतियों को इसी आधार पर तैयार कर रहे हैं। इसी तरह एक अन्य भाजपा नेता और पूर्व मंत्री पिथौरागढ़ सीट पर प्रकाश पंत भी भितरघात की आशंका से सहमे हुए हैं। हालांकि उनके खिलाफ कोई बागी तो नहीं उतरा लेकिन यहां से दावेदार रहे पार्टी के पूर्व प्रदेश महामंत्री सुरेश जोशी समर्थकों के तेवर उनको लेकर थोड़ा सख्त हैं, जिससे प्रकाश पंत घबराए हुए हैं। उधर सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी में भी हालत कुछ जुदा नहीं है।
मुख्यमंत्री हरीश रावत और पीसीसी चीफ किशोर उपाध्याय के खिलाफ चुनाव मैदान में ताल ठोक चुके नाराज कांग्रेसियों को मनाना पार्टी के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहा है। खास कर मुख्यमंत्री के चुनाव क्षेत्र किच्छा में शिल्पी अरोड़ा, पीसीसी चीफ की सीट सहसपुर में आर्येन्द्र शर्मा और धनोल्टी में कैबिनेट मंत्री प्रीतम पंवार की सीट पर ताल ठोक रहे मनमोहन सिंह मल्ल ने पार्टी की हृदयगति को बढ़ा दिया है। इन सीटों पर डैमेज कंट्रोल के कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व के साथ छह केन्द्रीय पर्यवेक्षक भी जुटे हैं लेकिन अभी अपेक्षित सफलता मिलती नहीं दिख रही है। टिकट न मिलने से नाराज कांग्रेस की प्रदेश महामंत्री शिल्पी अरोड़ा पार्टी से इस्तीफा देकर मुख्यमंत्री हरीश रावत के खिलाफ किच्छा सीट पर चुनाव मैदान में उतर गई हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री पर बहुत आक्रामक आक्रमण किया है। उन पर कार्यकर्ताओं के शोषण और उपेक्षा का बड़ा आरोप लगाया है। उधर किशोर उपाध्याय की सीट सहसपुर पर बगावत करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी के ओएसडी रहे वरिष्ठ कांग्रेसी आर्येन्द्र शर्मा को मनाने के लिए मुख्यमंत्री हरीश रावत, हिमाचल के एक कैबिनेट मंत्री और खुद किशोर उपाध्याय ने जी तोड़ मेहनत की लेकिन वे चुनाव लड़ने से कम पर कोई बात सुनने से इनकार कर चुके हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो अगर आर्येन्द्र नहीं माने तो किशोर की हार तय है। इसी तरह धनोल्टी सीट पर मसूरी के नगर पालिका अध्यक्ष मनमोहन सिंह मल्ल ने कांग्रेस के टिकट पर पर्चा दाखिल किया था लेकिन बाद में कांग्रेस आलाकमान ने उस सीट पर निर्दलीय प्रीतम सिंह पंवार जो हरीश सरकार में कैबिनेट मंत्री भी हैं, को समर्थन दे दिया और मल्ल को मैदान से हटने का फरमान सुनाया जिसे मानने को मल्ल कतई तैयार नहीं हैं।
अगर मल्ल नहीं माने तो ये सीट भी कांग्रेस के हाथ से जानी तय है। इसी तरह गदरपुर से कांग्रेस के टिकट दावेदार रहे जरनैल सिंह काली ने भी टिकट न मिलने पर बगावत का झंडा उठाया है। उन्होंने इसी सीट पर बसपा से ताल ठोकी है जिससे कांग्रेस प्रत्याशी राजेन्द्र पाल सिंह की मुश्किलें बढ़ गई हैं। इसी तरह राजधनी की रायपुर सीट पर कांग्रेस नेता रही किन्नर रजनी रावत ने निर्दलीय दावेदारी की है जो कांग्रेस प्रत्याशी प्रभुलाल बहुगुणा के गले की हड्डी बन गई हैं। हालांकि कांग्रेस की ओर से रजनी रावत को राज्य सभा टिकट का भी आश्वासन दिया, लेकिन उन्होंने यह