ज्ञान भंडार
3 साल पहले पास किया बीएड, अब तक नहीं मिली डिग्रीए इंतजार कर रहे हजारों स्टूडेंट्स
दस्तक टाइम्स एजेंसी/ शिमला. प्रदेश भर के निजी व सरकारी बीएड कॉलेजों से पढ़ाई करने वाले छात्रों को अभी तक बीएड की डिग्री नहीं मिली है। इस कारण छात्रों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। वर्ष 2013 से लेकर अब तक बीएड करने वाले छात्रों की डिग्री रुकी हुई है। करीब 20 हजार एेसे डिग्री धारक हैं, जिन्हें अभी तक डिग्री नहीं मिली है।
विवि प्रशासन की ओर से छात्रों से वादा किया गया था कि उन्हें जर्मन तकनीक से लैस कागज पर ही डिग्री दी जाएगी। ऐसे में यह डिग्रियां अभी तक जारी नहीं हुई हैं। प्रशासन की लेटलतीफी के कारण छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है।
प्रतियोगी परीक्षा देने में परेशानी
बीएड की डिग्री पूरी कर चुके छात्र किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में भी भाग नहीं ले पा रहे हैं। डिग्री के लिए छात्र विवि के चक्कर काटने को मजबूर हंै। इन छात्रांे को करीब तीन साल से अपनी डिग्री का इंतजार है। डिग्री न मिलने पर उन्हें कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। विश्वविद्यालय द्वारा जिस कागज पर डिग्री वर्तमान समय में छात्रों को दी जा रही है, उसकी क्वालिटी ज्यादा बेहतर नहीं है।
इस डिग्री और मार्कशीट में साधारण कागज और प्रिंट रहता है, जिसके चलते छात्रों को डिग्री मिलने के बाद उस पर लेमिनेशन करवानी पड़ती है। इसके अलावा बारिश में भी अगर यह डिग्री या मार्कशीट थोड़ी सी भीग जाए तो यह खराब हो जाती है। इसलिए निर्णय हुआ था कि छात्रों को डिग्री जर्मन तकनीक आधारित पेपर पर दिया जाएगा। पर अभी तक तीन साल बीत जाने के बाद भी छात्रों को यह डिग्रियां नहीं मिली हैं। इस बारे में विवि के परीक्षा नियंत्रक प्रो. श्याम लाल कौशल का कहना है कि इस संबंध में हर संभव प्रयास किए जा रहे हंै। छात्रों को जल्द डिग्रियां दी जाएगी, ताकि उन्हें कोई भविष्य में किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े।
ये हो रही दिक्कत
– जिन छात्रों ने बीएड की है, उसे डिटेल मार्क कार्ड मिलता है। इसके कुछ समय के बाद डिग्री भी जारी की जाती है।
– छात्र डिग्री के लिए अप्लाई करते हैं, उसके बाद उन्हें डिग्री जारी होती है, विवि इसकी फीस लेता है।
– अब छात्र वर्ष 2013 से डिग्री के लिए अावेदन कर रहे हैं, लेकिन विवि डिग्री नहीं दे रहा है।
– छात्र जहां भी रोजगार के लिए अप्लाई कर रहे हैं, वहां डिग्रियां लग रही हैं, ऐसे में उन्हें दिक्कतें हो रही हैं।
– छात्रों का आरोप है कि विवि प्रशासन उनकी डिग्री जारी करने में देरी कर रहा है।
नहीं बन पाती है डुप्लीकेट कॉपी
जर्मन तकनीक मार्क्सशीट की सबसे खास बात यह है कि कोई भी इसकी डुप्लीकेट काॅपी नहीं बना पाएंगे। इसे लेमिनेशन करवाने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। साधारण कागज के बजाय अब नॉन टैरिबल वाटर एस्सीटेंट पर मार्कशीट तैयार करेगा। यह पेपर जर्मनी से खरीदा जाएगा। इस पेपर की खासियत यह है कि यह प्लास्टिक की तरह है, जब इसे मार्कशीट या डिग्री के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, तो इसमें नए फीचर डाले जाएंगे। इसमें बार कोड और सीयूआर कोड लगेंगे। इस कागज के ऊपरी हिस्से पर एक लेजर कोड बनाया जाएगा। जिसे सिर्फ लेजर लाइट से ही देखा जा सकता है।
अब दो साल की है बीएड : बीएड को अब दो वर्षीय कोर्स किया गया है। इससे पहले नौ माह की बीएड होती थी। शिक्षक बनने के लिए बीएड के साथ टेट पास होना भी जरूरी है। ऐसे में प्रदेश भर में बीएड करने वाले छात्रों की संख्या ज्यादा है। प्रदेश भर में दो सरकारी और 72 निजी बीएड कॉलेज है। इसमें लगभग 8500 सीटें भरी जाती हैं। एेसे में विवि की ओर से डिग्री जारी करने में की जा रही देरी से छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है।
आउटसोर्स करने में फेल हो रहा विवि
एचपी यूनिवर्सिटी ने जर्मन तकनीक आधार पर डिग्री देने में भी फेल हो रहा है। दिल्ली की एक निजी कंपनी से जर्मन तकनीक आधार पर डिग्री लेने का करार हुआ था। विवि की ओर से कुछ छात्रों की डिग्री की सूची तो भेजी गई, लेकिन इस पर काम नहीं हुआ। बताया जा रहा है कि विवि की परीक्षा शाखा की ओर से पूरा डाटा ही नहीं भेजा गया है। ऐसे में आउटसोर्स करने में विवि फेल हो रहा है।