राज्य
35 हजार आउटसोर्स कर्मियों को झटका, नहीं हो पाएंगे रेग्युलर, बैकफुट पर सरकार
शिमला.आउटसोर्स कर्मचारियों को पाॅलिसी बनाने को लेकर राज्य सरकार पूरी तरह बैकफुट पर आ चुकी है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने बजट भाषण में एक महीने के भीतर इन कर्मचारियों के लिए पॉलिसी बनाने की घोषणा की थी। कार्मिक और वित्त विभाग की ओर से दिए गए तर्क के बीच ये पॉलिसी फंसकर रह गई है।आगे सरकार ऐसे करेंगी इन कर्मचारियों के हितों की सुरक्षा…
कार्मिक विभाग ने दो रोज पूर्व वित्त विभाग को इस मामले की फाइल भेजी है। इसमें कहा गया है कि आउटसोर्स कर्मचारियों की नियुक्तियां भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के तहत नहीं हुई है। कंपनी के तहत इन्हें तैनात किया गया है। ऐसे में सरकार केवल इनके हितों को सुरक्षित रख सकती है। यानि इन्हें समय पर वेतन मिले, प्रोविडेंट फंड प्रॉपर तरीके से कटे, काम करने का समय निर्धारित हो, छुट्टियां नियमों के तहत मिले और नियमों के तहत वेतन वृद्धि हो।
पॉलिसी बनाना नियमों के विपरीत है, क्योंकि इसके लिए न तो रोस्टर फॉलो किया गया है और न ही प्रॉपर तरीके से आवेदन आमंत्रित किए गए हैं। अफसरों की इस नोटिंग से आउटसोर्स कर्मियों का रेग्युलर होना मुशिकल नजर आ रहा है। वित्त विभाग पहले ही इस मामले में अपनी राय दे चुका है। उसमें कहा गया था कि इस तरह से पालिसी बनाना संविधान की धारा-309 की उल्लंघना होगी।
कार्मिक और वित्त विभाग के अधिकारियों की नोटिंग से साफ है कि इन्हें रेग्युलर करना मुश्किल है, लेकिन नौकरी न जाए इसकी गारंटी सरकार लेगी।
अब दूसरी बार कैबिनेट में जाएगा मामला
कार्मिक विभाग के इस कमेंट के बाद वित्त विभाग इस मामले को दोबारा कैबिनेट में ले जाएगा। अधिकारियों का तर्क है कि यदि पॉलिसी बना दी जाती है तो इसे कोर्ट में चुनौती मिल सकती है। ऐसे में पहले ही सारी स्थिति स्पष्ट करना उचित है। हालांकि ये मामला पहले भी कैबिनेट की बैठक में लाया जा चुका है, लेकिन इसमें विभागों की आेर से लिखे गए कमेंट के बाद मामले को विड्रा कर लिया गया था। इसके बाद फिर से इस मसले पर कार्रवाई की जा रही है। अब कब तक यह मामला सिरे चढ़ता है, यह देखने लायक होगा।
ये सबसे बड़ी बाधा
इन भर्तियों में कितने पद किस वर्ग के लिए आरक्षित किए जाने हैं। इसका भी ध्यान नहीं रखा गया है। किसी भी सरकारी भर्ती में एससी, एसटी, विकलांग से लेकर हर वर्ग के प्रार्थियों के लिए पद आरक्षित करना अनिवार्य होता है। आउटसोर्स की भर्ती सरकार नहीं बल्कि कंपनी के माध्यम से की गई है। ऐसे में कंपनी की भर्ती में रोस्टर लागू नहीं होता है, यह भी पाॅलिसी बनाने में सबसे बड़ी दिक्कत है।
इन भर्तियों में कितने पद किस वर्ग के लिए आरक्षित किए जाने हैं। इसका भी ध्यान नहीं रखा गया है। किसी भी सरकारी भर्ती में एससी, एसटी, विकलांग से लेकर हर वर्ग के प्रार्थियों के लिए पद आरक्षित करना अनिवार्य होता है। आउटसोर्स की भर्ती सरकार नहीं बल्कि कंपनी के माध्यम से की गई है। ऐसे में कंपनी की भर्ती में रोस्टर लागू नहीं होता है, यह भी पाॅलिसी बनाने में सबसे बड़ी दिक्कत है।
35 हजार से ज्यादा है आउटसोर्स कर्मचारी
हिमाचल के विभिन्न विभागों में तैनात आउटसोर्स कर्मचारियों की संख्या 35 हजार से ज्यादा है। इनसे कंप्यूटर शिक्षकों से लेकर विभागों में तैनात डाटा एंट्री ऑपेरटर तक शामिल हैं। इनकी तैनाती राज्य सरकार ने कंपनियों के माध्यम से विभागों में करवा रखी है। कंपनी की आेर से ही इन्हें वेतन दिया जाता है। आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए राहत सिर्फ एक ही जगह मिल सकती है। पदों को बैकलाॅग को दोबारा से भरने का हवाला दे चुके हैं, लेकिन क्या ऐसा हो सकेगा, यह देखने लायक होगा।
हिमाचल के विभिन्न विभागों में तैनात आउटसोर्स कर्मचारियों की संख्या 35 हजार से ज्यादा है। इनसे कंप्यूटर शिक्षकों से लेकर विभागों में तैनात डाटा एंट्री ऑपेरटर तक शामिल हैं। इनकी तैनाती राज्य सरकार ने कंपनियों के माध्यम से विभागों में करवा रखी है। कंपनी की आेर से ही इन्हें वेतन दिया जाता है। आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए राहत सिर्फ एक ही जगह मिल सकती है। पदों को बैकलाॅग को दोबारा से भरने का हवाला दे चुके हैं, लेकिन क्या ऐसा हो सकेगा, यह देखने लायक होगा।
इक्वल ऑपरच्यूनिटीज का दिया तर्क
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से पीटीए शिक्षकों को लेकर जारी आदेशों का हवाला भी दिया है। इस आदेशों में साफ है कि राज्य सरकार भर्ती कर सकती है। इसमें किसी तरह की कोई रोक नहीं हैं, लेकिन सरकार को भर्ती के लिए पूरे नियमों आैर प्रोसेस का पालन करना होगा।