राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में समय के साथ मोबाइल एप्लीकेशन के जरिए टैक्सी की सुविधा देने वाली कंपनियों की पूछ बढ़ी है. लेकिन कुछ समय से इस ओर कंपिनयों की लापरवाही भी सामने आ रही है. एक तरफ जहां महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर टैक्सी कंपनियां ड्राइवर्स के लिए बनाए गए नियम-कानून को पूरी तरह नजरअंदाज कर रही हैं.
दिल्ली की एक आम सुबह करीब 10 बजे मोबाइल एप्लीकेशन से ‘ओला’ की कैब बुक की जाती है. करीब 15 मिनट के अंदर ‘राजेश’ नाम का शख्स, जिसकी गाड़ी का नंबर UP-14-ET-8974 है, बाल भवन पहुंचता है. ये कैब ‘आज तक’ की टीम ने माता सुंदरी मार्ग से द्वारका जाने के लिए बुक की थी, लेकिन रियलिटी चेक में जो सच्चाई सामने आई वो चौंकाने वाली है.
न बैज, न डिस्पले और न ही पैनिक बटन
गाड़ी में बैठने के साथ ही सबसे पहले हमारी टीम ने ड्राइवर को ड्राइविंग लाइसेंस दिखाने को कहा, जो उसके पास था. लेकिन ड्राइवर ने अपना बैज नंबर नहीं दिखाया. यही नहीं, उसने कहा कि उसे ऐसे किसी बैज के बारे में कोई जानकारी नहीं है. गाड़ी के भीतर सवारी के लिए डिस्प्ले की जाने वाली न तो ड्राइवर की तस्वीर मिली, न कोई पैनिक बटन मिला, न ही गाड़ी में मालिक की जानकारी मिली और न ही रास्ता बताने वाला नेविगेशन. ड्राइवर के ड्रेस में ड्राइवर के नाम का बैच भी नहीं लगा हुआ था.
ड्राइवर ने कहा- पहले किश्त पूरी हो जाए
बहरहाल, पूछताछ के बाद ड्राइवर अपना बचाव करते नजर आया. उसका कहना है कि यह सब काम तब होगा जब किश्त पूरी हो जाएगी. लेकिन सवाल उठते हैं कि तमाम आपराधिक घटनाओं के बीच न तो डिस्पे के लिए ड्राइवर की तस्वीर और न ही वर्दी पर ड्राइवर का बैज. ऐसे में किसी सवारी को कैसे भरोसा होगा कि गाड़ी चला रहा शख्स वही है, जिसे कैब वाली कंपनी ने किया है.
सरकार द्वारा टैक्सी और कैब सर्विस के लिए कुछ नियम-कानून बनाये गए हैं. ये नियम सभी टैक्सी और कैब ऑपरेटर पर लागू होते हैं-
1) सभी टैक्सियों में जीपीएस व जीपीआरएस लगा होना चाहिए. इसके अलावा टैक्सियों में नेविगेशनल डिस्प्ले होना चाहिए जो बताए कि यात्रा का रूट क्या है और मंजिल से कितनी दूरी पर है.
2) जीपीएस व जीपीआरएस डिवाइस के माध्यम से टैक्सी का लिंक ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट के कंट्रोल रूम से जुड़ा रहना चाहिए.
3) टैक्सी के ड्राइवर की फोटो, उसका लाइसेंस का नंबर, बैज नंबर और गाड़ी का रजिस्ट्रेशन नंबर आदि टैक्सी के अंदर भी डिस्प्ले होना चाहिए, ताकि उसमें बैठने वाला यात्री भी उसे पढ़ सके.
4) टैक्सी के अंदर पैनिक बटन भी होना चाहिए ताकि खतरे का आभास होते ही यात्री उस पैनिक बटन को दबा सके. पैनिक बटन दबने की सूचना टैक्सी ऑपरेटर (कंपनी) के साथ-साथ निकटवर्ती पुलिस स्टेशन तक भी पहुंच जाए. इसके अलावा टैक्सी में अलार्म या हूटर भी लगाया जा सकता है.
5) एप्लीकेशन पर आधारित टैक्सी चालकों को अपने एप्लीकेशन में ऐसी सुविधा भी देनी चाहिए, ताकि खतरे का आभास होने पर लोकल पुलिस से संपर्क किया जा सके.
6) टैक्सी चलाने वाला ड्राइवर अच्छे चरित्र वाला होना चाहिए और उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होना चाहिए. यदि कोई व्यक्ति पिछले सात वर्षों में किसी आपराधिक गतिविधि खासकर यौन अपराध में शामिल हो तो उसे टैक्सी चलाने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए.
7) टैक्सी के मालिक और उसे चलाने वाले ड्राइवर की पुलिस वैरिफिकेशन टैक्सी चलाने का लाइसेंस लेने वाली कंपनी को खुद करानी चाहिए. यह जानकारी कंपनी को ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट के साथ-साथ ट्रैफिक पुलिस के साथ यह जानकारी साझा करे. इसके अलावा हर ट्रैक्सी ड्राइवर के लिए पब्लिक सर्विस बैज लगाना अनिवार्य हो, यह बैज परिवहन विभाग जारी करे.
बता दें कि दिल्ली महिला आयोग ने एप्लीकेशन पर आधारित टैक्सी चलाने वाली कंपनियों से टैक्सियों और उन्हें चलाने वाले ड्राइवर्स के संबंध में कई अहम जानकारी भी मांगी है. इसके तहत-
1) सभी एप्लीकेशन पर आधारित टैक्सी ऑपरेटर ऊपर बताये गए 1 से 7 प्वॉइंट को किस हद तक लागू कर रहे हैं इसकी जानकारी महिला आयोग को दें.
2) दिल्ली में कितनी टैक्सी चल रही है और इन टैक्सियों को चलाने वाले ड्राइवरों की संख्या कितनी है.
3) हर कंपनी के अंतर्गत टैक्सी चलाने वाले ड्राइवरों का पुलिस वेरिफिकेशन कराया गया है. इसका ब्योरा दिया जाए.
4) जो ड्राइवर टैक्सी चला रहे हैं उनमें से कितने ड्राइवरों के पास दूसरे राज्यों से बनवाए हुए ड्राइविंग लाइसेंस हैं. राज्यों का अलग-अलग ब्योरा दिया जाए.
6) यदि टैक्सी चलवाने वाली कंपनी के पास कोई खतरे की कॉल आती है तो कंपनी पुलिस से कैसे संपर्क करती है. उसकी प्रोटोकॉल क्या है. 2015 तक ऐसे कितने मामले हैं, जिसमें पुलिस की मदद ली गई है. ऐसे सभी मामलों की संक्षिप्त जानकारी दी जाए.
7) ऐसे ड्राइवरों की संख्या भी बताई जाए जिनके पास पब्लिक सर्विस बैज है जो परिवहन विभाग ने जारी किया है.
दिल्ली महिला आयोग ने यह सभी जानकारी सात दिनों के भीतर मांगी है. यदि जानकारी नहीं दी जाती है तो महिला आयोग आगे की कार्रवाई नियमानुसार करेगा.