केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ तीखे तेवर की वजह से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री चर्चा में हैं. रविवार को शारदा चिट फंड घोटाले की जांच को लेकर सीबीआई की टीम कोलकाता पुलिस कमिश्नर से पूछताछ करने के लिए उनके घर पहुंच गई थी. इसी कार्रवाई के विरोध में मुख्यमंत्री ममता रविवार रात से ही धरने पर हैं. उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और सीबीआई के खिलाफ हमला बोला है. इस मौके पर आइए जानते हैं ममता के राजनीतिक सफर से जुड़ी कुछ खास बातें…
5 जनवरी 1955 को ममता का जन्म एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था. उनके पिता प्रोमिलेश्वर बनर्जी फ्रीडम फाइटर थे. ममता ने बहुत कम उम्र में राजनीति में एन्ट्री ली और पढ़ाई के दौरान 1970 के दशक में कांग्रेस के छात्र परिषद से जुड़ गईं.
1979-90 में ममता पश्चिम बंगाल महिला कांग्रेस की जनरल सेक्रेट्री बन चुकी थीं. 1989 में कांग्रेस विरोधी लहर में हारने के बाद ममता 1991 में कोलकाता दक्षिण से लोकसभा का चुनाव जीत गईं. इसके बाद 1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 में इसी सीट से चुनाव जीतती रहीं.
पहली बार ममता की राजनीतिक जिंदगी में बड़ा मुकाम तब आया, जब वह 1991 में केंद्र सरकार में एचआरडी, यूथ अफेयर्स और चाइल्ड वेलफेयर मंत्री बनीं. लेकिन कांग्रेस से बाहर होकर उन्होंने 1998 में तृणमूल कांग्रेस पार्टी की स्थापना कर दी. 1998 और 1999 में ममता की पार्टी ने क्रमश: आठ और सात लोकसभा सीटें जीती और बीजेपी को समर्थन दिया.
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान 1999 में ममता रेल मंत्री बनीं. 2001 में उन्होंने एनडीए और रेल मंत्रालय छोड़ दिया और कांग्रेस के साथ मिलकर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया. हालांकि, उन्हें हार का सामना करना पड़ा. वहीं, 2004 में उनके पार्टी के सांसद सिर्फ एक रह गए. लेकिन इसके दो साल बाद हुए बंगाल चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को 30 सीटें मिलीं.
सीपीआईएम के खिलाफ लगातार लड़ते हुए कभी भी ममता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. नंदीग्राम और सिंगूर में बड़े पैमाने पर आंदोलन करके ममता जनता के और करीब पहुंच गईं. इसी की बदौलत मई 2011 में वह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हो गईं.