एफएटीएफ ने दी पाकिस्तान को और चार माह की मोहलत
कोविड-19 ने दी पाकिस्तान को राहत, एफएटीएफ ने आतंकी वित्त पोषण को रोकने के लिए दिए और चार माह
नई दिल्ली: 28 अप्रैल को पेरिस स्थित फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने आर्थिक बदहाली और कोरोनावायरस के प्रकोप को झेल रहे पाकिस्तान को 4 माह की रियायत देते हुए कहा कि पाकिस्तान आतंक के वित्त पोषण से संबंधित गतिविधियों को रोकने की डेडलाइन में इस महामारी में अपनी दयनीय हालत के चलते 4 माह की छूट प्राप्त करेगा। पाकिस्तान के अलावा अन्य देश भी जो फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के वॉच लिस्ट में शामिल हैं, उन्हें भी आतंक वित्त पोषण को रोकने के लिए अतिरिक्त समय देने की बात की गई है। इसका कारण यह है कि कोरोनावायरस के संक्रमण के दर से फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के कर्मचारी भी किसी दूसरे देश में जाकर कोई भी निरीक्षण करने में असमर्थ हैं। इसके साथ ही इस वैश्विक संगठन ने यह भी कहा कि आतंक के वित्त पोषण, ब्लैक मनी, मनी लांड्रिंग से निपटने की प्रतिबद्धता में कोई कमी नहीं आएगी। एक वक्तव्य में इसने यह कहा है कि यह आतंक के अवैध स्रोतों से वित्त पोषण को रोकने से संबंधित कार्यवाही पर कोविड-19 संकट के प्रभाव का लगातार मूल्यांकन कर रहा है। जून, 2020 में एफएटीएफ की प्रस्तावित बैठक के अब इस महामारी के चलते अक्टूबर में होने की संभावना है। बैठक टलने की वजह से पाकिस्तान को एफएटीएफ की ओर से दिए गए लक्ष्य को पूरा करने के लिए और समय मिल गया है और उस पर ब्लैक लिस्ट में रखे जाने का खतरा टल गया है।
फ़रवरी माह में ग्रे लिस्ट में ही रखने का किया था निर्णय:
वैश्विक आतंकवाद वित्तपोषण निगरानी संस्था एफएएटीएफ ने 21 फरवरी, 2020 को पाकिस्तान को ‘ग्रे सूची’ में ही रखे रहने का फैसला किया है लेकिन साथ ही एफएएटीएफ ने पाकिस्तान को चेतावनी दी थी कि अगर वह लश्कर—ए—तैयबा और जैश—ए—मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों को धन देना बंद नहीं करता तो उसे कड़ी कार्रवाई का सामना करना होगा।
वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (एफएटीएफ) ने आतंक के खिलाफ पाकिस्तान के काम से नाखुशी जाहिर करते हुए जून 2020 तक ग्रे लिस्ट में बने रहने की अवधि को बढ़ा दिया था। एफएटीएफ ने पाक को चेतावनी दी और 27 सूत्रीय कार्ययोजना पर जून, 2020 से पहले अनुपालन करने के लिए कहा है। पाकिस्तान अगर आतंक को रोकने के लिए प्रभावी काम नहीं करता है तो उसे जून 2020 में कठोर दंडात्मक कार्यवाही करते हुए ब्लैकलिस्ट करने की बात की गई थी। चीन, मलेशिया और तुर्की की मदद से पाकिस्तान ब्लैक लिस्ट होने से तो बच गया, लेकिन उसे ग्रे लिस्ट से बचने के लिए 13 देशों के समर्थन की दरकार थी, जो उसे नहीं मिला। चीन और सऊदी अरब जैसे देशों ने ग्रे लिस्ट से पाकिस्तान को बचाने के लिए दम खम दिखाने का प्रयास नहीं किया। इसके साथ ही आतंकी संगठनों के अर्थतंत्र पर प्रहार के लिए बने अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन न करने पर ईरान को एफएटीएफ (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) की ब्लैक लिस्ट में बनाए रखा है। अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते ईरान पहले से ही अंतरराष्ट्रीय बाजार से दूर हो चुका है। एफएटीएफ की ब्लैक सूची में बने रहने से उसकी आर्थिक मुश्किलें और बढ़ जाएंगी। एफएटीएफ की ब्लैक लिस्ट में ईरान के