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आम आदमी के लिए एक और बुरी खबर, अप्रैल से महंगी हो जाएंगी जरूरी दवाएं

नई दिल्ली: दिन-ब-दिन पेट्रोल-डीजल और खाद्य तेलों के भाव बढ़ते जा रहे है। इसी बिच आम आदमी के लिए एक और बुरी खबर सामने आई है। अप्रैल महीने से पैन किलर, एंटीबायोटिक्स, एंटी-वायरस समेत जरूरी दवाओं की कीमतें बढ़ने वाली हैं। बता दें कि, सरकार ने शेड्यूल दवाओं के लिए 10 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी की अनुमति दी है।

The Economic Times के मुताबिक, शुक्रवार को भारत की ड्रग प्राइसिंग अथॉरिटी (Drug Pricing Authority of India) ने दवाओं के कीमतों में बढ़ोतरी की अनुमति दे दी है, जो मूल्य नियंत्रण में हैं। यह दर 10.7 फीसदी से ज्यादा है। यह उच्चतम कीमत बढ़ोतरी की अनुमति है। उल्लेखनीय है कि, अप्रैल से जरूरी दवाओं की राष्ट्रीय सूची (NLIM) के तहत 800 से ज्यादा दवाओं की कीमतें बढ़ने वाली है।

रिपोर्टों के अनुसार, इससे पहले भारत में दवाइयों की कीमतों को नियंत्रित करने वाली एक सरकारी नियामक एजेंसी नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) ने 23 मार्च को दवाई बनानेवाली कंपनियों से थोक मूल्य सूचकांक (WPI) के आधार पर कीमते बढ़ाने के लिए जरूरी दस्तावेज जमा करने को कहा था। उस समय कहा गया था कि, देश में 1 अप्रैल से सभी जरूरी दवाओं के दाम करीब 2 फीसदी तक बढ़ सकते हैं।

मूल्य निर्धारण प्राधिकरण की तरफ से सोमवार को जारी कार्यालय विज्ञप्ति में कहा गया कि, “जैसा कि आर्थिक सलाहकार (वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय) द्वारा पुष्टि की गई है, कैलेंडर वर्ष 2016 के दौरान थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में वार्षिक परिवर्तन 2015 की इसी अवधि की तुलना में 1.97186% है।”

दवा मूल्य नियंत्रण (Drug Price Control) आदेश के मुताबिक, दवा कंपनी के WPI में बदलाव के आधार पर नियामक की तरफ से जरूरी दवाओं की कीमत में बदलाव किया जाता है। उल्लेखनीय है कि, दवाओं की कीमतें जो आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची का हिस्सा हैं। किसी विशेष विभाग में सभी दवाएं सीधे सरकार द्वारा नियंत्रित होती हैं और दवाओं की अधिकतम कीमतें कम से कम 1 प्रतिशत की बाजार हिस्सेदारी के साथ एक साधारण औसत से सीमित होती हैं।

यह दवाएं होंगी महंगी
विशेष रूप से, आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में 875 से अधिक दवाएं शामिल हैं, जिनमें मधुमेह, कैंसर की दवाओं, हेपेटाइटिस, उच्च रक्तचाप, गुर्दे की बीमारी आदि के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली एंटीरेट्रोवाइरल दवाएं शामिल हैं। जो कंपनियां आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची का हिस्सा नहीं हैं, उन्हें अपनी कीमतों में प्रति वर्ष 10 प्रतिशत तक की वृद्धि करने की अनुमति है। वर्तमान में, दवा बाजार का 30 प्रतिशत से अधिक प्रत्यक्ष मूल्य नियंत्रण के अधीन है।

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