ऑफर ठुकरा दिया। दोनों दलों में बागियों की सूची देखें तो भाजपा में चौबट्टाखाल में सतपाल महाराज के सामने पार्टी के कविन्द्र इष्टवाल ने बगावत का बिगुल फूंका है। रानीखेत में प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट के खिलाफ पार्टी के प्रमोद नैनवाल, जसपुर में शैलेन्द्र मोहन सिंघल के खिलाफ पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष विनय रोहिल्ला, केदारनाथ में शैलारानी रावत के खिलाफ पूर्व विधायक आशा नौटियाल, नरेन्द्र नगर में सुबोध उनियाल के खिलाफ पूर्व विधायक ओमगोपाल रावत, कालाढूंगी में बंशीधर के खिलाफ हरेन्द्र सिंह, काशीपुर में हरभजन सिंह चीमा के खिलाफ राजीव अग्रवाल, गंगोत्री में गोपाल रावत के खिलाफ सूरतराम नौटियाल जैसे पार्टी के कैडर नेताओं ने मोर्चा खोल रखा है। इसी तरह कांग्रेस में सहसपुर सीट पर पीसीसी चीफ किशोर उपाध्याय के खिलाफ आर्येन्द्र शर्मा, किच्छा में मुख्यमंत्री हरीश रावत के खिलाफ शिल्पी अरोड़ा, धनोल्टी में प्रीतम सिंह पंवार के खिलाफ मनमोहन सिंह मल्ल, देवप्रयाग में मंत्री प्रसाद नैथानी के खिलाफ पूर्व मंत्री शूरवीर सिंह सजवाण, यमकेश्वर में शैलेन्द्र सिंह रावत के खिलाफ रेनू बिष्ट, ज्वालापुर में शीशपाल सिंह के खिलाफ बृजरानी, बागेश्वर में बालकृष्ण के खिलाफ रंजीत दास और रुद्रप्रयाग में लक्ष्मी राणा के खिलाफ प्रदीप थपलियाल ने मोर्चा खोला हुआ है। लब्बोलुआब यह है कि यदि इन बागियों को दोनों पार्टियों ने जल्द ही नहीं मैनेज किया तो दोनों दलों की सत्ता हासिल करने की रणनीति फेल हो सकती है। इसके साथ ही उत्तराखंड विधानसभा चुनाव का परिणाम भी अप्रत्याशित होगा।
उधर भाजपा सत्ता में आई भी तो उसने जिस हिसाब से बागियों को टिकट बांटे हैं वे सत्ता में आने के बाद भी अपनी पसंद का सीएम बना सकेगी ऐसा नहीं कहा जा सकता है। यानि सत्ता होते हुए भी बागी भाजपा को सत्ता से बाहर कर सकते है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि भाजपा खेमे में चार चार पूर्व सीएम होने के बावजूद भाजपा सीएम का चेहरा तक नहीं दे पाई है, जबकि कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए 14 बागियों के भरोसे भाजपा सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रही है। बागी ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि क्या सीएम के चेहरे के बिना चुनावी समर में उतरी भाजपा की नैया कांग्रेस के बागी पार लगा पाएंगे? चुनाव परिणाम यदि भाजपा के पक्ष में आते है तो चुनाव से पहले की बगवात के बाद भाजपा को एक और बगावत का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा। यह बगावत कांग्रेस के बागी सीएम की कुर्सी को लेकर कर सकते हैं।