अलावा अन्य देश उत्तर कोरिया है। ईरान की यह स्थिति बीते तीन साल से दिए जा रहे दिशानिर्देशों के बाद भी बनी हुई है। इससे पहले एफएटीएफ ईरान से लगातार अनुरोध करता रहा है कि वह आतंकियों को मिलने वाले धन की रोकथाम के अंतरराष्ट्रीय समझौतों का पालन करे। ईरान को ब्लैक लिस्ट में बने रहने से बैंकों और आर्थिक संस्थाओं से उसके लेन-देन की और कड़ाई से समीक्षा होगी। ईरान से संबंधित आर्थिक संस्थाओं की गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखी जाएगी। ईरान के बैंकों और कारोबारों पर दबाव बढ़ाया जाएगा।
पाकिस्तान के आतंकी वित्त पोषण पर नियंत्रण के प्रयासों का समग्र अवलोकन :
जनवरी, 2020 में आस्ट्रेलिया ने पाकिस्तान की ग्रे-लिस्टिंग का समर्थन करते हुए कहा था कि पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट में शामिल करने पर विचार किया जाना चाहिए। साथ ही आस्ट्रेलिया ने यह भी कहा था कि वह आतंक के खिलाफ लड़ाई में भारत के साथ खड़ा है। इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया ने आतंक के वित्त पोषण के मामले को एक बार फिर से प्रकाश में ला दिया है। गौरतलब है कि 16 से 21 फरवरी तक फ्रांस की राजधानी पेरिस में मीटिंग फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की बैठक आयोजित की गई थी। इस मीटिंग में पाकिस्ता्न की तरफ से 27 बिंदुओं वाले एक्शकन प्लाैन को लागू करने पर चर्चा की गई। पाकिस्तािन को जून 2018 में ग्रे लिस्टं में डाला गया था। एफएटीएफ की तरफ से यह कदम तब उठाया गया था जब पाक लश्कार-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मरद (जैश), तालिबान और अल-कायदा जैसे संगठनों को मिलने वाली आर्थिक मदद को रोकने में नाकामयाब रहा था।
वास्तव में अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं और विभिन्न राष्ट्र मजबूत इच्छा शक्ति और समाधान केंद्रित निर्णय और कार्यवाही पर ध्यान दें तो परिणाम के रूप में ऐसा ही कुछ सामने दिखता है जैसा फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की बैठक में ब्लैकलिस्ट होने से बचने के लिए पाकिस्तान की बेचैनी और हताशा समय समय पर दिख रही है। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की कुछ समय पूर्व हुई बैठक में पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट नहीं करने का निर्णय लेते हुए उसे फरवरी 2020 तक ग्रे लिस्ट में ही रखने का निर्णय किया गया था। पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट होने के संकट से बचाने में चीन, मलेशिया और टर्की ने अहम भूमिका निभाई है। इन देशों का मानना है कि आतंक के वित्त पोषण को रोकने के लिए पाकिस्तान प्रभावी उपाय करने में लगा हुआ है। इन देशों को लगता है पाकिस्तान में सब ठीक है। नियमानुसार किसी देश को ब्लैक लिस्ट होने से रोकने के लिए एफएटीएफ में तीन सदस्य देशों को ऐसा प्रस्ताव करना होता है। वैश्विक स्तर पर हथियारों की तस्करी, अस्त्र शस्त्रों की खरीद फरोख्त को तरजीह देने, ब्लैक मनी और मनी लॉन्ड्रिंग, टेरर फंडिंग को समस्या ना मानने वाले समान विचारधारा वाले देश ही गलत संदर्भों में भी एक दूसरे को बचाने की कोशिश करते हैं। इसलिए यह कहते बनता है कि आतंक के धंधे पर चोट पर चीन, मलेशिया और टर्की के मन में खोट।
क्या हैं ग्रे लिस्ट में रहने के मायने :
जब कोई देश ग्रे लिस्ट में शामिल कर लिया जाता है तो उसे निम्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है…
- अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों (विश्व बैंक, आईएमएफ, एशियाई विकास बैंक इत्यादि) और देशों के आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है।
- अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों और देशों से ऋण प्राप्त करने में समस्या आती है।
- इसके अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में कमी आती है और अर्थव्यवस्था कमजोर होती है।
- पूर्णरूप से अंतर्राष्ट्रीय बहिष्कार का सामना करना पड़ सकता है।
आतंकी फंडिंग को रोकने में विफल रहने पर एफएटीएफ की संभावित कार्रवाई से घबराए पाकिस्तान ने 10 अक्टूबर, 2019 को आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा के चार सरगनाओं को गिरफ्तार किया था। पाकिस्तान प्रशासन ने दावा किया था कि आतंकी फंडिंग के मामले में लश्कर-ए-तैयबा और हाफिज सईद के संगठन जमात उद दावा (जेयूडी) के पूरे शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी। पाकिस्तान ने जिन चार लोगों को गिरफ्तार करने का दावा किया है उनमें शामिल हैं प्रोफेसर जफर इकबाल, याहा अजीज, मोहम्मद अशरफ और अब्दुल सलाम। ये सभी हाफिज सईद के प्रतिबंधित संगठन जेयूडी से जुड़े हुए हैं। पाकिस्तान द्वारा दक्षिण एशिया और वैश्विक शांति के पक्ष में ऐसी दरियादिली दिखाने की वजह 13 से 18 अक्टूबर के बीच एफएटीएफ की बैठक के निर्णय के मद्देनजर सता रहा डर है। पाकिस्तान को तुर्की, मलेशिया और चीन से इस संबंध में मदद की आस है जिसकी गुहार भी पाकिस्तान ने इन देशों से लगाई है।
संयुक्त राष्ट्र में इस्लामोफोबिया की बात कर पाक पीएम ने मुस्लिम देशों को साधने की कोशिश भी की थी। गौरतलब है कि फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के एशिया पैसिफिक ग्रुप ने एफएटीएफ से पहले ही पाकिस्तान को टेरर फंडिंग के मामले में ब्लैक लिस्ट में अगस्त, 2019 में डाल दिया था। किस्तान के मंसूबों पर पानी फेरने के हिसाब से भारत के लिए यह एक अच्छी खबर थी। एफएटीएफ ने तो पाकिस्तान को अक्टूबर, 2019 तक का समय दिया था जिससे वो आतंक के वित्त पोषण को रोकने संबंधी अपनी कार्य योजना को अमल में ला सके और ब्लैकलिस्ट होने से अपने को बचा सके लेकिन एशिया पैसिफिक ग्रुप को शायद पाकिस्तान के किसी वायदे पर यकीन नहीं था। पहली बार ऐसा लगा कि जितना आतंकी बेसब्र होता है आतंक करने के लिए, उतना ही बेसब्र आतंकवाद पर नियन्त्रण लगाने वाले संगठन हो रहे हैं। वाकई में अगर आतंकी गतिविधि पर नकेल लगाने की इस तरह की कवायद जैसी अभी राष्ट्रों और वैश्विक संगठनों में है और यह ऐसे ही जारी रही तो आने वाले दिनों में आतंकवादी क्या पता डायनासोर बन जाए, हम म्यूज़ियम में उनका बुत देखें।
पाकिस्तान पर नकेल कसने के लिए इन्हीं संदर्भों में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की इकाई एशिया पैसिफिक ग्रुप ने जो फैसला लिया था उसके पीछे उसने तर्क दिया था कि मनी लांड्रिंग और आंतक के वित्त पोषण के नियन्त्रण के बारे में जो सेफगार्ड यानि सुरक्षोपाय बनाए गए हैं उनसे संगति रखने और उनको लागू करने में पाकिस्तान असफल रहा है। तकनीकी भाषा में इसे नॉन कॉम्प्लायंस और नॉन एनफोर्समेंट (गैर अनुरूपता, अनुपालन और गैर प्रवर्तन) कहते हैं। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने पहले से ही इन आरोपों के आधार पर पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाल रखा है। एशिया पैसिफिक ग्रुप के द्वारा पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट किए जाने अथवा उसे एनहैंस्ड एक्सपीडिटेड फॉलो अप स्टेटस देने का मतलब यह है कि पाकिस्तान के पास अब यह अवसर भी नहीं बचेगा कि वो अपने को ग्रे लिस्ट से निकाल पाए।
