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बाबरी विध्वंस मामला में सबसे बड़ा फैसला, सभी आरोपी हुए बरी

लखनऊ: बाबरी विध्वंस मामले में लखनऊ में कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है और सभी आरोपियों को बरी कर दिया है फैसले में बताया गया है कि घटना अक्समक हुई थी इस लिए सभी को बरी कर दिया गया है।

क्या है बाबरी विध्वंस मामला

सोलहवीं सदी में मुग़ल बादशाह बाबर के दौर में बनी बाबरी मस्जिद को 6 दिसंबर, 1992 को कारसेवकों की एक भीड़ ने ढहा दिया था। इसके बाद पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया, हिंसा हुई और सैंकड़ों की संख्या में लोगों की जानें गईं।

उसके बाद बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले में दो एफ़आईआर दर्ज किए गए। पहली, इसे गिराने वाले कारसेवकों के ख़िलाफ़, तो दूसरी बीजेपी, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और आरएसएस से जुड़े उन 8 लोगों के ख़िलाफ़ थी जिन्होंने रामकथा पार्क में मंच से कथित तौर पर भड़काऊ भाषण दिया था।

दूसरे एफ़आईआर में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, वीएचपी के तत्कालीन महासचिव अशोक सिंघल, बजरंग दल के नेता विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, मुरली मनोहर जोशी, गिरिराज किशोर और विष्णु हरि डालमिया नामज़द किए गए थे।

पहला मामला सीबीआई को तो दूसरा मामला सीबीसीआईडी को सौंपा गया जिसे बाद में एक साथ जोड़ते हुए सीबीआई ने संयुक्त आरोप पत्र दाखिल किया क्योंकि दोनों मामले एक दूसरे से जुड़े हुए थे।

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साथ ही आरोप पत्र में बाला साहेब ठाकरे, कल्याण सिंह, चंपत राय, धरमदास, महंत नृत्य गोपाल दास और कुछ अन्य लोगों के नाम जोड़े गए।

इसी महीने की दो तारीख़ को इस मुक़दमे में सीबीआई की विशेष अदालत ने सभी जीवित अभियुक्तों के बयान दर्ज करके मामले में सभी अदालती कार्यवाही पूरी कर ली थी। तब अदालत ने 30 सितंबर को फ़ैसला सुनाने का निर्णय लिया था।

सुनवाई पूरी होने तक कुल मिलाकर इस मामले में सीबीआई ने अपने पक्ष में 351 गवाह और क़रीब 600 दस्तावेज़ पेश किए।

आपको बता दें कि इस केस में कुल 49 आरोपियों के खिलाफ ट्रायल चल रहा था, जिनमें से 17 की मौत हो चुकी है।

बाबरी मामला : जानिए बीते 28 साल में कब क्या हुआ

करीब 28 साल पहले 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद ढहा दी गई थी। इस मामले में 6 दिसंबर 1992 को फैजाबाद में दो एफआईआर दर्ज हुई। एफआईआर नंबर 197 में ‘लाखों कारसेवकों’ के खिलाफ केस दर्ज हुआ। एफआईआर नंबर 198 में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, बाल ठाकरे, उमा भारती सहित 48 के खिलाफ षड्यंत्र का केस दर्ज किया गया।


सीबीआई के पास आया केस

1993 में केस सीबीआई को सौंप दिया गया। 48 हिंदूवादी नेताओं के खिलाफ रायबरेली और कारसेवकों के खिलाफ लखनऊ में ट्रायल शुरू हुआ। इसी साल अक्टूबर में सीबीआई ने दोनों मामलों में चार्जशीट दाखिल कर आडवाणी सहित बीजेपी के अन्य नेताओं को षड्यंत्र का आरोपी करार दिया।

आडवाणी और अन्य आरोपियों ने दी चुनौती

1996 में उत्तर प्रदेश सरकार ने दोनों केसों के एक साथ चलाए जाने के संबंध में नोटिफिकेशन जारी किया। लखनऊ कोर्ट ने भी सभी केसों में ‘आपराधिक षड्यंत्र’ का मामला जोड़ा। आडवाणी और अन्य ने इसे चुनौती दी।

