पौधरोपण के नाम पर अब तक करोड़ों की गड़बड़ी, जांच पेंडिंग
ग्वालियर ; मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सोमवार को ग्वालियर आए थे। इस दौरान मुख्यमंत्री ने मुरार सर्किट हाउस में महोगनी के पौधे रोपे थे। इसका उद्देश्य ये कि ग्वालियर हराभरा रहे, लेकिन इसी उद्देश्य के साथ साल 2016-17 में शहर को आक्सीजन चैंबर में विकसित करने की बड़ी प्लानिंग की गई थी। तत्कालीन कलेक्टर डॉ संजय गोयल ने इस प्लानिंग को जमीन पर उतारने के लिए सिरोल पहाड़ी पर पौधारोपण शुरू कराया था। इसके बाद तत्कालीन अपर कलेक्टर अनूप कुमार सिंह ने इस पूरी पहाड़ी के पौधों की देखरेख करने की जिम्मेदारी ली और पहाड़ी पर लगाए गए 10 हजार पौधों को जीवित रखने के लिए प्रयास शुरू किए गए थे। इन दोनों अधिकारियों के तबादले के बाद देखरेख की जिम्मेदारी नगर निगम के उद्यान विभाग को दी गई, लेकिन ध्यान नहीं देने के कारण यहां लगे ज्यादातर पौधे सूख गए। इसके साथ ही पहाड़ी के ढलान पर शहर से शिफ्ट करके लगाए गए पेड़ों में भी पत्तियां आने की बजाय अब दीमक लग गई है। कुलमिलाकर करोड़ो खर्च तो हुए , पर शहर आॅक्सीजन चेम्बर नहीं बन पाया। खास बात ये है कि बीते कुछ सालों में पौधारोपण के नाम पर करोड़ों रुपए की आर्थिक अनियमितताएं हो चुकी हैं। जबकि इनकी जांच अभी तक पैंडिंग है।
लगातार हो रहा करोड़ों रुपए खर्च
वर्ष 2003 से 2009 की अवधि में पौधे लगाने के साथ ईंटों का सुरक्षा घेरा और मजदूरी आदि पर 33 करोड़ रुपए खर्च हुए।
2009 से 2012 की अवधि में कंटीले तारों का सुरक्षा घेरा और मजदूरी आदि पर 22 करोड़ रुपए खर्च हुए।
2012 से 2015 की अवधि में अनावश्यक खर्च पर रोक लगी और सिर्फ 5 करोड़ रुपए खर्च हुए।
2015 से 2019 तक की अवधि में पौधारोपण पर होने वाले खर्च में कटौती की गई और सिर्फ 3 करोड़ रुपए खर्च हुए।
यह है पहाड़ी की स्थिति
शारदा बालग्राम से लगी पहाड़ी पर नीम सहित अन्य पेड़ लगाए गए थे। दो चरण में लगाए गए इन पेड़ों की संख्या 10 हजार है। चार वर्ष में अधिकतर पेड़ अब बड़े हो रहे हैं। जबकि जो ध्यान दिया जाना चाहिए वह यहां नहीं दिया जा रहा।
एक नजर में पुराने गोलमाल
पथ वृक्षारोपण योजना के अंतर्गत सड़कों के किनारे 1.80 लाख पौधे लगाए गए। वर्ष 2003 से 2009 तक जारी रही इस योजना में प्रति पौधा 2200 रुपए तक खर्च किए गए। यह पौधे नहीं लगाए गए। ग्राम वन विकसित करने की योजना में 2 लाख पौधे लगाए गए थे। प्रति पौधा 1100 रुपए खर्च किए गए। योजना के मूल्यांकन और उपयोगिता प्रमाणपत्र जारी करने में जमकर अनियमितताएं हुईं। इस फजीर्वाड़े की रिपोर्ट अभी भी फाइलों में दफन है।