नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के मधुबनी के स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र के ‘सुखेत मॉडल’ की प्रशंसा करते हुए कहा है कि इस मॉडल से किसानों को भी लाभ मिल रहा है और स्वच्छ भारत अभियान को भी नई ताकत मिल रही है। मोदी ने रविवार को रेडियो पर प्रसारित होने वाले अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ के संबोधन में कहा, “मधुबनी में डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय और वहाँ के स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र ने मिलकर के एक अच्छा प्रयास किया है। विश्वविद्यालय की इस पहल का नाम है – ‘सुखेत मॉडल’। सुखेत मॉडल का मकसद है गाँवों में प्रदूषण को कम करना। इस मॉडल के तहत गाँव के किसानों से गोबर और खेतों–घरों से निकलने वाला अन्य कचरा इकट्ठा किया जाता है और बदले में गाँव वालों को रसोई गैस सिलेंडर के लिए पैसे दिये जाते हैं”
उन्होंने कहा, “जो कचरा गाँव से एकत्रित होता है उसके निपटारे के लिए ‘वर्मी कम्पोस्ट’ बनाने का भी काम किया जा रहा है। यानी सुखेत मॉडल के चार लाभ तो सीधे-सीधे नजर आते हैं। एक तो गाँव को प्रदूषण से मुक्ति, दूसरा गाँव को गन्दगी से मुक्ति, तीसरा गाँव वालों को रसोई गैस सिलेंडर के लिए पैसे और चौथा गाँव के किसानों को जैविक खाद।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस तरह के प्रयास हमारे गाँवों की शक्ति कितनी ज्यादा बढ़ा सकते हैं। यही तो आत्मनिर्भरता का विषय है। मैं देश की प्रत्येक पंचायत से कहूंगा कि ऐसा कुछ करने का वे भी अपने यहाँ जरुर सोचें। उन्होंने तमिलनाडु में शिवगंगा जिले की कान्जीरंगाल पंचायत का ज़िक्र करते हुए कहाृ “ इस छोटी सी पंचायत ने ‘वेस्ट से वेल्थ’ का एक और मॉडल खड़ा किया। यहाँ ग्राम पंचायत ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर कचरे से बिजली बनाने की एक स्थानीय परियोजना को गाँव में लगा दिया है। पूरे गाँव से कचरा इकट्ठा होता है, उससे बिजली बनती है और बचे हुए उत्पाद को कीटनाशक के रूप में बेच भी दिया जाता है।”
श्री मोदी ने कहा, “गाँव के इस ऊर्जा प्लांट की क्षमता प्रतिदिन दो टन कचरे के निस्तारण की है। इससे बनने वाली बिजली गाँव की रोशनी और दूसरी जरूरतों में उपयोग हो रही है। इससे पंचायत का पैसा तो बच ही रहा है वह पैसा विकास के दूसरे कामों में इस्तेमाल किया जा रहा है। तमिलनाडु के शिवगंगा जिले की एक छोटी सी पंचायत हम सभी देशवासियों को कुछ करने की प्रेरणा देती है, कि नहीं देती है।”