‘भेदभाव करता है इस्लामी कानून, हमें संविधान चाहिए..’, शरिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची बुशरा अली
नई दिल्ली: एक मुस्लिम महिला ने इस्लाम के शरीयत कानून के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। महिला ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई अपनी याचिका में कहा है कि संपत्ति बँटवारे में उसे पुरुष सदस्यों की तुलना में आधा हिस्सा मिला, जो उसके साथ पक्षपात है। महिला ने दलील दी कि भारतीय संविधान सभी को बराबरी का हक देता है, जबकि शरीयत कानून पक्षपाती है। ऐसे में उसने सुप्रीम कोर्ट से इन्साफ की गुहार लगाई है।
बुशरा अली नामक मुस्लिम महिला ने शीर्ष अदालत में दी गई अपनी याचिका में कहा कि उसके परिवार में जब संपत्ति का बँटवारा हुआ, तो उसे 7/152 का हिस्सा दिया गया। महिला ने दावा करते हुए कहा कि वहीं पुरुषों को 14/152 का हिस्सा दिया गया, जो उसके हिस्से से दोगुना है। बुशरा अली ने अपनी याचिका में कहा कि भारत का संविधान सबको बराबरी का हक देता है। इसलिए वह संपत्ति का बँटवारा बराबरी के आधार पर चाहती हैं। शीर्ष अदालत ने इस पर सुनवाई करने के बाद प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर दिया है। बता दें कि मुस्लिमों में सिविल मामलों का निपटारा शरीयत कानून पर आधारित मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक होता है। इसमें महिलाओं को कई अधिकारों से वंचित रखा गया है।
बुशरा अली ने इस्लाम के शरीयत कानून की धारा-2 को चुनौती देते हुए कहा कि यह संविधान की धारा-15 का उल्लंघन है। इसके बाद शीर्ष अदालत के न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति संजय करोल ने प्रतिवादी इरफान मोहम्मद और संबंधित को नोटिस जारी किया। बता दें कि, भारत के धर्मनिरपेक्ष देश होने के बावजूद मुस्लिमों को विशेषाधिकार प्राप्त है। जहाँ अन्य सभी समुदाय के लोगों का फैसला संविधान के अनुसार होता है, वहीं मुस्लिमों के सिविल मामलों को शरीयत कानून के तहत देखा जाता है। ये नियम-कानून देश के प्रथम पीएम जवाहरलाल नेहरू के समय से ही चला आ रहा है। हालाँकि, शरिया कानून में महिलाओं के अधिकार से संबंधित कई तरह की खामियाँ हैं। इनमें पुरुषों को चार निकाह, तलाक, तलाक के बाद गुजारा भत्ता, हलाला, संपत्ति में बराबरी का हक, बच्चे को गोद लेने का मामला, बच्चों की कस्टडी, महिलाओं को वसीयत, दान आदि प्रमुख हैं।