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AIADMK के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले के बाद भाजपा को लगा झटका

भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की मौत के बाद AIADMK के रास्ते तमिलनाडु की राजनीति में एंट्री की योजना बनाई थी। लेकिन AIADMK के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले के बाद पार्टी का यह प्लान खटाई में पड़ता नजर आ रहा है।

नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव 2019 की तैयारी में जुटी केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के दक्षिण भारत मिशन को झटका लगा है। तमिलनाडु में सत्ताधारी दल ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) ने राज्य की सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। दरअसल, पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के बाद बिखरी हुई AIADMK की कमजोरी का फायदा उठाकर लोकसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन करने की फिराक में थी। AIADMK द्वारा बुधवार को एक विज्ञप्ति जारी कर लोकसभा चुनाव लड़ने में दिलचस्पी रखने वाले नेताओं को 25000 रुपये न्यूनतम शुल्क के साथ 4 फरवरी से 10 फरवरी तक आवेदन देने को कहा था। आगामी लोकसभा चुनाव AIADMK की पूर्व प्रमुख और मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के बाद पार्टी के लिए पहला बड़ा मुकाबला है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में AIADMK ने तमिलनाडु की 39 सीटों में से 37 सीटें जीती थीं। जबकि 1 सीट बीजेपी और 1 सीट पीएमके के खाते में आई थी।

AIADMK ने इससे पहले चुनावी घोषणापत्र और गठबंधन के लिए तीन कमेटियों का गठन किया था। लेकिन कुछ स्थानीय मुद्दों को लेकर बीजेपी के रुख के चलते AIADMK ने गठबंधन करना मुनासिब नहीं समझा, इसमे सबसे प्रमुख मुद्दा कावेरी विवाद को लेकर है, जिसमें पार्टी का मानना है कि केंद्र की बीजेपी सरकार ने कर्नाटक के हित को ध्यान में रखते हुए तमिलनाडु की अनदेखी की, दूसरा बड़ा मुद्दा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई से जुड़ा है, जिसे लेकर विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर केंद्र से गुहार लगाई गई थी। तीसरा मुद्दा भाषाई वर्चस्व को लेकर है, जिसमें AIADMK का मानना है कि बीजेपी हिंदी भाषा को थोप रही है। इसके अलावा AIADMK का मानना है कि हाल में आए चक्रवाती तूफान के बाद राज्य मे हुई तबाही से निबटने के लिए केंद्र की तरफ से पर्याप्त फंड नहीं दिया गया।

पिछले कुछ दिनों से तमिलनाडु में इस तरह की खबरें चर्चा का विषय बनी हुई थी कि बीजेपी, AIADMK के बागी खेमे टीटीवी दिनाकरन का पार्टी में विलय कराकर गठबंधन करने की तैयारी में है। बता दें कि तमिलनाडु में सत्ताधारी AIADMK में जयललिता के निधन के बाद नेतृत्व को लेकर जबरदस्त सियासी खींचतान हुई थी। जयललिता के निधन के बाद AIADMK दो खेमों में बंट गई थी। जिसमें एक धड़ा मौजूदा मुख्यमंत्री ईके पलानीस्वामी के साथ खड़ा था, तो दूसरा धड़ा वर्तमान उप-मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम से साथ खड़ा था। माना जाता है कि बीजेपी की मध्यस्तता के बाद ये दोनो खेमे एक साथ आए और AIADMK के विघटन का खतरा टल गया। हालांकि जयललिता की करीबी शशिकला का गुट अब भी पार्टी में वर्चस्व को लेकर सक्रिय था। जयललिता के निधन के बाद खाली हुई आरके नगर विधानसभा सीट पर उप-चुनाव में शशिकला गुट के नेता टीटीवी दिनाकरन ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर AIADMK के आधिकारिक उम्मीदवार को पटखनी दे दी, इसके बाद दिनाकरन की लोकप्रियता बढ़ गई और उनके समर्थन उन्हें जयललिता का असल राजनीतिक वारिस मानने लगे।

दिनाकरन की लोकप्रियता को देखते हुए AIADMK के 18 विधायक उनके साथ हो गए। हालांकि विधानसभा अध्यक्ष ने इन्हें बागी घोषित करते हुए इनकी सदस्यता रद्द कर दी। सीटों के लिहाज से दक्षिण के सबसे बड़े सूबे तमिलनाडु में विपक्ष गठबंधन पहले से मजबूत होता दिख रहा है। जिसमें कांग्रेस, डीएमके और लेफ्ट शामिल हैं। वहीं, इस गठबंधन में अभिनेता कमल हासन की नई पार्टी के भी शामिल होने की खबरें हैं। जबकि, दूसरी तरफ AIADMK अकेले खड़ी है, जिसमें अब भी नेतृत्व का संकट बरकरार है। बीजेपी की योजना थी कि अपेक्षाकृत कमजोर हो चुकी AIADMK और रजनीकांत के संभावित राजनीतिक दल के साथ गठबंधन कर राज्य में विपक्ष के गठबंधन को चुनौती दी जाए। लेकिन AIADMK के अकेले लड़ने के फैसले से बीजेपी का यह प्लान खटाई में पड़ गया है।

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