जम्मू कश्मीर में बवाल का हाल
जम्मू कश्मीर में लंबे समय बाद जब महबूबा मुफ्ती की सरकार बनी थी, तभी से यह आशंकाएं व्यक्त की जाने लगी थीं कि जब इतने समय बाद किसी तरह सरकार बनी है तो यह देखने की बात होगी कि वहां शासन कैसे काम करता है। कोई इसे महज संयोग कह सकता है, लेकिन भाजपा-पीडीपी के इस बेमेल गठबंधन से जो कुछ निकलकर सामने आ रहा है उससे भविष्य का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। राजनीतिक हलकों में यह माना जाता रहा है कि मुफ्ती मुहम्मद सईद की तरह की राजनीतिक सोच महबूबा की नहीं है। शायद यही कारण था कि सरकार बनने में इतना काफी समय लग गया। अभी सरकार बनी ही थी कि जम्मू और कश्मीर में दो विवाद सामने आ गए। जम्मू में एनआईटी के छात्रों का गुस्सा और हंदवाड़ा में हिंसक वारदातें। एनआईटी विवाद ने घाटी और जम्मू के बीच की मानसिक खाईं को और बढ़ा दिया तो हंदवाड़ा की घटनाओं से केंद्र के प्रति लोगों का असंतोष बढ़ा दिया। निश्चित रूप से यह बहुत खराब स्थिति कही जा सकती है और इसके लिए राज्य और केन्द्र सरकार को जवाबदेह होना चाहिए कि आखिर ऐसे हालात कैसे बने। हिंसा के लिए उकसावे की कार्रवाई अक्सर उल्लिखित कारण से काफी भिन्न हुआ करती है। जम्मू कश्मीर के हंदवाड़ा शहर में अशांति के दिनों के बाद, जिसमें पांच लोग मारे गए थे, अब पता चला है कि जिस वजह से हिंसा भड़की उसमें कोई तथ्य नहीं था।
दरअसल, यह आरोप लगाया गया था कि एक सैनिक ने एक लड़की के साथ दुव्र्यवहार किया था। बाद में सेना की ओर से लोगों के समक्ष लाई गई उस लड़की ने कहा था कि उसके साथ किसी सैनिक ने नहीं बल्कि एक स्थानीय युवक ने छेड़खानी की थी। बाद में उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया और वहां भी उस लड़की ने यही बयान दिया। इस बारे में तथ्य भले ही कुछ हो, लेकिन इसको लेकर जिस तरह अफवाह फैलाई गई उसकी वजह से पूरे इलाके में हिंसक गतिविधियां फैल गईं। बाद में क्षेत्र में शांति की बहाली के लिए हंदवाड़ा चौक पर स्थित सेना के चार बंकरों को ध्वस्त कर दिया गया जिसे आवश्यक भी माना गया और स्वागत भी किया गया। इसके बाद इलाके में शांति की वापसी भी हुई लेकिन यह सवाल बाकी ही रह गया कि आखिर इस तरह की अफवाह पर कैसे लोग इतने उत्तेजित हो गए। इसके पीछे एक बड़ा कारण यह बताया जा रहा है कि स्थानीय लोगों में सेना को लेकर गुस्सा रहा है। इसीलिए कुछ लोगों का यह भी आरोप है कि इस हिंसा के पीछे छेड़खानी की तात्कालिक वारदात के अलावा भी कुछ अन्य कारण हो सकते हैं। आखिर हंदवाड़ा में सभी मौतें उग्र भीड़ को तितर-बितर करने की कार्रवाई के दौरान हुईं लेकिन लगता है कि जरूरत से ज्यादा बल प्रयोग भी किया गया। अगर ऐसा नहीं होता तो उत्तरी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा को यह नहीं कहना पड़ता कि हंदवाड़ा की घटना अफसोसजनक थी।
इस पूरे मामले पर मानवाधिकार संगठनों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। इन संगठनों ने पीड़ित लड़की की पहचान उजागर किए जाने पर सवाल उठाए हैं। उनकी यह भी मांग है कि पूरे मामले की इस लिहाज से भी जांच कराई जानी चाहिए कि घाटी में हिंसा के लिए कहीं कोई षड्यंत्र तो नहीं रचा गया था। यह भी ध्यान में रखने की जरूरत है कि वहां अतिरिक्त सावधानी बरती जानी चाहिए। इस बीच जम्मूू कश्मीर हाईकोर्ट ने हंदवाड़ा में एक लड़की से कथित छेड़छाड़ और फिर सैन्य बलों की फायरिंग में हुई मौतों के मामले में न्यायिक जांच की अपील पर नोटिस जारी किया और राज्य सरकार से जवाब भी मांगा। लड़की के परिजनों के वकील परवेज इमरोज के मुताबिक हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान सरकार को नोटिस जारी किया। इमरोज के अनुसार, कश्मीर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की याचिका पर अदालत ने यह नोटिस जारी किया। उनके अनुसार कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिए हैं कि वकील को लड़की और उसके पिता से मिलने का अवसर प्रदान किया जाए। बहरहाल, फिलहाल यह मामला शांत हो चुका है लेकिन इससे संंबंधित सवालों के जवाब खोजे जाने हैं। यह देखने वाली बात होगी कि जम्मू कश्मीर और केंद्र की सरकार इस तरह की समस्याओं को कैसे हल करती है और कैसे यह सुनिश्चित करने की कोशिश करती है कि भविष्य में इस तरह के हालात न उत्पन्न होने पाएं।
