मंदिर में जाने से पहले क्यों उतारने पङते है जूते
मंदिर में जाने से पहले जूते उतारने पङते है
कहते हैं अगर किसी भी इंसान को जानना हो तो उस इंसान के जूतों की तरफ देखना चाहिए।इंसान के जूते से उसके बिहेवियर, पसंद और क्लास का पता चलता है। हालांकि इस बात कितनी सच्चाई है कोई नही जानता । लेकिन फिर भी लोग अपने जूतों चप्पल पर खासा ध्यान देते हैं। महंगे महंगे जूते सैंडिल खरीदते है ताकि लोगों के बीच अपना क्लास दिखा सके। कपङे चाहे कैसे भी पहने लेकिन जूते टीप टाॅप होने चाहिए।
लेकिन फिर भी चाहे कितने भी मंहगे जूते चप्पल हो कोई भी उन्हें किसी पवित्र जगह नही पहनके जाता । मंदिरों के बाहर हजारों की तादाद में मंदिर में आने वाले भक्तों के जूते चप्पल पङे होते हैं जिनमें महंगे भी होते हैं सस्ते भी होते हैं। बल्कि हम अपने घर में भी मंदिर के स्थान पर कभी जूते चप्पल पहनकर नही जाते । और ये प्रथा न जाने कितने सालों से चल रही है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है भला मंदिर में जाने से पहले जूते उतारने पङते है क्यों ?
चलिए आपको बताते हैं इस विचित्र प्रथा के बारे में
मंदिर में जाने से पहले जूते उतारने पङते है । दरअसल शास्त्रों माना जाता है कि जूते चप्पल में ताम धातु होती है जो इंसान को नरक लोग यानि पाताल से जोङती है। जबकि मंदिर में चारों तरफ ईश्वर का वास होता है।
जूते – चप्पल इंसान को गंदगी के जरिए नरक की नकारात्मक ऊर्जा से जोङते है और नरक यानि राक्षसों का घर । जिस वजह से मंदिर जूते चप्पल पहनकर आना वर्जित माना जाता है। वैसे अगर साधारण शब्दों कहा जाए तो जूते चप्पल में डर्ट पार्टिकल्स होने के कारण उन्हें मंदिर में पहनकर आना गलत होता है, क्योंकि वो मंदिर के स्वस्थ वातावरण में गंदगी लेकर आते हैं ।