राज्य सरकार के निगमों और सार्वजनिक उपक्रमों में तैनात करीब 60 हजार कर्मचारियों के सातवें वेतन में घाटे का पेंच फंस गया है। नई पगार के बारे में निगमों के निदेशक मंडलों को फैसला लेना है। मगर गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहे निगमों पर नए वेतनमान का अतिरिक्त बोझ लादने को लेकर इनका प्रबंधन पसोपेश की स्थिति में है। सरकार की नजरें इनायत न होने और कुप्रबंधन के चलते कई निगमों और उपक्रमों में नए वेतन की तो छोड़िये कायदे से पगार तक नहीं मिल रही है।
कर्मचारियों का धैर्य टूट रहा है और वे आंदोलन के मूड में नजर आ रहे हैं। शासन स्तर पर भी निगमों की माली हालत सुधारने के कई बार दावे हुए, मगर हालात बद से बदतर हो चुकी है। प्रबंधकीय खामियों की वजह से हिल्ट्रान सरीखी संस्था बंद कर दी गई। प्रदेश के सबसे प्रतिष्ठित परिवहन निगम की माली हालत खराब है। यहां कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़े हैं। निगम 240 करोड़ रुपये के घाटे में है।
यहां फंस रहा है पेंच
निगम को हर महीने सिर्फ वेतन खर्च के लिए करीब 14 करोड़ रुपये चाहिए। प्रबंधन के हाल ये हैं कि 200 से ज्यादा नई बसें खरीदने के बाद निगम प्रबंधन चालक व परिचालकों का इंतजाम कर रहा है। पिछले करीब तीन महीने से नई और पुरानी बसें खड़ी हैं, जिससे करीब नौ करोड़ रुपये महीना का घाटा हो रहा है।
यही कहानी पेयजल निगम की है, जहां पिछले तीन महीने से कर्मचारियों को पगार नहीं मिली है। निगम 30 करोड़ के घाटे में है। करीब 200 करोड़ रुपये की एफडी के ब्याज से वेतन जुटाने वाले वन विकास निगम की माली हालत भी खासी पतली है। वहां कर्मचारियों को वेतन पर घाटे का पेंच फंस रहा है।
गढ़वाल मंडल विकास निगम में अलग-अलग श्रेणियों के कर्मचारियों को कई-कई महीनों से वेतन नहीं मिल रहा है। 16 जून 2013 की आपदा के बाद निगम उबर नहीं पाया है। निकायों, जिला पंचायतों और अन्य संस्थाओं की आर्थिक हालत भी बेहद खस्ता है।
नए वेतन में घाटे का पेंच
गंभीर वित्तीय संकट की वजह से निगमों और सार्वजनिक उपक्रमों के प्रबंधन सातवें वेतनमान को लेकर फैसला लेने से हिचक रहे हैं। हालांकि निगमों में तैनात कर्मचारियों ने शासन पर लगातार दबाव बना रखा है। मगर नए वेतन की राह उन्हीं निगमों और उपक्रमों में आसान होगी जो घाटे से बाहर हैं और कमाऊ पूत माने जाते हैं। इनमें सिडकुल, पावर कारपोरेशन, पावर ट्रांसमिशन, जल विद्युत निगम, सैनिक कल्याण निगम प्रमुख हैं।
निगमों व सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारियों को सातवें वेतन पर फैसला उनके निदेशक मंडलों को लेना है। वे संस्तुति करके प्रस्ताव औद्योगिक विकास निगम को भेजेंगे और इस पर शासन निर्णय लेगा।
– अमित सिंह नेगी, सचिव वित्त
निगमों की कमजोर माली हालत के लिए कुप्रबंधन जिम्मेदार है। शासन के उदासीन रुख और प्रबंधन की मनमानी के चलते निगमों व उपक्रमों की हालत सुधारने के गंभीर प्रयास नहीं हो रहे हैं। इस दिशा में गंभीर पहल करने की आवश्यकता है।
– बीएस रावत, महासचिव, राज्य निगम कर्मचारी-अधिकारी महासंघ
कर्मचारियों का धैर्य जवाब देने लगा है। दो महीने से परिवहन निगम में पगार लंबित है। कतिपय निगमों की भी यही स्थिति है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी से आंदोलन की अनुमति मांगी गई है। निदेशक मंडलों को बैठक करके सातवें वेतन की तत्काल संस्तुति करनी चाहिए।
– रवि पचौरी, महासचिव, राज्य निगम कर्मचारी महासंघ