एशिया पैसिफिक ग्रुप की अंतिम रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान अपने कानूनी और वित्तीय प्रणालियों के 40 कम्प्लायंस पैरामीटर यानि अनुपालन मानकों में से 32 में पूरी तरीके से असफल रहा है। वहीं दूसरी तरफ वह संयुक्त राष्ट द्वारा मान्यता प्राप्त इकाइयों, अभिकरणों और अन्य गैर सरकारी संगठनों के द्वारा आतंक के वित्त पोषण और मनी लांड्रिंग के खिलाफ जो सेफगार्ड को लागू करने के जो 11 प्रभावी मानदंड बनाए गए हैं, उनमें से 10 में पूरी तरह असफल रहा है।
एक तरफ जब पाकिस्तान की आज़ादी का जश्न 14 अगस्त को मनाया गया उसी के बाद पाकिस्तान ने एशिया पैसिफिक ग्रुप को ऐसे सेफगार्ड्स को लागू करने की दिशा में अपने द्वारा किए जाने वाले कामकाज संबंधी 450 पेज का अनुपालन दस्तावेज प्रस्तुत किया। पाकिस्तान का इसमें दावा था कि उसने लश्कर ए तैयबा, जमात उद दवा प्रमुख हाफ़िज़ सईद के ख़िलाफ़ अभियोग दायर किया है और जमात उद दवा की सभी परिसंपत्तियों को जब्त कर लिया है। पाकिस्तान ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि इस साल उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के द्वारा प्रतिबंधित आतंकी समूहों की परिसंपत्तियां ज़ब्त कर ली हैं। गौरतलब है कि फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने पाकिस्तान के लिए जिस 27 सूत्रीय कार्य योजना का निर्धारण किया था उसके संदर्भ में पाकिस्तान द्वारा पेश किए गए अनुरूपता दस्तावेज की समीक्षा की जाएगी जिसके बाद तीन तरह के निर्णय आ सकते हैं, पहला यह कि उसे ग्रे लिस्ट से निकाला नहीं जाए, दूसरा,उसे इससे निकाला जाए और तीसरा इसे ब्लैकलिस्ट किया जाए।
इस दिशा में भारत की भूमिका:
भारत फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स और उसके एशिया पैसिफिक ग्रुप दोनों का ही सदस्य है और पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग थलग करने के प्रयास में लगा हुआ है। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की वार्ताओं में भारत के वित्त मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय के अधिकारी शामिल होते हैं। पाकिस्तान के आतंकी वित्त पोषण के मुद्दे के विषय पर समीक्षा कराने की बात यूएस, यूके,जर्मनी और फ्रांस ने की है।
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने पूर्व में पाकिस्तान को अक्टूबर, 2019 तक का समय दिया था और कहा था कि वह आतंक के वित्त पोषण का घिनौना काम बंद करे। उसके बाद इसी वर्ष के मध्य में जारी टास्क फोर्स की रिपोर्ट में पाकिस्तान को चेतावनी दी गई थी कि वह आतंक का वित्त पोषण बंद करे अथवा प्रतिबंधों के लिए तैयार रहे।
इसने पहले से ही पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में शामिल कर रखा है लेकिन भारत जो कि फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स का सदस्य है, चाहता है कि पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट किया जाए। पाकिस्तान को टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग थलग करने का प्रयास जारी है। फ्लोरिडा के ओरलैंडो में आयोजित बैठक के समापन पर जारी एक वक्तव्य में एफएटीएफ ने चिंता जाहिर की है कि पाकिस्तान ना केवल जनवरी की समय सीमा के साथ अपने ऐक्शन प्लान को पूरा करने में विफल रहा है, बल्कि वह मई 2019 तक भी अपने कार्य योजना को पूरा करने में विफल रहा है।’ इसलिए एफएटीएफ ने ‘कड़ाई’ से पाकिस्तान से अक्टूबर 2019 तक अपने ऐक्शन प्लान को पूरा करने को कहा है।