दूसरा मामला श्रीनगर एनआईटी से जुड़ा हुआ है। विश्व कप क्रिकेट मैच में भारत की हार के बाद यहां कश्मीरी और गैर कश्मीरी छात्रों के बीच कथित विवाद हो गया था। आरोप है कि जम्मू कश्मीर पुलिस ने इसके बाद गैर कश्मीरी छात्रों पर बेरहमी से लाठीचार्ज किया था। इसमें सैकड़ों छात्र गंभीर रूप से घायल हो गए थे। हालात इतने गंभीर हो गए कि गैर कश्मीरी छात्रों ने अपनी सुरक्षा के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय तक से गुहार लगाई। तब केंद्र सरकार ने छात्रों की सुुरक्षा के लिए जम्मू कश्मीर पुलिस को हटाकर वहां सीआरपीएफ को तैनात किया। इस पर भी विवाद हो गया। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू कश्मीर पुलिस की जगह सीआरपीएफ लगाना और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की टीम पहुंचने से पता चलता है कि दिल्ली का राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती में कितना भरोसा है। विवाद तब शुरू हुआ जब एनआईटी में पढ़ने वाले जम्मू कश्मीर के कुछ स्थानीय छात्रों ने भारत वेस्टइंडीज के बीच 31 मार्च को हुए सेमीफाइनल में भारत की हार के बाद जश्न मनाना शुरू कर दिया। एनआईटी में 1800 गैर स्थानीय और 150 स्थानीय छात्र हैं। राज्य के बाहर के छात्रों ने इसका विरोध किया। दोनों पक्षों के बीच इसको लेकर बहस हो गई जो बाद में झड़प में तब्दील हो गई। इस कारण संस्थान को बंद कर दिया गया था। इसके बाद एचआरडी की टीम गैर स्थानीय छात्रों से मिली थी। जम्मू कश्मीर के छात्रों ने घटना के बाद संस्थान के निदेशक के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन किया था। वे कश्मीरी छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे थे। छात्रों ने संस्थान में तिरंगा फहराने की भी कोशिश की। आरोप है कि कुछ कश्मीरी छात्रों ने भारत से आजादी के नारे भी लगाए। बाहरी छात्रों ने आरोप लगाया कि जम्मू कश्मीर पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज किया। हालांकि पुलिस ने इससे इनकार किया। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि गैर स्थानीय लड़के तिल का ताड़ बना रहे हैं। यह बहुत छोटा मसला है। कैंपस में ऐसी बहसें होती रहती हैं। यह सामान्य बात है। हालांकि लाठीचार्ज की तस्वीरें हकीकत बयां कर रही हैं। लाठीचार्ज में कम से कम एक दर्जन छात्र गंभीर रूप से घायल हुए थे। संघ से संबद्ध बताए जाने वाले छात्र संगठन एबीवीपी ने भी जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय के सामने प्रदर्शन किया था। प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे परिषद के नेता राजेंद्र कुमार का कहना था कि राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए और एनआईटी के छात्रों को सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए। वैसे कश्मीर में भारतीय क्रिकेट का विरोध कोई नई बात नहीं है। वरिष्ठ क्रिकेटर सुनील गावस्कर ने अपनी किताब रन्स एन रुइन्स में लिखा है कि जब 1983 में वे श्रीनगर के शेरे कश्मीर स्टेडियम में वेस्टइंडीज के खिलाफ क्रिकेट खेल रहे थे तब स्थानीय दर्शक उन्हें हूट कर रहे थे और वेस्टइंडीज को शाबासी दे रहे थे।
वैसे यह विवाद इतना सरल भी नहीं है जितना बताने और कम करके आंकने की कोशिश की गई। राजनीतिक हलकों में इस मामले को हैदराबाद, इलाहाबाद और जेएनयू से जोड़कर देखा जा रहा है। इसके अलावा, भारत माता की जय और तिरंगा फहराने जैसे मामलों के आगे बढ़ने के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि जम्मू कश्मीर से जुड़े संगठन और नेता इसे अपने तरीके से व्याख्यायित कर रहे हैं। अलगवावादी नेता यासिन मलिक पूरे मामले में भारतीय मीडिया की भूमिका पर सवाल उठाते हैं। मलिक का कहना है कि भारतीय मीडिया हिस्टीरिया पैदा कर रहा है। इसके अलावा, कट्टरपंथी कहे जाने वाले हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी का कहना है कि एनआईटी जैसी घटनाओं के गंभीर नतीजे सामने आ सकते हैं। गिलानी ने कहा कि कश्मीर से बाहर कश्मीरी छात्रों का उत्पीड़न अक्सर होता है। यह हैरान कर देने वाली बात है कि अब कश्मीर के अंदर ऐसा होने लगा है। उन्हें पूरे मामले में साजिश की बू आती है। ’