इन मुहूर्तों में जन्में व्यक्तियों को मिलती हैं अपार कामयाबियां, जानिए
ज्योतिषशास्त्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि कोई भी जातक शुभ मुहूर्त में कार्य आरंभ करता है तो सफलता उसके कदम चूमती है, किन्तु अशुभ मुहूर्त में किये गए कार्यों का परिणाम संतोषप्रद नही रहता। अब मन में सवाल उठता है कि मुहूर्त जानने के लिए हर समय आप कहां-कहां भागेंगे, किन्तु अपनी दिनचर्या में लगे रहकर भी यदि आप थोड़ा भी वक्त निकालें तो इस सवाल का जवाब आसानी से मिल जाएगा।
जिस तरह दिन रात में 24 घंटे 12 राशियां लग्न विचरण करती हैं उसी प्रकार दिन और रात के मध्य 30 मुहूर्त भी घटित होते हैं। ये मुहूर्त अपने-अपने नाम और उनके गुणों के अनुसार अपने मध्य किए गए कार्यों का शुभा-शुभ फल ही नहीं देते अपितु मुहूर्तो के मध्य पैदा लोगों का जीवन भी इससे प्रभावित होता है। देखा गया है कि शुभ मुहूर्त में जन्मा जातक कामयाबियों के चरम पर होता है जबकि, अशुभ मुहूर्त में जन्म लेने वाला जातक जीवन में भारी संघर्ष एवं उतार-चढ़ाव का सामना करता है, वह जितनी भी मेहनत करता है उसके अनुसार उसका फल नहीं मिलता अतः जन्म कुंडली का फलादेश करते समय यदि जातक के जन्म के समय क्षितिज को स्पर्श कर रहे मुहूर्त पर भी ध्यान दिया जाए तो फलादेश और सटीक रहेगा।
राहुकाल
यह सर्वविदित है कि कोई भी शुभ कार्य करने से पहले राहुकाल का विशेष ध्यान रखा जाता है कहा जाता है कि राहुकाल में कार्य करने से कोई कार्य समय पर नहीं होता और हानि भी उठानी पड़ सकती है किंतु, सर्वार्थ सिद्धि, अमृतसिद्ध के साथ ही गुरुपुष्य और रविपुष्य योगों में शुरू किए गए कार्यों को करने में कामयाबी अवश्य मिलती है। इसी प्रकार हीरे-जवाहरात, वाहन, विलासिता के सामान एवं महंगी वस्तुओं के खरीदने के लिए द्विपुष्कर व त्रिपुष्कर योग महत्वपूर्ण माने गये हैं।
मुहूर्त का अभाव होने पर
मुहूर्त प्रतिदिन मिले ये जरूरी नहीं है कभी-कभी इनके मध्य सप्ताह या इससे भी अधिक का अंतराल आ जाता है। यदि आप कोई भी कार्य आरंभ करना चाह रहे हों और मुहूर्त का अभाव हो तो कैसे करें इसका जवाब हम यहां दे रहे हैं। 1 दिन के 24 घंटों में 30 शुभ-शुभ मुहूर्त जिनमें 15 दिन के और 15 रात्रि के होते हैं। दिन के मुहूर्तों में गिरीश, भुजंग, मित्र, पितृ, वशु, अम्बु, विश्वेदेव, अभिजित, ब्रह्मा, इंद्र, अग्नि, निर्ॠति, उदकनाथ, अर्यमा और भग हैं। रात्रि के मुहूर्त शिव, अजपाद, अहिर्बुध्न पूषा, अश्विनी कुमार, अग्नि, ब्रह्मा, चंद्र, अदिति, बृहस्पति, विष्णु, सूर्य, त्वष्टा और मरुत हैं।
इन मुहूर्तों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि, जिस दिन जिस नक्षत्र में जो कर्म कहा गया है, यदि वह मुहूर्त न मिल रहा हो तो उस नक्षत्र के स्वामी के मुहूर्त के मध्य संबंधित कार्य आरंभ किया जा सकता है। मुहूर्तों का किन-किन नक्षत्रों पर अधिकार है वह किस नक्षत्र के स्वामी है इसे थोड़ा सा प्रयास करके आप स्वयं ही जान सकते हैं और अपने लिए शुभ मुहूर्त का निर्धारण कर सकते हैं।
नक्षत्र और उनके स्वामी
अश्विनी नक्षत्र के स्वामी अश्विनी कुमार, भरणी के यम, कृतिका के अग्नि, रोहिणी के ब्रह्मा, मृगशिरा के चंद्रमा, आर्द्रा के रूद्र, पुनर्वसु के अदिति, पुष्य के बृहस्पति, आश्लेषा के उदकनाथ, मघा के पितृ, पूर्वाफाल्गुनी के भग, उत्तराफाल्गुनी के अर्यमा, विशाखा के इंद्र, अनुराधा के मित्र, ज्येष्ठा के इंद्र, मूल के निर्ॠति, पूर्वाषाढ़ा के उदकनाथ, उत्तराषाढ़ा के विश्वदेव, अभिजीत के ब्रह्मा, श्रवण के विष्णु, धनिष्ठा के वसु, शतभिषा के वरुण, पूर्वाभाद्रपद के अजपाद, उत्तराभाद्रपद के अहिर्बुध्न्य, और रेवती के पूषा हैं। आप जिस मुहूर्त में जो कार्य करना चाहें वह नक्षत्र उस दिन नहीं हो तो उस नक्षत्र के स्वामी के मुहूर्त में कार्य को अंतिम रूप दे सकते हैं।