अन्तर्राष्ट्रीय

ड्रैगन का एक और झूठ उजागर, ब्रह्मपुत्र घाटी पर आधिपत्य जमाने की बना रहा रणनीति

नई दिल्ली : चीन ब्रह्मपुत्र घाटी में रणनीतिक रूप से बड़ी बांध और जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण की कोशिश में लगा है। लेकिन हर बार इन आरोपों को झुठलाया है। हाल ही में चीन का एक झूठ और उजागर हुआ है। अब चीन ब्रह्मपुत्र घाटी पर पूरी तरह से आधिपत्य जमाने की रणनीति बना रहा है। चोरी-छिपे मजबूत निर्माण कर रहा है। नीदरलैंड की थिंक टैंक संस्था यूरोपियन फाउंडेशन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज (ईएफएसएएस) ने अपनी हालिया रिपोर्ट में यह दावा किया है।

थिंक टैंक के अनुसार, भारत और चीन के बीच ऊर्जा परिवर्तन और क्षेत्रीय शक्ति के लिए बढ़ती प्रतिस्पर्धा की वजह से दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय तनाव कम करने के बजाय और बढ़ने की संभावना है। थिंक टैंक ने कहा कि चीन के लिए ऊर्जा उत्पादन के तौर-तरीकों में परिवर्तन करना उसके विकास मॉडल के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है।

थिंक टैंक के मुताबिक, चीन की इसी ऊर्जा परिवर्तन रणनीति (बिजली उत्पादन के लिए जीवाश्म आधारित प्रणालियों की बजाय अक्षय ऊर्जा पर जोर) की वजह से चीन और भारत के बीच ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली में टकराव के आसार बढ़ गए हैं क्योंकि दोनों ही देश इस क्षेत्र में हरित ऊर्जा के उत्पादन की रणनीति पर काम कर रहे हैं। ईएफएसएएस के अनुसार, ब्रह्मपुत्र बेसिन में चीन की नवीकरणीय ऊर्जा की प्राथमिकताएं उसकी रणनीतिक, सामरिक, आर्थिक और मध्यावधि राजनीतिक उद्देश्यों से भी जुड़ी हुई हैं।

हाल ही में चीन ने घोषणा की कि वह 2060 तक कार्बन तटस्थता का लक्ष्य रखेगा और ऊर्जा नवाचार में सबसे आगे रहना चाहता है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने घोषणा की कि चीन 2030 से पहले अपने उत्सर्जन को अधिकतम करने की कोशिश करेगा। यह चीन की एक अत्यधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्य है जिसके लिए उसे नवीकरणीय ऊर्जा में काफी पैसा लगाना पड़ सकता है।

इस बीच भारत ने साल 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन उत्पादन का लक्ष्य 40 प्रतिशत रखा है। साल 2010 से 2018 के बीच भारत ने अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को दोगुना कर दिया है। चीन की तुलना में भारत पवन और सौर ऊर्जा उत्पादन में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ईएफएसएएस की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पास पांचवीं सबसे बड़ी जलविद्युत क्षमता है।

विशेषज्ञों के अनुसार, यारलुंग जांग्बो नदी (ब्रहम्पुत्र का तिब्बती भाग) पर चीन की जलविद्युत परियोजनाएं ब्रह्मपुत्र नदी को भारत में एक मौसमी नदी में परिवर्तित कर देगी। इस कारण भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सूखे के रूप में सामने आ सकता है।

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