कोई सालों दोस्ती निभाने के बाद, तो कोई एकदम अनजान चेहरे के साथ, जब रिश्ते के अटूट बंधन में बंधते हैं, तो उनकी दुनिया पहले से काफी बदल जाती है। कई चीजें पीछे छूट जातीं हैं, तो कई नई जुड़ जातीं हैं। एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदारी और वफादारी वैवाहिक रिश्ते की सबसे महत्वपूर्ण शर्तें हैं। इस पवित्र बंधन में बंधने के लिए उम्र के साथ आपसी समझ भी बहुत जरूरी है और एक-दूसरे की बातों को सुनना एवं समझना भी। इसलिए अपनी जरूरतों और उसके महत्व को समझें और एक खुशहाल वैवाहिक जीवन जिएं।
अक्सर देखा जाता है कि शादीशुदा जोड़े कई चीजों को लेकर समझौता नहीं करते, लेकिन आपको यह समझना होगा कि रिश्ते में छोटी-छोटी बातों पर समझौता करना कमजोरी की निशानी नहीं है। बल्कि यह इस बात को दिखाता है कि आप अपने अहम से ज्यादा, आपसी रिश्ते को महत्व देती हैं। इस रिश्ते को ज्यादा मीठा या ज्यादा नमकीन नहीं, बल्कि थोड़ा खट्टा, तो थोड़ा मीठा बनाएं।
कुछ कहें, कुछ सुनें
एक सफल वैवाहिक जीवन के लिए लोग कई प्रकार की सलाह देते हैं। दें भी क्यों न, विवाह ही एक ऐसा रिश्ता है, जो दो लोगों और दो परिवारों को एक-दूसरे से जोड़ता है। विक्ट्री कोच हेमा शाह कहती हैं, “विवाह के बारे में अक्सर हमारे ख्याल उन पुरानी पारंपरिक सोच पर ही होते हैं, जो दोस्तों और रिश्तेदारों के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंप दिए जाते रहे हैं। समय पर शादी करना, समय पर शिशु को जन्म देना। इन सबके बीच कई बार आपके अपने ख्वाब भी खो जाते हैं। चालीस वर्षीय रेनू जैन बताती हैं, “रोमांटिक रिलेशन में आने से पहले मैं और मेरे पति बीस साल तक अच्छे दोस्त थे।
हमारी केमिस्ट्री बहुत अच्छी थी और हम एक-दूसरे के बारे में सब कुछ जानते थे। शादी के सात साल बाद हमने महसूस किया कि हम दोनों में तो प्यार था ही नहीं, यह मिसमैच हो गया था। मैं बहुत खुले विचारों वाले परिवार से थी और उनका परिवार बहुत पुरानी सोच रखता था। मुझे अपने रेडियो जॉकी के काम में ऑफिस में कई घंटे लगते थे, जो उनके परिवारवालों को पसंद नहीं आ रहा था, वे चाहते थे कि मैं घर की जिम्मेदारियां ज्यादा संभालूं। हमारा विवाह तो नहीं चला पर हम आज भी अच्छे दोस्त हैं। हमें लगा कि हमें विवाह नहीं करना चाहिए था। आज भी हम दोनों बात करते हैं कि हमारी लड़ाई समाज के दबाव में ज्यादा होती थी। जैसे हमारे ऊपर बच्चे पैदा करने का दबाव डाला जा रहा था, जबकि हम दोनों ही इसके लिए तैयार नहीं थे।”
