पटना: राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कहा था कि भारत की आत्मा गाँवों में बसती है। भारत की आत्मा गाँवों को सशक्त करने के लिए किसानों का समृद्ध होना आवश्यक है। किसान हीं हैं जो अपने अथक परिश्रम से धरती को हरा-भरा रखते हैं। देश को अन्न-संपन्न बनाते हैं और देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ रखने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। अतः उनको फसल की ऊचित कीमत मिलनी हीं चाहिए। यह उनका अधिकार है।
प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी अनिवार्य खरीफ फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि की स्वीकृति दी गयी। न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि का निर्णय आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) ने लिया जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं।
2019 में गठित आर्थिक मामलों की समिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, नीतिन जयराम गडकरी, पीयूष गोयल, श्रीमती निर्मला सीतारमण, नरेन्द्र सिंह तोमर, डीवी सदानंद गौड़ा, रविशंकर प्रसाद, श्रीमती हरसिमरत कौर बादल, डॉ० एस० जयशंकर और धर्मेंद्र प्रधान शामिल हैं।
देश की स्वतंत्रता के उपरांत कृषि और कृषक की दशा सुधारने के लिए समय-समय पर अनेक रचनात्मक और सचधारात्मक प्रयास किये जाते रहें हैं। “कृषि लागत और मूल्य आयोग” (CACP) की भूमिका न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण में महत्वपूर्ण होती है।
जनवरी 1965 में, कृषि मंत्रालय; भारत सरकार के अंतर्गत “कृषि लागत और मूल्य आयोग” (CACP) की स्थापना की गयी। यह आयोग 23 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए संस्तुति करती है। समूहों और फसलों के समूह निम्न प्रकार हैं:
- खाद्यान्न
इसमें सात फसल हैं: धान, गेहूँ , मक्का, सोरघम, पर्ल मिल्लेट, बार्ले और रागी। - दलहन
इसके अंतर्गत पाँच फसल है: चना, तूर (अरहर), मूँग, उड़द और मसूर। - तेलहन
इसमें सात फसल है: मूँगफली, सरसों, सोयाबीन, तिल, सूरजमुखी, कुसुम और नाइजरसीड। - नकदी
इसमें चार फसल है: कोपरा(गरी), गन्ना, कपास और कच्चा जूट।
कृषि लागत मूल्य आयोग (CACP) का गठन एक अध्यक्ष, सदस्य सचिव, अधिकारिक और गैर – अधिकारिक सदस्यों से होता है। वर्तमान में, कृषि लागत और मूल्य आयोग के अध्यक्ष और सदस्य सचिव क्रमशः प्रो० विजय पॉल शर्मा और अनुपम मित्रा हैं। गैर-अधिकारिक सदस्य कृषक समुदाय से आते हैं। प्रायः गैर अधिकारिक सदस्य कृषक संगठनों से होते हैं।
कृषि लागत और मूल्य आयोग सरकार को अपनी संस्तुति मूल्य नीति प्रतिवेदन (price policy report) प्रत्येक वर्ष सौंपती है। यह प्रतिवेदन वस्तुओं के पाँच समूह़ों-खरीफ, रबी, गन्नख, कच्चा जूट, और कोपरा (गरी) के लिए होता है।
इन प्रतिवेदनों को तैयार करने से पहले आयोग एक व्यापक प्रश्नावली तैयार करती है और सभी राज्य सरकारों तथा सम्बन्धित राष्ट्रीय संगठनों और मंत्रालयों से उनके विचार माँगती है। आयोग सभी राज्यों के किसानों, राज्य सरकारों, राष्ट्रीय संगठन (यथा-फूड कॉरपोरेशन ऑफ इडिया, नाफेड, सीसीआई, जेसीआई, व्यापारिक संगठन, प्रोसेसिंग संगठन) और प्रमुख केन्द्रीय मंत्रालय के साथ अलग-अलग बैठकें करती हैं।
इसके अलावा आयोग राज्यों में मौके पर पहुँच कर किसानों की उत्पादन संबंधी समस्या और बाधाओं को, जिन्हें किसानों को सामना करना पड़ता है, जानने और समझने का प्रयास करती है। सभी इनपुट्स के आधार पर आयोग संस्तुति अथवा प्रतिवेदन तैयार करती है। इसके पश्चात् आयोग प्रतिवेदन को केन्द्र सरकार को सौंप देती है।
अब केन्द्र सरकार “कृषि लागत और मूल्य आयोग” द्वारा सौंपे गये प्रतिवेदन को राज्य सरकारों को प्रसारित करती है और संबंधित केंन्द्रीय मंत्रालय को भी टिप्पणी के लिए भेजती है। इन सभी से प्रतिपुष्टि (फीडबैक) मिलने के बाद केंद्र की आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अंतिम निर्णय लेती है।
यह प्रक्रिया संघीय व्यवस्था का उत्तम उदाहरणों में से एक है जो भारतीय लोकतंत्र को शनैः शनैः मजबूत करने में अपनी अहम भूमिका निभा रही है।