लंदन: नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आखिरी दिनों का ब्योरा जारी करने के लिए शुरू की गई एक ब्रिटिश वेबसाइट ने विस्तृत जानकारी दी है। वेबसाइट ने दावा किया है कि यह 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में हुई उस विमान दुर्घटना के दिन के बारे में प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा दी गई जानकारी है, जिसमें नेताजी कथित तौर पर मारे गए थे।
नए दस्तावेजों में उन कई लोगों का हवाला दिया गया है, जो दुर्घटना से जुड़े मामले में शामिल थे। इसमें दो ब्रिटिश खुफिया रिपोर्टें भी शामिल हैं, जो तथ्यों को स्थापित करने के लिए दुर्घटना स्थल का दौरा करने के बाद तैयार की गईं।
वेबसाइट ने उस पर भी प्रकाश डाला है, जो स्वतंत्रता सेनानी के आखिरी शब्द रहे होंगे और वे भारत की आजादी के लक्ष्य के प्रति उनके समर्पण को जाहिर करते हैं। बोसफाइल्स डॉट इंफो द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, 70 बरसों से यह संदेह रहा है कि क्या ऐसी कोई दुर्घटना हुई थी। चार अलग-अलग रिपोर्टों में एक-दूसरे के उलट साक्ष्य हैं।
दस्तावेजों में कहा गया है कि 18 अगस्त, 1945 की सुबह जापानी वायुसेना के एक बमवषर्क विमान ने वियतनाम के तूरान से बोस और 12-13 अन्य यात्रियों तथा चालक दल के सदस्यों के साथ उड़ान भरी। विमान में जापानी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल टी. शीदेई भी सवार थे। विमान का मार्ग हेतो-ताईपे-डेरेन-टोक्यो था।
तीन-सदस्यीय नेताजी जांच समिति का गठन भारत सरकार ने 1956 में किया था और इसके अध्यक्ष नेताजी की आजाद हिंद फौज के मेजर जनरल शाह नवाज खान थे।
समिति को बताया गया कि चूंकि मौसम ठीक था और इंजन सुचारू रूप से काम कर रहे थे, इसलिए पायलट ने हेतो के ऊपर से और सीधे ताईपे जाने का फैसला किया, जहां सुबह या दोपहर तक पहुंचा जाता।
जापानी एयर स्टाफ ऑफिसर और यात्रियों में शामिल मेजर तारो कोनो ने समिति को बताया, मैंने पाया कि बायीं ओर के इंजन ठीक से काम नहीं कर रहे थे। इसलिए मैं विमान के अंदर गया और अंदर में इंजन की जांच करने के बाद मैंने पाया कि यह ठीक से काम रहा। उन्होंने बताया कि साथ में मौजूद इंजीनीयर ने भी इंजन की जांच की।
हवाई अड्डे पर रखरखाव प्रभारी इंजीनीयर कैप्टन नाकामुरा उर्फ यामामोतो ने मेजर कोनो के साथ सहमति जताई कि बायीं ओर के इंजन में गड़बड़ी है। यामामामोतो ने कहा कि पायलट ने उनसे कहा कि यह एक नया इंजन है। उन्होंने कहा कि इंजन की गति धीमी करने के बाद पायलट ने करीब पांच मिनट के लिए इसे एडजस्ट किया। इंजन को मेजर तकीजावा (पायलट) ने दो बार जांचा। एडजस्ट करने के बाद मैंने खुद को संतुष्ट किया कि इंजन की स्थिति ठीक है। मेजर तकीजावा ने इस बात से भी मेरे साथ सहमति जताई कि इंजन में कुछ गड़बड़ी नहीं है। हालांकि, बोस के एडीसी और एक सह यात्री कर्नल हबीब उर रहमान के मुताबिक कुछ ही देर बाद एक जबरदस्त विस्फोट हुआ।
