खुद को परिपक्व बनायें तभी पाएंगे मुकाम
साक्षात्कार : गोविन्द नामदेव
सागर में पैदा हुए गोविन्द नामदेव ने दिल्ली में नेशनल स्कूल आफ ड्रामा से अभिनय में डिप्लोमा किया। दिल्ली से लेकर बॉलीवुड तक के उनके लंबे सफर में उन्होंने कई मुकाम देखे और अपने फन के नए पहलू उजागर किये। सामान्य चर्चा से इतर, एक्टिंग के कुछ अनछुए पहलुओं पर जयदीप पाण्डेय से हुई बातचीत के कुछ अंश।
गोविन्द जी, अक्सर सुनने में आता है कि निगेटिव पब्लिसिटी से फिल्म को लाभ होता है, क्या आप इसे उचित पाते हैं?
अगर आपके काम में और आपके व्यक्तित्व में दम है तो फिर आप को नकारात्मक पब्लिसिटी की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। सराहना और पहचान बढ़िया काम को अपने आप ही मिल जाती है। जब आपका काम सामने आयेगा तो पब्लिसिटी अपने आप हो जायेगी।
थियेटर अथवा फिल्म, किस माध्यम से ज्यादा संतुष्टि मिलती है?
एल बार मैंने एक नाटक किया था ‘ऑथेलो’, जिसमे मुझे शुरू से लेकर आखिर तक आन स्टेज कहना है, पूरी परफेक्शन के साथ। न कभी कोई ब्रेक मिलता है न कभी कोई रीटेक, तो ये बड़ा चैलेंज है। मैंने बर्नार्ड शा के एक प्ले किया था ‘पिग्मेलियन’, उसमे भी शुरू से अंत तक आन स्टेज रहना पड़ा और काफी बडे़-बड़े डाइलाग बोलने पड़े और गलती की कहीं कोई गुंजाइश नहीं। तो इन सब वजहों से थियेटर को भली भांति पूरा करने में एक अलग ही संतुष्टि मिलती है।
आप एक्टिंग को अपना करियर बनाने से पहले क्या ज़रूरी मानते हैं?
हम ये कह सकते हैं कि एक्टर का काम एक बहुत महीन काम है, और जब तक आप इसमें सिद्धहस्त नही हों जाएँ तब तक इसमें हाथ नहीं डालना चाहिए। ज़रूरी है कि आप ट्रेनिंग करें, अच्छी ट्रेनिंग करें और खुद को परिपक्व बनायें। उसके बाद ही सिनेमा में कोई मुकाम हासिल कर पाएंगे।
क्या आपको लगता है कि ‘सितारों का युग’ जाने वाला है?
स्टार्स तो रहेंगे मगर हो सकता है कि उनकी गिनती कम हों जाए, क्योंकि आर्टिस्ट और नतुरल एक्टर्स अपना एक मुकाम बना लेंगे। ऑडियंस आज कल वैश्विक सिनेमा से काफी एजुकेटेड हो रही है। वल्र्ड सिनेमा में एक्टिंग का फ्लेवर एकदम अलग है और आने वाले समय में एक्टिंग का और एडवांस तकनीक का बहुत महत्व रहने वाला है। अब पहले से कम स्टार्स होंगे और उनकी जगह ले लेंगे वो एक्टर्स जो हर तरह के इमोशंस को भरपूर अपने चेहरे पर ला सकें।
आज के एक्टर्स में आप को किनसे उम्मीद है?
वरुण धवन, आलिया भट्ट और राजकुमार राव काफी अच्छा कर रहे हैं। ये वो जेनरेशन है जो वल्र्ड सिनेमा के स्टार पर काम कर रहे हैं और उससे हमारे सिनेमा को जोड़ सकते हैं। इन लोगों की अदाकारी में निखार है और ये लोग अपने स्वभाव से एक्टिंग करते हैं। इस जेनरेशन के साथ हमारा सिनेमा एक नए युग में प्रवेश कर सकता है।
दर्शकों में कमर्शिअल सिनेमा के प्रति इस रुझान के पीछे आप क्या वजह देखते हैं?
हमारा दर्शक बहुत पहले से इस हिसाब से तैयार हुआ है कि वो कुछ इंटरटेनमेंट चाहता है कि कुछ हंसी-मजाक हो, कुछ नाच गाना हो। दिन भर से काम के बाद रीयलिस्म वाला सिनेमा रास नहीं आता। तब प्राथमिकता यह होती है कि परिवार के साथ बैठ कर खुश होने का मौका मिले। कमर्शियल सिनेमा का यह एक सोशल फंक्शन है।
‘सोलर एक्लिप्स’ तथा अन्य आने वाली फिल्मों के बारे में कुछ बतायें?
यह एक हॉलीवुड और बॉलीवुड की साझा मूवी है। यह मूवी गांधी जी कि हत्या के आस पास घूमती है। मेरा किरदार मोरार जी देसाईं का है। एक अन्य फिल्म ‘चापेकर ब्रदर्स’ में मैं लोकमान्य तिलक की भूमिका में हूँ. अन्ना हजारे के ऊपर भी एक मूवी मैं कर रहा हूँ।
क्या आप धार्मिक हैं?
मैं बहुत अध्यात्मिक और धार्मिक आदमी हूं। मेरे घर में रोज एक घंटे पूजा अर्चना होती है। जब मैं अकेला होता हूं तो मैं करता हूं, जब मेरी पत्नी होती हैं तो वो करती हैं और अगर कोई नहीं हो तो मेरी बेटियां करती हैं, मगर एक घंटे की पूजा नियमित होती है।=