वर्तमान समय में भी चल रहा है समुद्र मंथन – पं. मेहता
रायपुर। आज संवदेनशीलता समाप्त हो गई है,परिवारों से संवेदनशीलता चली गई तो सुख व शांति भी चली गई। भगवान श्रीकृष्ण व श्रीराम के अवतार जीवन के दो आयाम और मूल्य हैं जो मनुष्य को सत्त अपनी लीलाओं व चरित्र से आगाह करते रहते हैं कि जीवन कैसा होना चाहिये कौन सा कार्य उसके लिये उचित हैं और कौन सा अनुचित। फिर भी मनुष्य गहराई को आत्मसात करने को तैयार नहीं है। समुद्र मंथन तो एक बार हुआ लेकिन संसार में मनुष्य के जीवन में यह मंथन नित प्रति हो रहा है जो उसके अशांति का कारण बना हुआ है। समता कालोनी भीमसेन सभा भवन में चल रहे श्रीमद भागवत ज्ञानयज्ञ सप्ताह के चौथे दिन समुद्र मंथन गजेन्द्र मोक्ष का प्रसंग आने पर कथा वाचक पंडित विजय शंकर मेहता ने ये बातें श्रद्धालुजनों को बताई। जब तक मनुष्य में वासनाएं हैं तब तक वह परमात्मा के साथ नहीं जुड़ सकता। परमात्मा से जुडने के लिये उन्हें अपनी वासनाओं पर काबू पाना होगा। भगवान का सत्त स्मरण करते हुए,सब कुछ ईश्वर का है ऐसा मानकर,स्व-वचन का पालन और शरणागति इन चारों सूत्रों को अपने जीवन में उतारने से ही सांसारिक वासनाओं पर नियंत्रण पाय जा सकता है। उन्होंने छोटे-छोटे दृष्टांत के माध्यम से इन वासनाओं पर नियंत्रण कैसे किया जाये इसके बारे में श्रद्धालुजनों को समझाया। उन्होंने कहा कि आनंद यदि कथाओं में होता तो आज देश में इतनी कथाएं हो रही हैं उसके बाद भी देश में शांति नहीं है और लोग अशांत है। शांति केवल परमात्मा के आने से ही मिल सकती है और उसके बाद जो आनंद आता है वह स्थाई होता है। पंडित विजय शंकर मेहता ने कहा कि आज परिवार में जिस प्रकार से कलह हो रही है उसका मुख्य कारण है परिवार से संवेदशन शीलता का समाप्त होना। यह विडंबना ही है कि आज लोग मंदिरों में जाकर पत्थर की मूर्ति को तो पूज रहे हैं लेकिन घर के बड़े बुजुर्गों की वे अव्हेलना कर रहे हैं। आज परिवार के केन्द्र में माता-पिता नहीं है,गुरू नहीं है कुछ ही परिवार ऐसे हैं जहां माता-पिता का सम्मान हो रहा है और गुरू परंपरा चल रही है। लेकिन आने वाली पीढ़ी कैसी होगी यह कोई नही बता सकता। मन जब अशांत हो और दुखी हो जाये तब संसार के लोगों के सामने रोने के बजाये गुरू के चरणों में जाना चाहिये और जितने भी दुख हैं उनसे ही कहने चाहिये क्योंकि गुरू के पास ही शक्ति और दुख और समस्याओं का समाधान है। जिस प्रकार से राजा दशरथ संतान न होने पर गुरू वशिष्ठ के पास गए और उन्हें अपना पूरा दुख सुनाया। उन्होंने कहा कि जीवन में गुरू का होना अत्यंत आवश्यक है और यदि गुरू नहीं मिल रहा हो तो हनुमान जी को ही अपना गुरू मानकर हनुमान चालीसा का पाठ करें तो जीवन में कभी संकट आयेगा भी तो वह दूर हो जायेगा। समुद्र मंथन के प्रसंग पर पंडित जी ने कहा कि लक्ष्मी केवल पुरूषार्थ से ही प्राप्त होती है पुण्यात्मा से प्राप्त हुई लक्ष्मी को भी सम्हालने के लिये पुरूषार्थ की आवश्यकता होती है लक्ष्मी के आने पर उसका सदपुयोग करना चाहिये क्योंकि लक्ष्मी मां भी और बेटी भी है, जिस प्रकार से मां और बेटी को हम सम्मान के नजरों से देखते हैं और उन्हें हर गलत कार्यों से बचाते हैं उसी प्रकार इस संसार के अन्य स्त्रीयों को उसी नजर से देखो । लक्ष्मी का उपयोग सच्चे और अच्छे कार्यों में करना चाहिये लक्ष्मी का दुरूपयोग होने से लक्ष्मी वहां रूकती नहीं है। कृष्ण जन्म पर थिरके भक्तजन-कथा प्रसंग के दौरान आज भगवान श्री कृष्ण का जन्म बड़ी धूमधाम के साथ मनाया गया। पूरा कथा स्थल भगवान श्रीकृष्ण के जन्मउत्सव से सराबोर हो गया और और श्रद्धालुजन स्वंय को उनके भजन कीर्तन पर थिरकने से नहीं रोक पाये। कथा स्थल पर आकर्षक सजावट के साथ झांकियों के माध्यम से भी प्रस्तुति दी गई।