जमीन पर से देख रहे नाकामुरा ने कहा, उड़ान भरने के ठीक बाद विमान अपनी बाईं ओर झुक गया और मैंने विमान से कुछ गिरते देखा, बाद में मैंने पाया कि वह प्रोपेलर था।’’ उन्होंने यह भी बताया कि विमान 30 से 40 मीटर की ऊंचाई तक पहुंचा था। उन्होंने अनुमान लगाया कि कंक्रीट की हवाईपट्टी से करीब 100 मीटर की दूरी पर विमान दुर्घटना हुआ और तुरंत ही इसके अगले हिस्से में आग लग गई।
कर्नल रहमान ने बताया, नेताजी मेरी ओर मुड़े। मैंने कहा, आगे से निकलिए, पीछे से रास्ता नहीं है। उन्होंने बताया, हम प्रवेश द्वार से नहीं निकल सके, क्योंकि यह पैकेज और अन्य चीजों से बंद था। इसलिए नेताजी आगे से बाहर निकले, दरअसल वह आग से होकर दौड़े। मैं आग की उन्हीं लपटों में उनके पीछे-पीछे था। उन्होंने बताया, जब मैं बाहर निकला तो मैंने उन्हें अपने से 10 यार्ड आगे, खड़े, विपरीत दिशा से मुझे देखते हुए देखा। मैं दौड़ा और मुझे उनके बुश शर्ट बेल्ट को खोलने में बड़ी मुश्किल हुई। उनकी पतलून में ज्यादा आग नहीं लगी थी और उसे निकालना जरूरी नहीं था। रहमान उनी कपड़े पहने हुए थे, जबकि बोस सूती खाकी पहने हुए थे, जिसके चलते उसमें आसानी से आग लग गई।
रहमान ने बताया, मैंने उन्हें जमीन पर लिटाया और पाया कि उनके सिर पर कटने का एक गहरा निशान है, शायद यह बायीं ओर था। उनका चेहरा झुलस गया था और उनके बाल भी आग से झुलस गए थे। उन्होंने बताया, नेताजी ने मुझसे हिन्दुस्तानी में कहा- आपको ज्याद तो नहीं लगी? मैंने जवाब दिया कि मुझे लगता है कि मैं सही सलामत हूं। अपने बारे में उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि वह नहीं बच पाएंगे।
बोस ने कहा, जब अपने मुल्क वापस जाएं, तो मुल्क के भाइयों को बताना कि मैं आखिरी दम तक मुल्क की आजादी के लिए लड़ता रहूंगा, वे जंग-ए-आजादी को जारी रखें। हिन्दुस्तान जरूर आजाद होगा, उसे कोई गुलाम नहीं रख सकता। विमान में मौजूद लेफ्टिनेंट शिरो नोनोगाकी ने कहा, विमान दुर्घटना के बाद जब मैंने पहले नेताजी को देखा तो वह विमान के बाएं पंख के किनारे के पास कहीं खड़े थे। उनके कपड़ों में आग लगी हुई थी और उनके सहायक (कर्नल रहमान) उनका कोट उतारने की कोशिश कर रहे थे। हालांकि रहमान, नोनोगाकी, कोनो, तकाहाशी और नाकामुरा द्वारा मुहैया किए गए ब्योरे में विसंगति है। उन्होंने दुर्घटना के 11 साल बाद साक्ष्य दिए।
वेबसाइट ने बताया कि लेकिन उनके बयानों से दुर्घटना होने और इसके परिणामस्वरूप बोस के गंभीर तौर पर झुलसने के तथ्य के बारे में कोई दो राय नहीं है। नेताजी को पास को गंभीर हालत में नानमोन मिलिट्री अस्पताल ले जाया गया। सितंबर, 1945 में भारत स्थित ब्रिटिश अधिकारियों ने बोस का अता-पता लगाने तथा संभव हो तो उन्हें गिरफ्तार करने के लिए खुफिया टीमें भेजी। इसके बजाय वे दुर्घटना की कहानी के साथ लौटे।