यूपी निकाय चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग के सहारे सपने बुन रही बसपा
लखनऊ : लोकसभा चुनाव से पहले हो रहे निकाय चुनाव को लेकर बहुजन समाज पार्टी एक बार फिर गंभीर होकर रणनीति बना रही है। वह इस चुनाव में एक बार फिर से सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले का लिटमस टेस्ट करेगी।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो बसपा चाहती है कि किसी भी तरह से मुस्लिमों को पार्टी में पुन: लाया जाए। दलित-मुस्लिम समीकरण बनेगा तो पार्टी मजबूत होगी। क्षेत्रीय वर्चस्व वाली जातियों को टिकट दिया जाए। इसी सोशल इंजीनियरिंग के सहारे पार्टी प्रदेश में चार बार सरकार बना चुकी है। पिछली बार निकाय चुनाव में इस फार्मूला को लागू कर बसपा को सफलता भी मिली थी। उसने मेरठ में मेयर पद भी जीता था। इसी तरह से दलित मुस्लिम का गठजोड़ बनाकर अलीगढ़ में सफलता हासिल की। एक दो जगह नंबर दो की लड़ाई पर भी रही।
राजनीतिक दलों की मानें तो विधानसभा चुनाव 2022 में वोट प्रतिशत के मामले में सबसे ज्यादा नुकसान बसपा को हुआ और सबसे ज्यादा फायदा सपा को हुआ। यह माना गया कि बसपा के वोट प्रतिशत का एक बड़ा हिस्सा सपा को गया। इस चुनाव में बसपा से मुस्लिम वोटर तो कटे ही, दलित भी छिटके। यह स्थिति तब थी जब इस चुनाव में बसपा ने 60 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनावी रण में उतारा था। इनमें से एक भी उम्मीदवार नहीं जीत पाया। इस बार कोई गलती न होने पाए इसलिए बसपा अपने फार्मूले को मजबूती से लागू कर रही है।
बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि इस बार बसपा अपने लोकसभा चुनाव से पहले अपने को निकाय चुनाव में सिद्ध करना चाहती है। इसीलिए इस बार दलित मुस्लिम के साथ अति पिछड़ा पर फोकस किया गया है। सभी मंडल प्रभारियों के कंधों पर इस बार नगर निकाय की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस चुनाव में दलित मुस्लिम अतिपिछड़ा की सोशल इंजीनियरिंग करके पार्टी एक बार फिर से सफलता पाना चाहती है। उनका कहना है कि विधानसभा चुनाव 2022 में काफी दलित पार्टी से छिटक गए। अब इन्हें किसी तरह पार्टी में वापस लाना है।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि बसपा का ग्राफ लागातार गिरता जा रहा है। 2022 में उसकी सोशल इंजीनियरिंग पूरी तरह से पिट गई। उसी का नतीजा रहा उन्हें एक सीट मिली थी। एक बार लोकसभा चुनाव के पहले सपा भाजपा द्वारा दलित वोटों पर फोकस किया जा रहा है। जिसकी चिंता बसपा को है। इसी कारण वह अपने वोट बैंक को बचाने के सारे प्रयास करेगी।
पांडेय का कहना है कि पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि सपा से मुस्लिमों का भरोसा टूटा है। विधानसभा चुनाव में सपा सरकार न बनने से मुस्लिमों का झुकाव बसपा की तरफ एक बार फिर हो जाए। यदि निकाय चुनाव के नतीजे ठीक आए तो लोकसभा चुनाव में यही फार्मूला जारी रहेगा।