नई मुसीबत में फंसा सुब्रत रॉय का सहारा
नई दिल्ली। मीटिंग में कानूनी पैतरों पर बात होती है। रॉय को रिहा कराने के लिए फंड जुटाने पर चर्चा की जाती है। हालांकि तिहाड़ जेल में सीसीटीवी सर्विलांस केबिन के सामने और सुपरिंटेंडेंट ऑफिस के अपोजिट एक रूम है, जिसमें अच्छी रोशनी रहती है। तिहाड़ के इस कमरे में जो लोग आते हैं, वे एक और खबर से भी अनजान नहीं हैं। यह कहानी सहारा क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी से जुड़ी है। कानूनी तौर पर इसका का सहारा ग्रुप से लेना-देना नहीं है, लेकिन दोनों का कुछ अलग तरह से कनेक्शन है। सूत्रों ने अनुसार क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी का काफी पैसा सहारा ग्रुप की कंपनियों और प्रॉजेक्ट्स में लगा हुआ है। गौरतलब है कि क्रेडिट सोसायटी के 2.6 करोड़ नॉमिनल सदस्य हैं, जिनके पास वोटिंग राइट्स भी हैं। इनकी उस कॉरपोरेट एंटिटी में 42 पर्सेंट हिस्सेदारी है, जिसके पास सहारा के ‘ताज’ एंबी वैली का मालिकाना हक है। सहारा के एंप्लॉयीज ने सहारा क्रेडिट की शुरुआत की थी। हालांकि समय के साथ इसका कामकाज दूसरे क्षेत्रों में बढ़ता गया। कानून के अनुसार इन सोसायटीज को दूसरे को-ऑपरेटिव बैंकों में भी इनवेस्ट करने की इजाजत है। वे कुछ अप्रूव्ड सिक्यॉरिटीज, दूसरी को-ऑपरेटिव सोसायटीज, बैंक डिपॉजिट में भी इनवेस्ट कर सकती हैं। नाम नहीं छापने की शर्त पर कृषि मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि सरकार इस कानून में बदलाव करने की सोच रखती है। अगर कानून में कोई कमी है तो संशोधन करके इसे दूर किया जाएगा।वहीं सहारा ग्रुप का दावा है कि इसमें से काफी रकम लौटाई जा चुकी है। रॉय को बैंक गारंटी सहित 10,000 करोड़ रुपए तय बैंक खाते में जमा कराने हैं, तभी उन्हें बेल मिलेगी। सहारा ग्रुप जमीन बेचकर यह रकम जुटाने की कोशिश कर रहा है।