उत्तराखंड में भाजपा की नैया कांग्रेस के 14 बागियों के भरोसे है, जिन पर दांव लगाने में भाजपा ने अपने घर में बगावत के सुर भी सुन लिए हैं। फिर भी भाजपा अपने किसी अनुभवी नेता को आगे करने में हिचकिचाती रही है। हालत यह है कि भितरघात के डर से भाजपा ने किसी पूर्व सीएम को टिकट तक नहीं दिया है। उत्तराखंड का चुनावी दंगल अपने अहम पड़ाव पर पहुंच चुका है। प्रदेश में नामांकन का दौर समाप्त हो चुका है। 15 फरवरी को मतदान होना है। चुनाव प्रचार के लिए एक एक दिन अहम होता जा रहा है। कांग्रेस के पास सीएम का चेहरा तो है, लेकिन कांग्रेस के पास उत्तराखंड में हरीश रावत के अलावा कोई दूसरा नेता बचा भी तो नहीं है। इसलिए कांग्रेस की सरकार बनती है तो हरीश रावत ही मुख्यमंत्री होंगे। अगर उत्तराखंड ने भाजपा को बहुमत दिया तो सीएम कौन होगा, इस सवाल का भाजपा के पास फिलहाल कोई जवाब नहीं है। उत्तराखंड की राजनीति में सरकार का नेतृत्व करने वाले सभी पूर्व मुख्यमंत्री इस समय भाजपा खेमे में हैं।
उत्तराखंड की सियासत में इस वक्त बेहद दिलचस्प संगम बना है। पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी, बीसी खंडूरी, रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा के अलावा अब एनडी तिवारी भी भाजपा को आशीर्वाद दे चुके हैं। भगत सिंह कोश्यारी राज्य गठन के बाद भाजपा की अंतरिम सरकार में दूसरे मुख्यमंत्री बने थे, दूसरी विधानसभा के कार्यकाल में बीसी खंडूरी और रमेश पोखरियाल निशंक मुख्यमंत्री बने, कांग्रेस छोड़कर पूर्व सीएम विजय बहुगुणा तो पहले ही कमल का दामन थाम चुके हैं, अब उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री रह चुके नारायण दत्त तिवारी भी बीजेपी खेमे में खड़े दिखाई दे रहे हैं।
मौजूदा विधानसभा के गठन के समय विजय बहुगुणा कांग्रेस सरकार के मुखिया बने थे, लेकिन अपनी कुर्सी गंवाने का बदला लेने के लिए बहुगुणा ने पहले हरीश रावत सरकार के खिलाफ बगावत की और फिर भाजपा में शामिल हो गए थे। भाजपा ने तमाम विरोध के बावजूद कांग्रेस के 14 बागियों को टिकट दिया है। कोटद्वार से हरक सिंह रावत, चौबट्टाखाल से सतपाल महाराज, केदारनाथ से शैला रानी रावत, यमुनोत्री से केदार सिंह रावत, नरेंद्रनगर से सुबोध उनियाल, खानपुर से कुंवर प्रणव चैंपियन, रुड़की से प्रदीप बत्रा, भगवानपुर से सुबोध राकेश, रायपुर से उमेश शर्मा, जसपुर से शैलेंद्र मोहन सिंघल, सितारगंज से विजय बहुगुणा के पुत्र सौरभ बहुगुणा, बाजपुर से यशपाल आर्या, नैनीताल से यशपाल आर्य के पुत्र संजीव आर्य, सोमेश्वर से रेखा आर्य इस बार भाजपा की प्रत्याशी हैं। खास बात यह है कि कांग्रेस का दलित चेहरा रहे यशपाल आर्य बगावत के समय हरीश रावत के साथ खड़े रहे, लेकिन चुनाव से पहले यशपाल ने अपने बेटे संजीव आर्य को टिकट की गारंटी मिलने पर हाथ का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया।
उत्तराखंड में विधानसभा की 70 सीटों में से सरकार बनाने के लिए भाजपा 36 सीटों पर जीतना है, यदि कांग्रेस से आए 14 बागी जीत कर आते हैं तो सत्ता की चाभी उनके हाथ में होगी। बागी जिसे चाहेंगे सीएम की कुर्सी पर बैठाएंगे। भाजपा शीर्ष नेतृत्व केवल सत्ता का सपना देख रहा है, लेकिन बागी जो कांग्रेस के नहीं हुए वे भाजपा को भी मुश्किल में डाल सकते हैं। अब यह भाजपा के हाईकमान को सोचना होगा कि उसे सत्ता चाहिए या फिर अपना पसंदीदा सीएम। बहरहाल उत्तराखंड में सत्ता का संग्राम काफी रोचक हो गया है।