State News- राज्यदस्तक-विशेषशख्सियत

देश को पूर्वोत्तर की पहचान दिलाने वाले संगमा को सलाम

4 मार्च को पहली पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि

संजीव कलिता

देश के राजनीतिक पटल पर पूर्वोत्तर क्षेत्र से चमकने वाले धुरंधर राजनीतिज्ञों की चर्चा हो तो पूर्ण अगिटोक संगमा अर्थात पीए संगमा का नाम सबसे पहले आता है। अपने मिलनसार स्वभाव के लिए पहचाने जाने वाले संगमा राष्ट्रीय प्रेक्षापट में उत्तर-पूर्वी भारत के सबसे बड़े नेता के रूप में जाने जाते थे। दो साल (1996-98) के लिए लोकसभा के अध्यक्ष रह चुके संगमा बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे तथा इस कार्यावधि के दौरान उन्होंने अपने व्यक्तित्व की अमिट छाप छोड़ी। भोला-भाला चेहरा, हार्दिक हंसी, त्वरित बुद्धि, असीम उत्साह, त्रुटिहीन आचरण और जमीनी ज्ञान के साथ सदन की कार्यवाही के सुचारू संचालन के लिए पूरे देश ने उनकी तारीफ की थी। वहीं, मीडिया ने भी लोकसभा अध्यक्ष के रूप में संगमा के कार्यकाल की सराहना की थी। सन 2016 के 4 मार्च को नई दिल्ली प्रवास के दौरान 68 वर्षीय इस नेता को अचानक दिल का दौरा पड़ा और वे चल बसे। उनके निधन को एक साल होने को है। ऐसे में पूर्वोत्तर ही नहीं बल्कि देश के राजनीतिक जानकार एवं उनको चाहनेवाले नम आंखों से उनकी याद ही नहीं कर रहे हैं बल्कि पिछले एक साल के दौरान उनकी कमी को काफी गहराई के साथ महसूस भी किया जा रहा है। छोटे कद के पर विरल व्यक्तित्व के धनी जनजातीय नेता संगमा का जन्म 1 सितंबर 1947 को पश्चिम गारो हिल्स, मेघालय के चपाथी ग्राम में हुआ था। शिलांग से स्नातक डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्होंने असम के डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय से अंतर्राष्ट्रीय संबंध विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने एलएलबी की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। सन 1973 में पी.ए. संगमा प्रदेश युवा कांग्रेस समिति के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। कुछ ही समय बाद वह इस समिति के महासचिव नियुक्त हुए। सन 1975 से 1980 तक संगमा प्रदेश कांग्रेस समिति के महासचिव रहे। सन1977 के लोकसभा चुनावों में संगमा तुरा लोकसभा क्षेत्र से जीत दर्ज करने के बाद पहली बार सांसद बने। चौदहवीं लोकसभा चुनावों तक वह इस पद पर लगातार जीतते रहे। हालांकि नौवीं लोकसभा में वह जीत दर्ज करने में असफल रहे थे।
वर्ष 1980-1988 तक संगमा केंद्र सरकार के तहत विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे। वर्ष 1988 से 1991 तक वे मेघालय के मुख्यमंत्री भी रहे। वर्ष 1999 में कांग्रेस से निष्कासित होने के बाद शरद पवार और तारिक अनवर जैसे राजनीतिक दिग्गजों के साथ मिलकर संगमा ने नेशनल कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की स्थापना की। शरद पवार के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) की अध्यक्ष सोनिया गांधी से नजदीकी बढ़ जाने के कारण पी.ए. संगमा ने अपनी पार्टी का ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी में विलय कर नेशनलिस्ट तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की। 10 अक्टूबर 2005 को अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस के सदस्य के तौर पर लोकसभा पद से इस्तीफा देने के बाद संगमा फरवरी 2006 में नेशनल कांग्रेस पार्टी के प्रतिनिधि के तौर पर संसद पहुंचे। 2008 के मेघालय विधानसभा चुनावों में भाग लेने के लिए उन्होंने चौदहवीं लोकसभा से इस्तीफा दे दिया।
राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए शरद पवार के विरोध के बाद संगमा ने 20 जून 2012 को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) से इस्तीफा दे दिया। अन्नाद्रमुक और बीजद ने संगमा की उम्मीदवारी का प्रस्ताव किया था जिसे भाजपा ने भी समर्थन दे दिया और वे राष्ट्रपति पद के लिए प्रणव मुखर्जी के खिलाफ चुनाव मैदान में कूद पड़े। मुखर्जी को 7,13,424 वोट मिले जबकि संगमा के पक्ष में 3,17,032 मत सुरक्षित पाए गए। 22 जुलाई 2012 को चुनाव परिणाम घोषित हुए और संगमा प्रणब मुखर्जी से हार गए। इसके बाद 5 जनवरी 2013 को संगमा ने राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) का गठन किया। सन 2013 को हुए मेघालय विधानसभा चुनाव में एनपीपी को दो सीटें मिली। संगमा मेघालय विधानसभा के सदस्य बन गए। इसके बाद 15वीं लोकसभा के लिए उनकी बेटी अगाथा तुरा क्षेत्र से निर्वाचित हुईं और पूर्व की यूपीए सरकार में राज्य के सबसे कम उम्र की मंत्री भी बनीं। पेशेवर कारणों से संगमा जी से कई बार मिलने का मौका मिला था। कभी किसी प्रेस कांफ्रेंस के दौरान तो कभी उनके गुवाहाटी प्रवास के दौरान। वे पूर्वोत्तर के विभिन्न मुद्दों पर अपना नजरिया रखते एवं समस्याओं के हल का रास्ता बताते थे बिना लाग-लपेट के।
जो कुछ भी कहते, डंके की चोट पर कहा करते थे। निर्भीकता, स्पष्टवादिता उनकी कथनी और करनी में साफ झलकती थी। सन 2005 में गुवाहाटी के भांगागढ़ में उनका फ्लैट बनकर जब तैयार हो चुका था तब उन्होंने एक शाम पत्रकारों को खाने पर बुलाया था। संगमा जी के साथ बिताए उस शाम की यादें अब भी मेरे जेहन में ताजा हैं। संगमा जी को नजदीक से देखने, जानने, सुनने व समझने के बाद एक पत्रकार होने के नाते यही कहूंगा कि ऐसे स्पष्टवादी राजनीतिज्ञ अब बहुत कम ही देखने को मिलते हैं।
संगमा जी से अंतिम भेंट सन 2016 के दिसंबर महीने में दिल्ली में हुई थी। लोकसभा के विभिन्न संसदीय संस्थाओं, प्रक्रियाओं और इसके विभिन्न विषयों में व्यवस्थित अध्ययन और प्रशिक्षण के लिए संसदीय अध्ययन एवं प्रशिक्षण ब्यूरो (बीपीएसटी) के आमंत्रण पर पूर्वोत्तर से बुलाए गए पत्रकारों की टोली में हम भी शामिल थे। असम विधानसभा सचिवालय द्वारा गुवाहाटी के कुछ पत्रकारों को उक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने के लिए भेजा गया था। उक्त कार्यक्रम में संसदीय व्यवहार और प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं पर विचार विमर्श करने के लिए विशेषज्ञ व्यक्ति (रिसोर्स पर्सन) के रूप में कैबिनेट मंत्रियों, अनुभवी संसदीय अधिकारियों और अन्य विशेषज्ञों सहित प्रमुख सांसदों को भी आमंत्रित किया जाता है। उसी कार्यक्रम में संगमा जी को रिसोर्स पर्सन के लिए बुलाया गया था। इसी बहाने संसद भवन के पुस्तकालय में असम सहित पूर्वोत्तर के मेघालय, त्रिपुरा आदि के पत्रकारों को काफी करीब से उनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
कार्यक्रम में भाग लेने के दौरान संगमा जी ने कहा था-मैं औपचारिक तौर पर बातें नहीं करूंगा। हुआ भी वैसा ही। उन्होंने बीपीएसटी में भाग लेने वाले सभी पत्रकारों के विभिन्न सवालों का जवाब दिया। इस दौरान उन्हें लोकसभा में अध्यक्ष बने रहने के दौरान हुए अनुभवों के बारे में कुछ बातें साझा करने का आग्रह किया गया। संगमा जी ने एक किस्सा सुनाया। एक सांसद थे जो अक्सर सदन की कार्यवाहियों को बाधित करते रहते थे। एक दिन उन्होंने उक्त सांसद को अपने दफ्तर में बुलाया और कहा-आप कभी विदेश गए हैं। जवाब आया-नहीं। फिर पूछा-जाना चाहते हैं? सांसद ने जवाब हां में दिया तो संगमा ने कहा-बस एक काम आपको करना होगा। सदन में आप मुद्दों को लेकर अनावश्यक हो-हल्ला नहीं मचाएंगे। अगले दिन से वह सांसद सदन में बिलकुल चुप रहने लगे। संगमा ने बीपीएसटी कार्यक्रम में भाग लेनेवाले हम सभी पत्रकारों को बताया कि वे नियम और कायदों के अलावा सदन को चलाने के लिए अपने दिमाग का अधिक इस्तेमाल करते थे और सभी सदस्यों के साथ मेलजोल बनाए रखते थे। बाद में सदन की किसी कमेटी में उक्त सांसद को सदस्य बनाकर विदेश भेज दिया था। यह थी लोकसभा अध्यक्ष के रूप में सदन को सुचारु ढंग से चलाने के लिए संगमा जी की कार्यकुशलता की मिसाल। संगमा जी आज हमारे बीच नहीं हैं। 4 मार्च को उनकी पहली पुण्यतिथि के मौके पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजली ज्ञापन करते हैं। उम्मीद है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र से संगमा जी जैसे महान राजनीतिज्ञ हम देश को दे सकें। राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय इस क्षेत्र के नई पीढ़ी को संगमा जी के आदर्शों को अपनाने की निहायत ही जरूरत है।

Related Articles

Back to top button