कॉल ड्रॉप पर मोबाइल कंपनियों को सुप्रीम कोर्ट से मिली बड़ी राहत
कॉल ड्रॉप केस में सुप्रीम कोर्ट ने मोबाइल कंपनियों को राहत देते हुए बुधवार को कहा कि अब मोबाइल कंपनियों को इसके लिए हर्जाना नहीं देना पड़ेगा.
ट्राई के फैसले पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि कॉल ड्रॉपिंग पर अब मोबाइल कंपनियों को जुर्माना नहीं देना होगा. कोर्ट ने कहा कि ट्राई की ओर से मोबाइल कंपनियों पर ऐसे फैसले लादने का कोई तुक नहीं बनता.
21 दूरसंचार कंपनियों ने दी थी अर्जी
ट्राई ने दूरसंचार कंपनियों से कॉल ड्रॉप होने पर ग्राहक को एक रुपए प्रति कॉल ड्रॉप भुगतान करने को कहा है। हालांकि, एक दिन में अधिकतम तीन कॉल ड्रॉप के लिए ही भुगतान किया जाएगा. हाई कोर्ट ने ट्राई के फैसले को सही ठहराते हुए सेलुलर ऑपरेटर्स की याचिका खारिज कर दी थी. सेलुलर ऑपरेटर्स (दूरसंचार कंपनियों) के संगठन सीओएआई और भारती एयरटेल, वोडाफोन समेत 21 दूरसंचार कंपनियों ने इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
3 मई को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया था सुरक्षित
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में चली सुनवाई में सभी पक्षों के तर्क सुनने के बाद 3 मई को अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया था. मामले की सुनवाई के दौरान, कंपनियों और कंज्यूमर के वकीलों ने दिलचस्प तर्क रखे. एक ओर कंपनियों की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कॉल ड्रॉप के लिए सरकारी टैक्स ढांचे और महंगे स्पेक्ट्रम को जिम्मेदार ठहराया, वहीं कंज्यूमर्स का पक्ष रख रहे वकीलों ने कहा कि कंपनियां रोजाना 2 कॉल ड्रॉप तक की छूट ले लें, लेकिन इसके बाद होने वाले हर कॉल ड्रॉप के लिए मुआवजा दें.
कर्ज के बोझ तले दब गईं हैं कंपनियां
कंज्यूमर्स सेसायटी का तर्क है कि कंपनियां संभाल नहीं पा रहीं, फिर भी नए कस्टमर्स जोड़ रही हैं. टेलीकॉम कंपनियों ने दलील दी थी की 2जी मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर स्पेक्ट्रम की नीलामी कराए जाने से सेक्टर एक तरह से बर्बाद हो गया और कंपनियां कर्ज के बोझ तले दब गईं हैं. उन्हें स्पेक्ट्रम के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ रही है ऐसे में कॉल ड्रॉप मामले में कोई छूट नहीं देकर उनका बोझ और नहीं बढ़ाया जाना चाहिए.