एजेन्सी/ कर्ज लेने के मामले में विधायकों को किसानों की तरह ट्रीट किया जाता है। चार फीसदी ब्याज पर किसानों को क्रेडिट कार्ड लोन मिलता है। इतनी ही ब्याज दर पर विधायकों को 50 लाख का लोन दिया जाता है। बस फर्क सिर्फ इतना है कि लोन न चुका पाने की हालत में किसान को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ता है, जबकि विधायकों का कर्ज माफ हो सकता है। एक चुनाव जीतने के बाद नेताओं की जिन्दगी कितनी आसान हो जाती है इसका ये उदाहरण है। जनता के भरोसे पर चुनाव जीतने वाले नेता पचास लाख रुपए जैसी भारी भरकम रकम के लिए क्वालीफाइड हो जाते हैं। यह मान लिया जाता है कि राजनेता बनने के बाद व्यक्ति 50 लाख का कर्ज चुकाने का पात्र हो गया है। कार और घर के लिए हिमाचल के किसी भी विधायक को 50 लाख रुपये का लोन सस्ती ब्याज दर पर मिल सकता है। इसे प्रदेश विधानसभा सचिवालय ही देता है। प्रदेश विधानसभा के सभी सदस्य 50 लाख रुपये तक का एडवांस लेने के लिए पात्र हैं।लोन के रूप में लिए गए इस एडवांस को विधायकों को 180 किश्तों में चुकाना होता है। इस पर चार फीसदी प्रति वर्ष की वार्षिक ब्याज दर निर्धारित है। इसी तरह से पूर्व विधायकों को भवन और मोटर एडवांस लोन 15 लाख रुपये तक देने की व्यवस्था है। हालांकि, शर्त ये है कि पूर्व विधायकों को पूर्व में लिए गए ऋण को ब्याज समेत पूरी तरह से चुकता करना होता है।
इसे पूर्व विधायकों को 60 बराबर किश्तों में देना होता है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा भत्ते एवं पेंशन अधिनियम 1971 के मुताबिक अगर किसी विधायक या पूर्व विधायक ने एडवांस यानी लोन लिया है और उसकी मौत हो जाती है तो ऐसी हालत में अगर राज्यपाल इस बात से संतुष्ट हों कि संबंधित परिवार की स्थिति लोन चुकाने की नहीं है तो इसे माफ किया जा सकता है।
नियमों के मुताबिक अगर परिवार के सदस्य लोन चुकाने की स्थिति में हों तो इसे विधायक या पूर्व विधायक की मौत पर उसके कानूनी वारिस से ब्याज सहित रिकवर किया जाएगा। हालांकि ये भी व्यवस्था है कि सरकार ऋण की वापसी नहीं कर पाने वाले विधायक या पूर्व विधायक की अचल संपत्ति गिरवी रख सकती है। इसे तब तक गिरवी रखा जाएगा, जब तक ये भुगतान पूरा नहीं कर दिया जाता है।