10 अक्टूबर 2015 को शनिवार है। इस दिन शुभ वि.सं.: 2072, संवत्सर नाम: कीलक, अयन: दक्षिण, शाके: 1937, हिजरी: 1436, मु. मास: जिलहिज-25, ऋ तु: शरद्, मास: आश्विन, पक्ष: कृष्ण है। शुभ तिथि: त्रयोदशी जया संज्ञक तिथि रात्रि 12.17 तक, तदन्तर चतुर्दशी रिक्ता संज्ञक तिथि प्रारम्भ हो जाएगी।
त्रयोदशी तिथि में जनेऊ को छोड़कर समस्त शुभ व मांगलिक कार्य, यात्रा, प्रवेश, युद्ध, वस्त्रालंकार आदि सभी कार्य शुभ व सिद्ध होते हैं। पर कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी में चन्द्रमा क्षीण होता है। जो दोष कारक है। वैसे भी अभी श्राद्धपक्ष है। जो शुभ व मांगलिक कार्यों में वर्जित हैं। चतुर्दशी रिक्ता संज्ञक तिथि में शुभ व मांगलिक कार्य सर्वथा वर्जित कहे गए हैं। पर अग्निविषादिक असद् कार्य, बन्धन व शस्त्रादि दूषित कार्य सिद्ध होते हैं। त्रयोदशी तिथि में जन्मा जातक सामान्यत: धनवान, विद्यावान, पराक्रमी, परोपकारी, बुद्धिमान व मान-सम्मान पाने वाला होता है।
नक्षत्र: पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र सायं 7.24 तक, तदुपरान्त उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में यथा आवश्यक उग्र व अग्निविषादिक असद् कार्य, क्रूर व कठिन कार्य, कपटता, कारीगरी, शिल्प, चित्र व विद्यादि कार्य करने योग्य हैं। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में यदि समयादि शुद्ध हो तो विवाह, यज्ञोपवीत, स्थिरता, अलंकार, गृहारम्भ व प्रवेश आदि के कार्य शुभ होते हैं। पर अभी श्राद्धपक्ष में शुभ व मांगलिक कार्य वर्जित हैं। पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में जन्मा जातक प्रत्येक कार्य में निपुण, होशियार, शत्रुजयी, विद्यावान, बड़े लोगों से सम्बन्ध रखने वाला, सरकारी कार्यों से सम्बन्ध रखने वाला तथा राज-समाज में मान-सम्मान प्राप्त करने वाला होता है। इनका भाग्योदय लगभग 28 से 32 वर्ष की आयु में हो जाता है।
योग: शुक्ल नामक योग रात्रि 8.17 तक, तदन्तर ब्रह्म नामक योग रहेगा। दोनों ही नैसर्गिक शुभ योग हैं। करण : गर नाम करण प्रात: 10.58 तक, इसके बाद रात्रि 12.17 तक वणिज नामकरण, तदन्तर भद्रा प्रारम्भ हो जाएगी। चन्द्रमा: चन्द्रमा अर्द्घ रात्रि के बाद 2.11 तक सिंह राशि में, इसके बाद कन्या राशि में रहेगा। व्रतोत्सव: शनिवार को शनि प्रदोष व्रत, तेरस का श्राद्ध तथा कलियुगादि तिथि है।
शुभकार्यारम्भ मुहूर्त: उपर्युक्त शुभाशुभ समय, तिथि, वार, नक्षत्र व योगानुसार शनिवार को किसी शुभ व मांगलिक कार्यादि के शुभ व शुद्ध मुहूर्त नहीं हैं। वारकृत्य कार्य: शनिवार को सामान्यत: लोहा, पत्थर, सीसा, रांगा सम्बन्धी कार्य, अस्त्र-शस्त्र, नौकरी व नौकर रखना, पशुपालन, मन्त्रदीक्षा आदि स्थिर कर्म करने योग्य हैं। यदि समय शुद्ध व शुभ हो तो गृहप्रवेश भी शुभ रहता है। पर कृषि सम्बन्धी कार्य शुभ नहीं रहते।