जीवनशैली

रोजाना इस्तेमाल होने वाली 6 चीजें जो हैं चांदी से भी महंगी, सायद आप नहीं जानते होंगे इनका मोल

अगली बार जब आप वनीला आइसक्रीम खाएं तो उसे जरा ध्यान से देखियेगा, और सोचियेगा कि क्या आप सच में चांदी की कीमत की आइसक्रीम खा रहे हैं। आपके केक, कस्टर्ड, चॉकलेट और मिठाई को स्वाद देने वाली वनीला की फसल दुनिया के उष्णकटिबंधीय इलाकों में होती है। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि वनीला की कीमत चांदी से भी ज्यादा है। साल 2017 के बाद से दूसरी बार वनीला की कीमत 600 डॉलर प्रति किलोग्राम पहुंची है। यानी भारतीय मुद्रा में एक किलो वनीला खरीदना चाहेंगे तो आपको लगभग 40,800 रूपये खर्च करने पड़ेंगे।

इसका एक बड़ा कारण है मैडागास्कर में चक्रवाती तूफान का आना। तूफान की वजह से इस द्वीप पर वनीला की फसल का एक बड़ा हिस्सा खराब हो गया था। मैडागास्कर में दुनिया की तीन चौथाई वनीला की फसल होती है। भारत में इस समय चांदी की कीमत करीब 43,500 रुपये प्रति किलो है। वहीं अमरीका में इसका मूल्य 538 डॉलर यानी 36,597 रुपये प्रति किलो है। वनीला की बढ़ती कीमत से कुछ आइसक्रीम कंपनियां इसके फ्लेवर का इस्तेमाल कम कर रही हैं। यही वजह है कि गर्मी के इस सीजन में इसकी कमी भी हो सकती है।

लेकिन वनीला इकलौती ऐसी चीज नहीं है जो रोजमर्रा में इस्तेमाल होने के बावजूद चांदी की तुलना में महंगी है। यहां ऐसी ही 6 अन्य चीजें हम आपको बता रहे हैं जिनका आप रोज इस्तेमाल करते हैं, लेकिन आपको ये अंदाजा नहीं होता कि उनकी कीमत चांदी से ज्यादा है।

1. केसर
केसर दुनिया के सबसे महंगे मसालों में से एक है। एक किलो केसर के लिए लगभग डेढ़ लाख फूलों की जरूरत पड़ती है। हालांकि इसके फूल की कीमत तुलनात्मक रूप से कम होती है, लेकिन कटाई के बाद और सुखाए जाने पर इसकी कीमत काफी बढ़ जाती है। एक ग्राम केसर के लिए आपको पांच से 25 डॉलर तक खर्च करने पड़ सकते हैं। कई बार इसके दाम जगह पर भी निर्धारित होते हैं। एक अनुमान है कि इसका मूल्य दो हजार और 15 हजार डॉलर प्रति किलो के बीच में रहता है।

यानि भारतीय मुद्रा में देखा जाये तो इसकी कीमत एक लाख 36 हजार रुपये से लेकर करीब सवा 10 लाख के बीच होगी। ग्रीन सेफ्रॉन नाम की आयरिश कंपनी केसर की बड़ी आयातक है। इसके संस्थापक और मसालों के जानकार अरुण कपिल कहते हैं, “केसर की कटाई के समय बहुत ही हल्के हाथों की जरूरत होती है। ये थोड़ा मुश्किल काम है लेकिन ये हाथों से ही किया जा सकता है।” केसर आंखों के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। इसके महंगे होने के कारण बाजार में नकली केसर आसानी से मिल जाता है जिसमें नकली रंगों का इस्तेमाल किया जाता है।

2. कॉफी
बाजार में कई तरह की कॉफी उपलब्ध है। सभी की क्वालिटी में थोड़ा बहुत अंतर होता है। कॉफी की कई किस्में हैं जिनमें से कुछ की कीमत चांदी से भी ज्यादा है। ‘कोपी लुवाक’ नाम की एक ऐसी ही मशहूर कॉफी की किस्म है जिसे इंडोनेशिया में तैयार किया जाता है। इसका उत्पादन एशिया में पाई जाने वाली सिवेट बिल्लियों के मल से किया जाता है। इन बिल्लियों को कॉफी के फल खिलाये जाते हैं और फिर उनके मल से कॉफी के दानों को चुनकर निकाला जाता है। उत्पादकों का मानना है कि ऐसा करने से कॉफी में एक नेचुरल मीठापन आता है। अगर ये प्रक्रिया पालतू बिल्लियों की जगह जंगली सिवेट बिल्लियों से साथ की जाती है तो कॉफी की कीमत 660 डॉलर प्रति किलो से भी ज्यादा होती है। हालांकि इस कॉफी की डिमांड ने जानवरों के अधिकार के लिए लड़ने वाली संस्थाओं के लिए चिंता पैदा कर दी है।

