भारत अफगानिस्तान के लिए क्या रणनीति अपनाएगा?
नई दिल्ली: अफगानिस्तान के हालात पर भारत की नजर बनी हुई है। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से भारत वेट एंड वॉच की स्थिति हैं। इस बीच सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफगानिस्तान में स्थिति की समीक्षा के लिए एक उच्च स्तरीय बैठक की अध्यक्षता की। पीएम मोदी की आवास पर हुई इस उच्च स्तरीय बैठक में गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस जयशंकर, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने हिस्सा लिया।
बैठक को लेकर आधिकारिक रूप से कोई बयान सामने नहीं आया है। तालिबान की ओर से कब्जा जामाने के बाद भारत सरकार पहले ही यह कह चुकी है कि अफगानिस्तान को लेकर उसकी प्रमुख चिंता यह सुनिश्चित करना है कि अफगान की जमीन का इस्तेमाल आतंकवाद या फिर भारत विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं किया जाए। और दूसरी चिंता अफगानिस्तान में रहने वाले भारतीय नागरिकों की सुरक्षित वापसी है। भारत तालिबान के सामने ये मुद्दा उठाया भी था जब कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने 31 अगस्त को तालिबान के अनुरोध पर दोहा में भारतीय दूतावास में कतर में तालिबपान के राजनीतिक कार्यालय के उप प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्टेनकजई से मुलाकात की थी।
हालांकि, इससे परिचित लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि बैठक तालिबान की मौजूदा स्थिति पर केंद्रित था। पंजशीर प्रांत में प्रतिरोध बलों पर कथित जीत के बाद तालिबान का लगभग-लगभग पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा हो गया है। हालांकि, पंजशीर के विरोधी नेता तालिबान के दावे को खारिज कर चुके हैं।सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई तस्वीरों में तालिबान कमांडरों को पंजशीर में प्रांतीय गवर्नर के परिसर के सामने दिखाया गया है, जहां प्रसिद्ध कमांडर अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद के नेतृत्व में राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा (एनआरएफ) की सेनाएं तालिबानी लड़ाकों से दो-दो हाथ कर रही है। इस बीच तालिबान विरोधी पंजशीर के नेताओं ने दावा किया कि उसके यहां किए गए हमले में पाकिस्तान का भी हाथ था। बता दें कि पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) प्रमुख, लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद शनिवार को काबुल पहुंचे हुए थे।