मनोवैज्ञानिक डॉ. प्राजक्ता कहती हैं, “दोस्ती जब प्यार में बदलती है, तो कुछ मुश्किल हो सकती है। जब आप दोस्त होते हैं, साथ समय बिताते हैं, तो एक दूसरे का नजरिया ज्यादा अच्छी तरह समझ लेते हैं। दूसरी तरफ कपल बनने पर अपने-अपने वैल्यू सिस्टम, अपने उद्देश्य, पैसा और काम और भी कई चीजों पर समान विचार रखने पड़ते हैं। छोटी-छोटी चीजों को अपनी इच्छा या अनिच्छा से करते हुए किसी नियम में बंधना भी रिश्ते में तनाव का कारण हो सकता है।” डॉक्टर प्राजक्ता बताती हैं कि बच्चे के जन्म के बाद काम और स्ट्रेस तो बढ़ता है, लेकिन अभिभावकों में बॉन्डिंग मजबूत भी होती है। यदि अभिभावक के विचार बच्चे के लालन-पालन में मेल नहीं खाते, तो टकराव संभव है। तीसरे के अपने जीवन में आने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि आने वाली इस जिम्मेदारी को उठाने के लिए दोनों सामान रूप से तैयार हैं
मनोचिकित्सक और थेरेपिस्ट डॉक्टर सुरेश देशमुख के अनुसार, प्रसन्नता, दुख, क्रोध, ईर्ष्या और अपराधबोध सामान्य मनोभाव हैं। अपने पार्टनर को अपने इमोशंस दिखाने से रोकना लंबे रिश्ते के लिए अच्छा नहीं होगा। बहस जरूरी है, लड़ाई होना भी ठीक है, पर तभी जब आप जीतने के लिए नहीं, कॉमन ग्राउंड पर पहुंचने के लिए लड़ रहे हों। अपने पार्टनर को अपना गुस्सा दिखाएं, पर अपने इमोशंस को प्रकट करने के सही तरीके भी सीख लें। जब पत्रकार मीता ने एक आर्मी अफसर अजय से डेटिंग शुरू की तो कई लोगों ने कहा कि उसे अपने जैसे काम करने वाले से विवाह करना चाहिए। मीता बताती है कि हम दोनों की दुनिया बिल्कुल अलग थी और हमारे लाइफ स्टाइल्स बिलकुल मैच नहीं करते थे। हमारे व्यक्तित्व बिल्कुल अलग थे। अजय अंतर्मुखी था, मैं बहिर्मुखी। उसे घर पर रहना पसंद था और मुझे बाहर घूमना, फिल्म देखना। वह आज घर पर रहकर खुश रहता है और मैं घूमती फिरती रहती हूं। हम एक-दूसरे की इच्छाओं को मान देते हैं, कहीं कोई परेशानी नहीं होती है, हम दोनों खुश हैं। डॉक्टर देशमुख का कहना है कि यह एक भ्रम है कि एक जैसे शौक और रुचिवाले पति-पत्नी ज्यादा सुखी रहते हैं।
आजकल कई मैचमेकिंग साइट्स एक जैसे शौक वाले पार्टनर्स ढूंढ देती हैं, पर एक फील्ड का न होने पर भी अगर एक-दूसरे की भावनाओं की कद्र की जाए तो टकराव की गुंजाइश नहीं है। अपना अनुभव बताते हुए पीआर प्रोफेशनल रूपा हेगड़े कहती हैं, “मैंने अपने लिए एक अलग ही जीवनसाथी की तस्वीर बना रखी थी। मेरा आदर्श पार्टनर मेरी तरह आउटगोइंग, सामाजिक और बिंदास जीने वाला होगा। अब विवाह के एक साल बाद मुझे लगता है कि ये चीजें लॉन्ग टर्म में मायने नहीं रखतीं, मेरे पति मुझसे छह साल बड़े हैं और जीवन के प्रति उनके विचार मुझसे बिल्कुल अलग हैं। मायने यह रखता है कि हम दोनों अपने रिश्ते में एक-दूसरे के लिए कितने समर्पित हैं। मैंने यह भी महसूस किया है कि विवाह में आपसी मेल के अलावा और भी बहुत कुछ महत्वपूर्ण होता है। आपको अपना घर मैनेज करना आना चाहिए। आप महत्वपूर्ण फैसलों में अपने पार्टनर को शामिल करें।” डॉ. देशमुख के अनुसार, दोनों को इस रिश्ते में बहुत प्यार और सहयोग देना होता है। हर विवाह में अच्छे बुरे दिन आते रहते हैं, लेकिन रिश्ते की मजबूती दोनों पार्टनर्स की इस रिश्ते को चलाने की कोशिशों पर ही निर्भर करती है।