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10 साल पुराने केस, ‘मिशन मोड’ में होगी सभी मामलों की सुनवाई

court_146277028753_650x425_050916103636न्याय की आस में सालों से देश की जेलों में कैद लोगों के मामलों को फास्ट ट्रैक करने का फैसला लिया गया है. देश के टॉप जजों ने की ओर से लिए गए इस फैसले से उन लाखों कैदियों को राहत मिलने की उम्मीद है जो सालों से जेल की सलाखों के पीछे हैं और दोषी ठहराए जाने के बाद मिलने वाली संभावित सजा से भी ज्यादा वक्त जेल में गुजार चुके हैं.

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नई योजना के तहत 10 साल से न्याय की राह देख रहे कैदियों के मामलों को प्रमुखता से सुना जाएगा. आंकड़ों के मुताबिक, ऐसे मामलों में देश की 1387 जेलों में करीब 280000 लोग कैद हैं. विचाराधीन कैदियों की संख्या देश में कुल कैदियों की संख्या की दो तिहाई है.

कई के पास वकील करने के लिए भी नहीं है पैसे
देश की जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी भरे हैं. अदालतों में केसों की फाइलें दबी पड़ी हैं. एक-एक केस का फैसला होने में सालों लग जाते हैं. कई बार ऐसा होता है कि आरोपी इतने गरीब होते हैं कि उनके पास वकील करने के लिए भी पैसे नहीं होते.

कैदियों की पहचान के लिए बनेगा मैकेनिज्म
इन सभी आंकड़ों पर गौर करने के बाद 23 अप्रैल को खत्म हुई चीफ जस्टिस कॉन्फ्रेंस 2016 में यह फैसला लिया गया कि 10 साल से ज्यादा समय से विचाराधीन मामलों की सुनवाई अब ‘मिशन मोड’ बेसिस पर होगी. इसके तहत चीफ जस्टिस भी अब तीन साल तक पुराने केसों की सुनवाई करेंगे. साथ ही ऐसे अंडरट्रायल कैदियों की पहचान के लिए मैकेनिज्म तैयार करेंगे जिन्होंने संभावित सजा से आधा समय जेल में ही बिता चुके हैं.

18 हजार केस विचाराधीन
आंकडों के मुताबिक, बीते तीन सालों में करीब 18000 केस विचारधीन हैं जिनमें से 80 फीसदी मामले सात राज्यों के हैं, जिनमें से 226 मामले बीते 10 साल से सिर्फ फैसले का इंतजार कर रहे हैं.

चीफ जस्टिस ने जताई थी चिंता
जेल स्टाफ के 33 फीसदी पद खाली होने और जेलों की हालत में सुधार को लेकर चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने राज्य सरकारों तो जल्द पद भरने के लिए कहा है.

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