आडवाणी सहित 13 अन्य के खिलाफ षड्यंत्र का आरोप हटा

4 मई 2001 को स्पेशल कोर्ट ने आडवाणी सहित 13 अन्य के खिलाफ षड्यंत्र का आरोप हटा दिया। कोर्ट ने भी रायबरेली कोर्ट में दोनों केस की अलग-अलग सुनवाई का आदेश दिया।

सीबीआई ने 2003 में फाइल की चार्जशीट

2003 में सीबीआई ने चार्जशीट फाइल की। रायबरेली कोर्ट ने कहा कि आडवाणी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं। हाई कोर्ट ने मामले में हस्तक्षेप किया। फिर आपराधिक षड्यंत्र के खिलाफ ही ट्रायल चला।

2012 में सुप्रीम कोर्ट गई सीबीआई

23 मई 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आडवाणी और 13 अन्य के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र का चार्ज हटा लिया, जिसके बाद सीबीआई 2012 में सुप्रीम कोर्ट चली गई। सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक षड्यंत्र को फिर से बहाल करते हुए स्पीडी ट्रायल करने का निर्देश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने दो साल के अंदर ट्रायल पूरा करने का दिया आदेश

अप्रैल 2017 के अपने ऑर्डर में सुप्रीम कोर्ट ने दो साल के अंदर ट्रायल पूरा करने का आदेश दिया। इस केस में ट्रायल लखनऊ और रायबरेली की दो अदालतों में चला। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2017 के अपने आदेश में लखनऊ में ही ज्वाइंट ट्रायल चलाए जाने का आदेश दिया।

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश हुए आडवानी व जोशी

21 मई 2017 को नियमित सुनवाई शुरू होने पर सभी आरोपियों को जमानत के लिए कोर्ट के समक्ष पेश होना पड़ा। लेकिन लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे लोग लॉकडाउन के दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश हुए।

सुप्रीम कोर्ट ने डेडलाइन बढ़ाई

8 मई 2020 को सु्प्रीम कोर्ट ने डेडलाइन को पहले 3 महीने के लिए और फिर उसके बाद एक महीने के लिए बढ़ा दिया। यह क्रिमिनल केस 6 दिसंबर 1992 में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद अयोध्या पुलिस में दर्ज हुए दो FIR से संबंधित था।

1 सितंबर को मामले की सुनवाई पूरी

अयोध्या में विवादित ढांचा विध्वंस मामले में विशेष सीबीआई अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें, गवाही, जिरह सुनने के बाद 1 सितंबर को मामले की सुनवाई पूरी कर ली। दो सितंबर से फैसला लिखना शुरू हो गया था

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मामले के 32 आरोपी

लालकृष्ण आडवाणी

मुरली मनोहर जोशी

महंत नृत्य गोपाल दास

कल्याण सिंह

उमा भारती

विनय कटियार

साध्वी रितंभरा

रामविलास वेदांती

धरम दास

सतीश प्रधान

चंपत राय

पवन कुमार पांडेय

ब्रज भूषण सिंह

जय भगवान गोयल

महाराज स्वामी साक्षी

रामचंद्र खत्री

अमन नाथ गोयल

संतोष दुबे

प्रकाश शर्मा

जयभान सिंह पवेया

विनय कुमार राय

लल्लू सिंह

ओमप्रकाश पांडेय

कमलेश त्रिपाठी उर्फ सती दुबे

गांधी यादव

धर्मेंद्र सिंह गुर्जर

रामजी गुप्ता

विजय बहादुर सिंह

नवीन भाई शुक्ला

आचार्य धर्मेंद्र देव

सुधीर कक्कड़

रविंद्र नाथ श्रीवास्तव

अशोक सिंहल

गिरिराज किशोर

बालासाहेब ठाकरे

विष्णु हरि डालमिया

मोरेश्वर सावे

महंत अवैद्यनाथ

विनोद कुमार वत्स

राम नारायण दास

लक्ष्मी नारायण दास महात्यागी

हरगोविंद सिंह

रमेश प्रताप सिंह

देवेंद्र बहादुर राय

महामंडलेश्वर जगदीश मुनि महाराज

बैकुंठ लाल शर्मा

विजयराजे सिंधिया

परमहंस रामचंद्र दास

डॉक्टर सतीश कुमार नागर

  

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