शरीर का रेप एक बार होता है लेकिन आत्मा का हर रोज होता है…
यौन शोषण एक ऐसा शब्द है जो सिर्फ किसी के शरीर का नही जिंदगी भर के लिए उसके मन का भी शोषण करता है। हमारे समाज में किसी भी महिला के लिए उसकी इज्जत से बढकर कुछ भी नही माना जाता। लेकिन इस इज्जत का बलात्कार होता है तो वो महिला समाज से ही अलग कर दी जाती है। शहर छोङना पङता है, नाम बदलना पङता है। और एक गुमनाम जिंदगी जीनी पङती है वो भी सिर्फ उस एक हादसे के कारण।
उस हादसे में मिले जख्म तो शायद वक्त के साथ भर जाएं लेकिन आत्मा पर लगे दाग क्या कभी धूल पाएंगे। हम किस समाज में जी रहे है, जहाँ हमारी पहचान सिर्फ तब तक है जब तक हम किसी ऐसे हदासे का शिकार न हो जाएं। यौन शोषण के जख्म देने वाला कोई भी हो खुरदते तो हम ही है ना। रेप होने के बाद रेप करने वाले से पहले जिस का रेप हुआ है उसका चेहरा छिपाया जाता है क्योंकि परिवार की बदनामी हो जाएगी। पुलिस के सामने जाने का डर रेपिस्ट से ज्यादा विक्टम को लगता है कि कही वो कोई ऐसा सवाल न पूछ ले जिसे उसके घाव ओर ताजा हो जाए। क्यों हम उस विक्टम को वो को वो इज्जत, सम्मान नही दे पाते, जो उसे उस हादसे से पहले मिल रही थी। उसकी तरफ दया की बजाय हिम्मत का हाथ बढाएंगे तो क्या कुछ बदल जाएगा। नेशनल क्राइम ब्रांच के अनुसार सबसे ज्यादा रेप मध्य प्रदेश और दिल्ली में होते है।
लेकिन इसका मतलब ये नही है कि बाकी राज्यों में महिलाएं यौन शोषण का शिकार नही होती। लेकिन आकङो को देखने वाले कहेंगे ये राज्य तो है ही ऐसा या फिर बङे शहरों में तो ऐसा ही होता । पर आपको सच में लगता है यौन शोषण की गणना राज्य देश, शहर मोहल्ले के हिसाब से की जा सकती है । घर किसी जगह एक महिला यौन शोषण का शिकार होती है तो क्या उसकी तकलीफ दूसरो से कम है। क्योंकि उनके राज्य में ज्यादा यौन शोषण के मामले होते ही नही ।शहरों में लडकियों के कपङो को उनके साथ हुए दुष्कर्म का कारण बनाया जाता है । उनके कपङो पर कमेंट किया जाता है । क्या वो किसी के अधिकारों का रेप नही है । चलिए मान लेते है कि लडकियों के छोटे कपङे उनके साथ हुए दुष्कर्म की वजह थे। फिर एक आठ साल की बच्ची और डेढ साल की बच्ची के साथ जो इस रेप की घटना घटी उसमें भी उन बच्चियों के कपङो का दोष था। एक डेढ साल की बच्ची जो बोल नही सकती क्या किसी को आकर्षित कर सकती है । ये क्या मानवता का यौन शोषण नही है ।
एक लङकी जिसके साथ ये गुनाह होता है उस पर जिंदगी भर के लिए एक दाग लग जाता है वो लगाने वाला गुनहगार कोई भी उस दाग को ताज रखने वाले तो हम ही है । जब हमारे समाज में ऐसे भी परिवार है जहां शादी के बाद लङकी को सफेद तौलिया पकङकर उस का वर्जनिटी टेस्ट लिया जाता है कि वो वर्जन हॅ या नही । तो वो लोग कभी एक यौन शोषण का शिकार हुईं लङकी को अपने घर की बहू बनाएंगे । एक घटना की वजह से उम्र भर के लिए उसके सपनों की बलि क्या उसके ख्वाबो का बलात्कार नही है । सोचिएगा जब एक यौन शोषण की शिकार महिला 20 साल बाद भी किसी से हाथ मिलाने से कतराए तो उसके जख्मों की गहराई क्या होगी । गुनहगार से ज्यादा गुनाह हम लोग करते है । जो उसे अपने साथ चलने नही देते । ”जख्म उसके उतने गहरे न थे जितने आपकी आंखों ने गिना दिए , एक बार नजरिया बदला तो होता क्या पता भी कोई हसीन ख्बाब होती”