जानकार मानते हैं कि इतनी महंगी होने के बावजूद भी रेगुलर कॉफी के सामने, कोपी लुवाक अच्छी नहीं है। हालांकि बड़े बाजारों में इससे भी महंगी कॉफी की किस्में मौजूद हैं। जैसे थाइलैंड की ब्लैक आइवरी कॉफ़ी। ये हाथियों के मल से बनाई जाती है। इसके लिए हाथियों को खास अनाज खिलाया जाता है। इस प्रक्रिया से प्राप्त एक किलो कॉफी के लिए 1,800 डॉलर यानी लगभग सवा लाख रूपये देने पड़ सकते हैं।

3. वियाग्रा

कहा जाता है कि पैसे से प्यार नहीं खरीदा जा सकता। लेकिन जो लोग वियाग्रा की एक छोटी-सी नीली गोली पर पैसे खर्च करते हैं, वो उससे थोड़ी-सी खुशी पाने की कोशिश तो जरूर करते हैं। दवाइयां बनाने वाली कंपनी फाइजर के वैज्ञानिकों ने हाइपरटेंशन के इलाज के लिए साल 1989 में वियाग्रा को विकसित किया था। लेकिन टेस्ट के समय इसके कुछ असामान्य दुष्परिणाम देखे गए। इस दवा को पुरुषों के लिए इस्तेमाल किया गया था जिसका उन पर सीधा असर देखा गया। नौ साल बाद इसे आधिकारिक मान्यता मिल गई। साल 2012 आते-आते कंपनी के लिए वियाग्रा आय का एक अच्छा विकल्प बन गया। फाइनेंशियल टाइम्स अखबार के अनुसार, अमरीका में इस साल की शुरुआत में फाइजर कंपनी ने जनवरी 2017 की तुलना में वियाग्रा के दाम 39 प्रतिशत बढ़ाने की घोषणा की है।

अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, नए दाम लागू होने से 100 मिलीग्राम की एक गोली का मूल्य 57.94 डॉलर से 80.82 डॉलर तक पहुंच गया। भारतीय रुपये में देखें तो अमरीका में मिल रही ये गोली अब लगभग चार हजार से पांच हजार रुपये के बीच होगी।
हालांकि कंपनी अब इसके बदले एक सस्ती दवा लेकर आई है, जो एक सफेद रंग की गोली है। लेकिन ये साफ देखा गया है कि नीली वाली वियाग्रा आज भी लोगों के बीच अन्य दवाओं के मुकाबले ज्यादा प्रचलित है। वैसे वियाग्रा दुनिया में मिलने वाली सबसे महंगी दवाओं से अभी भी कोसों दूर है। कई अनुवांशिक दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए एक महीने में हजारों रुपये का खर्च दवाओं पर करना पड़ता है।

4. मुंह के छालों के लिए क्रीम

जर्नल ऑफ डर्माटॉलॉजी में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, ऑस्टिन के टेक्सास विश्वविद्यालय के त्वचा विशेषज्ञों ने त्वचा संबंधी बीमारियों में इस्तेमाल होने वाली दवाओं की कीमतें तेजी से बढ़ने की बात कही है। उन्होंने दवाओं की कीमतों की तुलना आईफोन और गोल्ड जैसी महंगी चीजों से करके देखी। इसके बाद उन्हें कुछ हैरान करने वाले परिणाम मिले। जोविरॉक्स नाम की एक क्रीम का उन्होंने जिक्र किया है। इसकी दो ग्राम की एक ट्यूब के लिए ब्रिटेन में मरीज को 6.75 डॉलर देने पड़ते हैं।
ये क्रीम दाद, खाज-खुजली के इलाज में इस्तेमाल होती है। ये लोगों में आमतौर पर होने वाली समस्याएं हैं जिनके इलाज के लिए लोग खुद ही दवाएं खरीदते हैं।

टेक्सास विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया है कि इस दवा का शरीर पर कोई बुरा प्रभाव नहीं है, इसलिए इसकी कीमत में बढ़ोतरी की गई है। साल 2007 में इस क्रीम की कीमत 22 डॉलर प्रति ग्राम थी जो बाद में साल 2015 में 168 डॉलर प्रति ग्राम कर दी गई। इसका मतलब है कि एक किलो क्रीम के लिए 168 हजार डॉलर यानी भारतीय मुद्रा में एक करोड़ 10 लाख से ज्यादा रुपये देने होंगे। ये कीमत, इस मात्रा में गोल्ड खरीदने की कीमत से चार गुना है। हालांकि इस दवाई की कीमत तब से काफी गिर गई है। अब इसकी कीमत 48 हजार डॉलर (32 लाख रूपये से ज्यादा) प्रति किलो के करीब है। बाजार में इन बीमारियों के लिए साधारण दवाएं भी मौजूद हैं जो काफी सस्ती हैं। लेकिन त्वचा संबंधी समस्या के लिए जेरेस नाम की एक दवा है, जो इससे भी महंगी है। शोधकर्ताओं के अनुसार, साल 2015 में जेरेस की कीमत 248 हजार डॉलर (करीब एक करोड़ 70 लाख रुपये) प्रति किलो थी।

5. फेशियल क्रीम

दुनिया भर में बाजार में सुंदरता का बहुत बड़ा व्यापार फैला हुआ है। कॉस्मेटिक बाजार में हर साल 532 बिलियन डॉलर यानी 36 हजार 176 अरब रुपये का फायदा होता है। क्रीम द ल मेर बहुत ही प्रचलित और महंगी क्रीम मानी जाती है। इसकी 30 मिलीलीटर की बोतल की कीमत 162 डॉलर (11 हजार रुपये) है और 500 मिलीलीटर के लिए 2,057 डॉलर (करीब डेढ़ लाख रुपये) देने पड़ेंगे। मूल रूप से इसे सी-वीड के रस से बनाया जाता है। हालांकि इसे कैसे तैयार किया जाता है और इससे त्वचा को मिलने वाली नमी का क्या कारण है, इसे कंपनी ने राज रखा है, लेकिन इस क्रीम की कीमत चांदी से छह गुना है। ऐसी ही एक क्रीम है रिवाइव। इस क्रीम की 48 ग्राम की पैकिंग के लिए 385 डॉलर (लगभग 26 हजार रुपये) खर्च करने पड़ते हैं। इसका मतलब है कि एक किलो क्रीम के लिए 7,988 डॉलर (लगभग साढ़े पांच लाख रुपये) खर्च करने होंगे। रिवाइव क्रीम तैयार करने वाली कंपनी का कहना है, “एडवांस तकनीक और इसके रिसर्च पर हुए बड़े खर्च के कारण ये क्रीम इतनी महंगी है।”

6. प्रिंटर की इंक

प्रिंटर इस्तेमाल करने वाले लोगों का आपने अक्सर कहते सुना होगा कि इसका हार्डवेयर या कोई छोटा-मोटा पुर्जा तो आसानी से मिल जाता है, लेकिन प्रिंटर की रंगीन इंक मिलने में दिक्कत होती है। प्रिंटर की इंक को लेकर दुकानदार बिल्कुल भी मोलभाव के लिए तैयार नहीं होते। प्रिंटर के जिस पुर्जे में इंक भरी जाती है उसे कार्टरिज कहते हैं। इसे बदलवाने का खर्च 8 से 27 डॉलर (546-1843 रुपये) के बीच हो सकता है। हालांकि ये कीमत कार्टरिज के मॉडल पर भी आधारित होती है। 4 मिलीलीटर की सिर्फ काली इंक वाली कार्टरिज को तैयार करने से लेकर इसकी कीमत 23 डॉलर (1570 रुपये) हो सकती है, जिसकी क्षमता करीब 200 पन्ने प्रिंट करने की होती है।

कार्टरिज बनाने वालों का कहना है कि वे प्रिंटर और उसके हार्डवेयर को जिस कीमत पर तैयार किया जाता है और उसे बेचा जाता है, उसके नुकसान की भरपाई करने के लिए वो इंक की ज्यादा कीमत वसूल करते हैं, लेकिन अगर आप इंक कार्टरिज को खोलेंगे तो उसमें आप देखेंगे कि अंदर के अधिकांश हिस्से में स्पंज लगाया हुआ है। जो इंक को सही से रखने में मदद करता है। एक किलो इंक के लिए ग्राहक 1,733 डॉलर खर्च करते हैं। यानी सवा लाख रुपये से कुछ कम, अगर आप तुलना करेंगे तो पायेंगे कि चांदी की प्रिंटिंग करवाना इससे सस्ता होगा।

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