छत्तीसगढ़ का ‘मोगली’ डॉक्टरों के लिए बना अजूबा, जानवरों से है दोस्ती
एजेन्सी/ हाल ही में फिल्म ‘जंगल बुक’ रिलीज हुई है. ‘जंगल बुक’ के मुख्य किरदार मोगली को लेकर तमाम तरह के किस्से प्रचलित हैं. ये रूडयार्ड किपलिंग की वर्ल्ड फेमस बुक पर बेस्ड है. इसमें एक जंगल में रहने वाले बच्चे की कहानी है, जो जीने के लिए संघर्ष करता है. इस बच्चे को भेड़ियों ने पाला और ये एक पेड़ से उस पेड़ पर आसानी छलांग लगा लेता था. जब ‘जंगल बुक’ का प्रसारण एक सीरीज में टेलीविजन पर हुआ था, तो ऐसे कई बच्चों के नाम सामने आने लगे थे, जो मोगली की तरह ही पले-बढ़े थे, लेकिन छत्तीसगढ़ में आज भी एक लड़के को ‘मोगली’ के नाम से जाना जाता है. राजनंदगांव जिले में रहने वाला सुरेंद्र ना केवल छत्तीसगढ़, बल्कि देश के पूरे विज्ञानजगत के लिए एक अजूबा बन गया है.
नक्सल प्रभावित इलाके में रहने वाले सुरेंद्र के पास ना तो स्कूल की सुविधा है और न ही अस्पताल की. गांव वालों के मुताबिक, पहाड़ों-जंगलों और जंगली जानवरों के बीच इसे रहना पसंद है. वह बंदरों की तरह एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर लटककर पहुंच जाता है. इसकी इन आदतों की तुलना आप मोगली से कर सकते हैं, फर्क सिर्फ इतना है कि ये पत्तों से शरीर नहीं ढकता और इसके पास अपना परिवार है.
सुरेंद्र का पेड़ की एक डाल से दूसरी डाल पर आसानी से छलांग लगाना और जंगली जानवरों से दोस्ती ने सबको हैरान कर रखा है. सिर्फ सुरेंद्र ही नहीं, बल्कि उसकीबहन राजेश्वरी भी भी पेड़ों पर चढ़ने में माहिर है. गांववाले दोनों को दिमागी तौर पर कमजोर बताते हैं. गांववाले बताते हैं कि इस नक्सल प्रभावित इलाके में बहुत कम ही गाड़ियों का आना-जाना होता है. सुरेंद्र उर्फ गोलू जब भी इन गाड़ियों को देखता है, तो खुश होकर उनसे भी तेज भागने लगता है. कई बार वह घूमते हुए दूसरे गांवों में भी चला जाता है, लेकिन सभी जगहों पर उसे पहचाने जाने के कारण लोग उसे घर तक छोड़ जाते हैं.
सुरेंद्र उर्फ गोलू का परिवार राजनांदगांव के आदिवासी इलाके अड़जाल का रहने वाला है. गोलू और राजेश्वरी के पिता हरिशचंद्र गोड़ बताते हैं कि इन्हें कोई बीमारी नहीं है. इन दोनों ने ही बचपन से अब तक दवाई तक नहीं खाई है. गौरतलब है कि इसके पहले बस्तर के एक आदिवासी गांव में चेंदरूराम मंडावी नाम का बच्चा मिला था, जो जंगली जानवरों के बीच बेखौफ खेलता था.
साल 1957 में ऑस्कर अवार्ड विजेता आर्ने सक्सडॉर्फ ने स्वीडिश में ‘एन द जंगल सागा’ नाम से फिल्म बनाई थी. जिसे अंग्रेज़ी में ‘दि फ्लूट एंड दि एरो’ नाम से जारी किया गया था, इस फिल्म में 10 साल के चेंदरू ने बाघों और तेंदुओं के साथ काम किया था. उस समय आर्ने सक्सडॉर्फ ने लगभग दो साल तक बस्तर में रह कर पूरी फिल्म की शूटिंग की थी. जब फिल्म का प्रदर्शन हुआ तो चेंदरू को भी स्वीडन समेत दूसरे देशों में ले जाया गया. हालांकि, चेंदरू अब इस दुनिया में नहीं है.
मामला सामने आने के बाद कलेक्टर द्वारा तुरंत दोनों भाई-बहन की जांच के निर्देश दिए थे. जिसके बाद जिला अस्पताल में डॉक्टर द्वारा जांच की गई, जिसमें सुरेंद्र को क्रोमोसोमल नामक दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त पाया गया है. बीमारी की वजह से युवक का शारीरिक और मासिक विकास एक आयुसीमा के बाद पूरी तरह रुक गया था, जिससे उसका मानसिक संतुलन ठीक नहीं है, उसकी बीमारी का असर उसकी बहन पर भी देखा गया है. मेडिकल अस्पताल के अधीक्षक के मुताबिक दोनों मरीजों के ब्लड सैंपल को क्रोमोसोमल डायग्रोसिस को जांच के लिए मुंबई भेज जाएगा, जिसके बाद रिपोर्ट के आधार पर उपचार की प्रक्रिया शुरू की जाएगी.