गौरतलब है कि पाकिस्तान पिछले एक साल से ग्रे लिस्ट में है और उसने इस टास्क फोर्स से पिछले साल जून में ऐंटी-मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फंडिंग मेकेनिज्म को मजबूत बनाने के लिए उसके साथ काम करने का वादा किया था। तब उनके बीच तय समय सीमा के अंदर 10 सूत्रीय कार्य योजना पर काम करने की सहमति बनी थी। ऐक्शन प्लान में जमात-उद-दावा, फलाही-इंसानियत, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हक्कानी नेटवर्क और अफगान तालिबान जैसे आतंकवादी संगठनों की फंडिंग पर लगाम लगाने जैसे कदम शामिल थे। पाकिस्तान फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के सदस्य देशों से समर्थन हेतु लगातार कूटनीतिक कोशिशें कर रहा है जिसके चलते वह ग्रे लिस्ट से ब्लैकलिस्ट में पहुंचने से बच गया। पाकिस्तान टास्क फोर्स के सदस्य देशों तुर्की, चीन और मलेशिया से समर्थन प्राप्त करने में सफल रहा। टास्क फोर्स के चार्टर के तहत, ब्लैकलिस्टिंग से बचने के लिए कम से कम तीन सदस्य देशों का समर्थन मिलना जरूरी है। कुछ समय पहले एशिया-पैसेफिक ग्रुप (एपीजी) ने पाकिस्तान की वित्तीय व्यवस्था और सुरक्षा स्थिति का मूल्यांकन करने के बाद आतंकी संगठनों की फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग को लेकर खतरे को उजागर किया था। एशिया-पैसेफिक की रिपोर्ट के बाद टास्क फोर्स ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाल दिया था। वर्तमान में एशिया-पैसिफिक ग्रुप (एपीजी) और एफएटीएफ दोनों संगठनों में शामिल भारत, अमेरिका और ब्रिटेन के साथ मिलकर पाकिस्तान को एफएटीएफ से ब्लैकलिस्ट कराने के लिए कोशिशें कर रहा है, क्योंकि अब तक पाकिस्तान वित्तीय अपराधों को रोकने और आतंकी संगठनों की फंडिंग रोकने में असफल रहा है। एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में आने से बचने के लिए पाकिस्तान को 36 वोटों में से 15 वोटों की जरूरत थी।
पाकिस्तान का कहना है कि लंदन पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से निकालने में मदद देने के लिए तैयार हो गया है। पाकिस्तान ने कहा है कि उसने आतंकी संगठनों की फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के लिए तीन अहम कदम उठाए हैं जिसमें बिना टैक्स नंबर के विदेशी करेंसी के लेन-देन पर रोक, आईडी कार्ड की कॉपी जमा किए बिना खुले करेंसी बाजार में 500 डॉलर से अधिक करेंसी चेंज पर बैन, कई आतंकी समूहों पर प्रतिबंध और उनकी संपत्ति जब्त करना शामिल है।
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने पाकिस्तान से पूछा है कि मूल से लश्कर—ए—तैयबा, जैश—ए—मोहम्मद, जमात—उद—दवा और फलाह ए इंसानियत फाउंडेशन द्वारा जिन स्कूलों, मदरसों, क्लिनिक्स और एंबुलेंस का रख रखाव किया जा रहा रहा है और जिसके लिए पाकिस्तान को 7 मिलियन डॉलर दिए गए हैं, क्या उसकी कोई जांच की कार्यवाही पाकिस्तान ने की है। जमात उद दवा और फलह—ए—इंसानियत हाफ़िज़ सईद जैसे आतंकी द्वारा गठित किए गए हैं। लश्कर—ए—तैयबा को ही 2008 के मुंबई बम ब्लास्ट और 1999 में भारतीय वायुयान को हाईजैक कर अफगनिस्तान ले जाने का आरोपी माना जाता है। लश्कर—ए—तैयबा को ही पुलवामा के 40 जवानों की हत्या का दोषी माना गया