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बीएसएफ ने चलाए बख्तरबंद ट्रैक्टर
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हीरानगर/श्रीनगर : जम्मू कश्मीर के कठुआ जिले में सीमा सुरक्षा बल और नागरिक प्रशासन के संयुक्त प्रयास से अंतरराष्ट्रीय सीमा की ‘जीरो लाइन’ पर 18 वर्ष के अंतराल के बाद खेती शुरू हुई।कड़ी सुरक्षा के बीच बीएसएफ ने बख्तरबंद ट्रैक्टर से खेतों की जुताई शुरू की। प्रशासन और बीएसएफ के सहयोग से करीब दो दशक बाद हजारों एकड़ जमीन पर फसलें उगेंगी। खेती न होने के चलते जमीन पर झाड़ियां, सरकंडे उग चुके हैं, जिन्हें हटाकर इस साल खेती का सारा जिम्मा बीएसएफ और प्रशासन के पास है। अगले साल से जमीन खेती के लिए पूरी तरह से किसानों को सौंप दी जाएगी। पहले दिन चार ट्रैक्टरों से खेत जोते गए।
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गौरतलब है कि पहाड़पुर से हीरानगर सेक्टर में स्थित लोंदी तक बाड़ के समीप 22 सीमावर्ती जिलों में फैली 8 हजार एकड़ भूमि में पाकिस्तान की ओर से आए दिन होने वाले संघर्ष विराम समझौते के उल्लंघन के चलते सीमा पर रहने वाले निवासी नहीं जाते। यहां उगने वाली जंगली वनस्पति से पाकिस्तान की ओर से आने वाले घुसपैठियों को छुपने और सुरंग बनाने में सहायता मिलती है। रविवार को बैठक के दौरान डीसी ने आश्वासन दिया था कि तारबंदी के आगे जमीन पर खेती का काम जल्द शुरू किया जाएगा। पहली बार यहां प्रशासन बीएसएफ के सहयोग से खेती करेगी। उसके बाद किसान खुद यहां खेती कर सकेंगे। मंगलवार को डीसी ने स्वयं यहां पहुंचकर सुबह करीब 10 बजे जुताई का काम शुरू कराया। बीएसएफ के चार ट्रैक्टर जुताई में जुट गए, यहां से सरकंडे को साफ करने में भी कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। काम शुरू कराने के बाद डीसी ने पोस्ट में बीएसएफ के अधिकारियों से बैठक की और सहयोग के लिए धन्यवाद किया।
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बीएसएफ की 97 बटालियन के सीओ सत्येंद्र गिरी ने कहा कि इस काम को करने में पूरा सहयोग रहेगा। किसानों को खेतों में जाने के लिए सुरक्षा भी मुहैया कराई जाएगी। बैठक के दौरान बीडीसी के चेयरमैन कर्ण कुमार, बॉर्डर यूनियन के अध्यक्ष नानक चंद, पंच एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक शर्मा भी यहां मौजूद रहे। वहीं आईबी पर तारबंदी के आगे जुताई का काम शुरू कराने के बाद डीसी ओपी भगत ने कहा कि यहां खेती शुरू होने से सीमावर्ती किसानों को बड़ी राहत मिलेगी। 18 वर्षों के बाद फिर से यहां किसान खेती कर पाएंगे, जिससे उनके आर्थिक हालात भी सुधरेंगे। उन्होंने बताया कि पहाड़पुर से लेकर बोबिया तक सारी जमीन पर पहली बार प्रशासन बीएसएफ के सहयोग से फसल लगाएगा। जितनी भी फसल तैयार होगी सीमावर्ती किसानों को दे दी जाएगी। अगली फसल किसान खुद लगाएंगे। इसके पीछे मकसद यही है कि 2002 में जैसी यह जमीनें किसानों ने छोड़ी थीं, उन्हें वैसी ही वापस दी जाएंगी। वे उसके बाद यहां बिना किसी डर के खेती करें।