भारत के इस प्रधानमंत्री के पास निधन के वक्त खाते में थे 470 रुपए
23 दिसंबर 1902 को गाजियाबाद के नूरपुर गांव में जन्मे चौधरी चरण सिंह की आज 116वीं जयंती है। चौधरी चरण सिंह देश के पांचवे प्रधानमंत्री थे। एक स्वतंत्रता सेनानी से प्रधानमंत्री तक का सफर तय करने के दौरान उन्होंने अंग्रेजों के साथ ही भ्रष्टाचार के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी। वह अपनी ईमानदारी के लिए पहचाने जाते थे, यही वजह है कि जिस दिन उनका निधन हुआ तब उनके खाते में सिर्फ 470 रुपए थे।
चौधरी चरण सिंह सन् 1930 में गांधी जी के चलाए सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी शामिल थे। उन्होंने गाजियाबाद के बॉर्डर पर बहने वाली हिंडन नदी में नमक भी बनाया था, जिसके बाद उन्हें अंग्रेजी सरकार ने 6 माह के लिए जेल की सजा सुनाई। जेल से रिहा होने के बाद चरण सिंह महात्मा गांधी की शरण में चले गए और अपने जीवन को स्वतंत्रा संग्राम के लिए समर्पित कर दिया।
इसके बाद चरण सिंह 1940 में फिर गिरफ्तार किए गए। अक्टूबर 1941 में उन्हें रिहा किया गया। 1942 में चरण सिंह ने अंग्रेजों के विरुद्ध गुप्त क्रांतिकारी संगठन का निर्माण किया और आजादी के लिए लड़ाई के लिए मैदान में उतर गए। आजाद भारत के बाद 1951 से चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक करियर शुरू हुआ। 1953 में चकबंदी प्रस्ताव पास कराया जो 1954 में लागू किया। 1967 में प्रदेश के कांग्रेस सीएम चंद्रभानु गुप्त सरकार से खिन्न होकर वह विधानसभा में विरोधी बेंच पर जा बैठे और सरकार का प्रस्ताव बहुमत से गिर गया। तीन अप्रैल 1967 में यूपी में संविदा सरकार बनी, जिसके बाद वह सीएम बने। 17 अप्रैल 1967 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा।
1969 में यूपी के मध्यावधि चुनाव में चौधरी चरण की बीकेडी को भारी सफलता मिली और 98 विधायक चुने गए। 17 फरवरी 1970 को वह पुन: सीएम बने। 1977 में वह केंद्र में गृहमंत्री रहे, 1979 में वह उपप्रधानमंत्री और वित्तमंत्री बने और इसके बाद वह देश के प्रधानमंत्री चुने गए थे। चरण सिंह गरीबों और किसानों के तारणहार थे। वह किसानों और गरीबों को समझते थे, इसीलिए उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों के लिए समर्पित कर दिया और इसीलिए वह एक व्यक्ति नहीं एक विचारधारा के तौर पर जाने जाते हैं।