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अर्जुन पुरस्कार जितने वाला ये बॉक्सर आज रेहड़ी पर कुल्फ़ी बेचने को है मजबूर

साल 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स के बाद से भारतीय खेलों की स्थिति में खासा सुधार देखने को मिला है। इसके बाद के साल खेल के लिहाज़ से काफ़ी उपलब्धि भरे रहे। अभी भी देश के कई राज्यों में खेल की स्थिति में काफ़ी सुधार की ज़रुरत है। आज भी देशभर में कई ऐसे प्रतिभाशाली खिलाड़ी हैं, जिन्हें असुविधाओं ने नाउम्मीदी की गर्त में धकेल दिया है। एक ऐसी ही कहानी है बॉक्सर दिनेश कुमार की, जिन्हें एक समय उनके उम्दा प्रदर्शन के लिए अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

कभी देश के लिए गोल्ड जीतने वाला ये बॉक्सर आज गरीबी का दंश झेल रहा है। पैसों की तंगी के कारण आज इस प्रतिभाशाली बॉक्सर को पिता के साथ कुल्फ़ी बेचनी पड़ रही है।

30 साल के दिनेश कुछ साल पहले दुर्भाग्यवश एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गए थे। इसके बाद उनका बॉक्सिंग करियर पूरी तरह खत्म हो गया। दिनेश के पिता ने उनके इलाज के लिए कर्ज लिया, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से उनके पिता को कुल्फ़ी की रेहड़ी लगानी पड़ी। इसके बाद अर्जुन पुरस्कार विजेता दिनेश ने भी पिता का साथ देना शुरु कर दिया।

इसके अलावा दिनेश के पिता ने उनकी ट्रेनिंग के लिए भी कर्ज ले रखा था। उन्हें इस बात की उम्मीद थी बेटे के बॉक्सर बन जाने के बाद घर की आर्थिक स्थिति में सुधार आ जाएगा, मगर सड़क दुर्घटना के बाद सब कुछ बदल गया और दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ।

30 साल के दिनेश ने साल 2010 में ग्वांगजू एशियाई खेलों में बाक्सिंग के लाइट हैविवेट वर्ग में सिल्वर मेडल जीता था। हरियाणा के रहने वाले दिनेश सब जूनियर नेशनल बॉक्सिंग में 51 किलो भार वर्ग में लगातार चार साल तक चैंपियन रह चुके हैं। उन्होंने देश का प्रतिनिधित्व करते हुए कई अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में 17 गोल्ड ,1 सिल्वर, और 5 कांस्य पदक जीते हैं। इस खिलाड़ी को वाहवाही के अलावा सरकार की तरफ़ से अब तक कोई आर्थिक मदद नहीं मिली है। यही वजह है कर्ज चुकाने के लिए मजबूरन उन्हें पिता के साथ कुल्फ़ी बेचनी पड़ रही है।

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