उज्जैन: पंचकल्याणक का छठा एवं अंतिम दिन श्री महावीर दिगंबर जैन मंदिर लक्ष्मीनगर में मूर्तियां विराजित हुई। मुनिश्री समतासागर महाराज एवं निश्चयसागर महाराज के सानिध्य में यह पंचकल्याणक महामहोत्सव एवं विश्वशांति महायज्ञ के साथ संपन्न हुआ। विधिनायक के रूप में भगवान आदिनाथ की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में मंच पर कैलाश पर्वत की रचना कर उस पर विराजित भगवान आदिनाथ को दर्शाया गया।
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मीडिया प्रभारी सचिन कासलीवाल एवं सुनील जैन खुरईवाले के अनुसार मुनिश्री समतासागरजी, ऐलकश्री निश्चयसागरजी एवं प्रतिष्ठाचारी बालब्रह्मचारी अभय जैन आदित्य भैया एवं सुनील भैयाजी द्वारा निर्वाण संबंधित भक्ति पाठ संपन्न होते ही प्रातःकाल शुभ मुहूर्त में भगवान को मोक्ष प्राप्त कराकर वहां थोड़ी देर के लिए एक सिध्दाकृति दर्शा दी गई। दोनों प्रतिष्ठाचार्यों द्वारा भगवान के मोक्ष जाने की घोषणा होते ही घंटा, दिव्य घोष आदि वाद यंत्र बजाकर हर्षोल्लास व्यक्त किया गया।
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भगवान का पारमोदारिक शरीर कपूर की तरह उड़ जाने के बाद शेष बचे नख और केश ही कैलाश पर्वत पर रह जाते हैं। बाकि संपूर्ण शरीर मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। चार अग्निकुमार देवताओं द्वारा अपने मुकुट से प्रज्जवलित अग्नि से नख और केश का अंतिम संस्कार किया जाता है। तत्पश्चात निर्वाण कल्याण की पूजा, हवन, विश्वशांति महायज्ञ होता है एवं गजरथ हाथी की तरह संपूर्ण जुलूस में चार बैंड, दो हाथी, हाथी पर सवार भगवान एवं समाजजनों के द्वारा भगवान को लक्ष्मीनगर गजरथ महोत्सव के रूप में नगर के प्रमुख मार्गों पर श्रीजी का प्रतिष्ठित मूर्तियों का विहार कराकर मंदिरजी की नवीन वेदियों में विराजित किया गया। मुनिश्री ने अपने प्रवचन में कहा कि बंधन दुखदायी है, आनंददायी तो स्वतंत्रता है।
भगवान अष्टकर्मों के बंधन से मुक्त होकर स्वतंत्र, स्वाधीन हो गए, अब उन्हें जन्म, मरण कभी नहीं होगा। क्योंकि वह निर्वाण को प्राप्त हो गए। हमें भी भगवान की तरह समस्त बंधनों से छुटकारा पाकर परम निर्वाण को प्राप्त करें। हमने निर्वाह तो बहुत किया, निर्माण भी किया पर अब निर्वाण प्राप्ति का पुरूषार्थ करें। स्वतंत्रता हमारा जन्मसिध्द अधिकार है, आजादी का अपना यह अधिकार किसी की कृपा से नहीं बल्कि हमें अपने पुरूषार्थ से पाना होगा। मोह माया की ग्रंथी, गांठों को यदि कुछ ढीला किया जाए, जलाया या नष्ट किया जाए तो आयोजन में सम्मिलित होने की हमारी सार्थकता है।