है। इन सबके बावजूद फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के 27 में से 25 मानदंडों को पूरा करने में पाकिस्तान असफल रहा। इस स्थिति में आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक, एडीबी और यूरोपीयन यूनियन साथ ही क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों मूडीज, फिच और एसएंडपी के द्वारा भी पाकिस्तान को डिग्रेड करने की संभावना बनी हुई है। पाकिस्तान ने आतंकी संगठनों और उनके मुखियाओं के खिलाफ मेंटेनेंस ऑफ पब्लिक ऑर्डर एक्ट के तहत कार्रवाई की है ना कि एंटी टैरोरिज़्म एक्ट, 1997 के तहत। यह पाकिस्तान की मंशा पर सवाल खड़े करने के लिए काफी है।
मेंटेनेंस ऑफ पब्लिक ऑर्डर एक्ट के तहत प्रावधान है कि प्राधिकारी किसी भी निरुद्ध व्यक्ति को 60 दिनों से अधिक समय तक के लिए नजरबंद नहीं रख सकते। पाकिस्तान ने मसूद अजहर और हाफ़िज़ सईद पर अभियोग शांति के भंग करने के आरोप पर चलाया है ना कि आंतक निरोधी कानूनों के तहत ऐसा किया गया है। भारत ने पाकिस्तान के इस दोहरे मानदंड को समय समय पर तोड़ने की कोशिश की है और टास्क फोर्स को अपने विश्वास में लेकर आर्थिक अपराधों से भी निपटने के प्रस्ताव किए हैं। इसी क्रम में भारत ने 2018 में जी 20 की समिट में आर्थिक भगोड़े अपराधियों से निपटने के लिए 9सूत्रीय एजेंडा देते हुए प्रस्ताव किया था कि फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स इसकी एक निश्चित परिभाषा दे और मानक तय करे।
सऊदी अरब के फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के सदस्य बनने के मायने:
सऊदी अरब को हाल ही में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की पूर्ण सदस्यता प्रदान की गई है। सऊदी अरब पहला अरब देश बन गया है जिसे ऐसी सदस्यता मिली है। अमेरिका में आयोजित समूह की वार्षिक बैठक के बाद सऊदी अरब को यह अवसर प्राप्त हुआ है। सऊदी प्रेस एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, 1989 में समूह की पहली बैठक की 30वीं वर्षगांठ पर वैश्विक धन शोधन रक्षक के रूप में उसे इस टास्क फोर्स में शामिल किया गया है। सऊदी अरब की इस टास्क फोर्स में सदस्यता कई मायनों में दक्षिण एशिया में आतंक के वित्त पोषण को नियंत्रित करने में एक कारगर कदम साबित हो सकती है। चूंकि इस टास्क फोर्स में खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के छः सदस्यों के ब्लॉक के अलावा एक ब्लॉक के रूप में यूरोपियन कमीशन भी सदस्य है, इसलिए यह इन सभी सदस्यों के फंडिंग मैकेनिज्म को तार्किक बनाने में मददगार साबित होगा। सऊदी अरब इस टास्क फोर्स के पूर्ण सदस्य के रूप में किसी देश को अनुदान, ऋण देने से पहले सोचेगा कि कहीं इसका इस्तेमाल प्राप्तकर्ता देश आतंकी गतिविधियों को चलाने में तो नहीं करेगा। चूंकि गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल एक क्षेत्रीय ब्लॉक के रूप में टास्क फोर्स का सदस्य है तो संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, बहरीन, ओमान और कतर पर भी दबाव पड़ेगा कि वो पाकिस्तान जैसे देश को आर्थिक मदद देने के पहले सुनिश्चित कर लें कि पाकिस्तान ऐसे धन का क्या इस्तेमाल करने वाला है। ऐसे में 1999 में संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में आतंकी गतिविधियों हेतु टेरर फंडिंग और ट्रांसफर को रोकने के लिए किए गए अभिसमय को प्रभावी तरीके से लागू करने की जरूरत है।
(लेखक अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं)