केंद्र सरकार ने कहा- अगर व्यभिचार कानून के प्रावधान को कमजोर किया तो खतरे में पड़ जाएगी विवाह संस्था
व्यभिचार के लिए महिलाओं को जिम्मेदार ठहराना भारतीय मूल्यों के खिलाफ
सरकार ने हलफनामे में कहा है, भारतीय दंड संहिता की धारा-497 और सीआरपीसी की धारा-198(2) को खत्म करना भारतीय चरित्र व मूल्यों के लिए हानिकारक होगा। भारतीय मूल्यों में विवाह जैसी संस्था की पवित्रता सर्वोपरि है। केंद्र सरकार ने अपना जवाब केरल निवासी जोसफ शिन द्वारा दायर उस जनहित याचिका पर दिया है जिसमें याचिका में धारा-497 को निरस्त करने की गुहार की गई है। याचिका में इस प्रावधान को भेदभावपूर्ण और लिंग विभेद वाला बताया गया है।
याचिका में कहा गया है कि धारा-497 के तहत व्यभिचार को अपराध की श्रेणी में रखा गया है लेकिन यह अपराध पुरुषों तक ही सीमित है अगर उसका किसी दूसरे की पत्नी के साथ संबंध हो। इस मामले में पत्नी को न व्यभिचारी माना जाता है और न ही कानूनन उसे उकासने वाला ही माना जाता है। वहीं पुरुषों को इस अपराध के लिए पांच वर्ष तक की सजा हो सकती है। धारा-497 हर परिस्थितियों में महिलाओं को पीड़िता मानता है, वहीं मर्दों को अपराधिक मुकदमा झेलना पड़ता है।
केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि विवाह जैसे संस्थान को बचाने और उसकी पवित्रता को कायम रखने के उद्देश्य से विधायिका ने धारा-497 को कानून में जगह दी थी। भारतीय संस्कृति और इसके अनूठे ढांचे को देखते हुए यह प्रावधान लाया गया था। सरकार ने यह भी कहा कि मालीमथ समिति ने सिफारिश की थी कि धारा-497 को जेंडर न्यूट्रल बनाया जाए। यह मसला फिलहाल संविधान पीठ के पास लंबित है। संविधान पीठ ने 150 वर्ष पुराने कानून की वैधता का परीक्षण करेगी।