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जजों की नियुक्तिः नामों को मंजूरी देने में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शीर्ष अदालत में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम (collegium) की ओर से भेजे गए नामों को मंजूरी देने में केंद्र सरकार की देरी पर सोमवार को नाराजगी जताई है। अदालत ने कहा, यह नियुक्ति के तरीके को प्रभावी रूप से विफल करता है। चार महीने की अधिकतम सीमा है लेकिन डेढ़ साल हो गया, सरकार की ओर से कोई सूचना नहीं है, हमने अवमानना नोटिस जारी करने में धैर्य रखा हुआ है।

न्यायमूर्ति एसके कौल और एएस ओका की पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने नियुक्ति प्रक्रिया पूरी करने के लिए समय सीमा निर्धारित की थी। इसका पालन करना होगा। शीर्ष अदालत ने 2015 के अपने फैसले में एनजेएसी ऐक्ट और संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 को रद्द कर दिया था, जिससे शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाले मौजूदा न्यायाधीशों की कॉलेजियम प्रणाली बहाल हो गई थी।

पीठ ने सवाल किया कि आखिर तंत्र किस तरह काम करता है। हम अपना रोष पहले ही जता चुके हैं। इस पर अटार्नी जनरल (एजी) ने कहा, वह कोर्ट की भावना से सरकार को अवगत करवा देंगे। उन्होंने आश्वासन दिया कि वह मसले को सुलझाने का प्रयास करेंगे।

बता दें कि जस्टिस कौल की पीठ बेंगलुरु लॉयर्स एसोसिएशन की वर्ष 2021 में दायर की गई एक याचिका पर सुनवाई कर रही है। इस याचिका में कहा गया है कि कॉलेजियम की सिफारिशों के दोहराने के बावजूद 11 नामों को केंद्र सरकार ने मंजूरी नहीं दी है।

केंद्र सरकार ने कॉलेजियम से उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति से जुड़ी 20 फाइलों पर पुनर्विचार करने को कहा है। केंद्र ने बीते 25 नवंबर को ये फाइल लौटाई हैं। इन मामलों में 11 नए मामले हैं, जबकि नौ मामलों को दोहराया है।

पीठ ने कानून मंत्री किरेन रिजिजू के उस बयान का संज्ञान लिया जिसमें वह कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा, हम मीडिया रिपार्टों को सामान्यत नजरअंदाज करते हैं, लेकिन यह उस व्यक्ति की ओर से आया जो उच्च स्तर पर बैठा है, यह नहीं होना चाहिए था।

न्यायमूर्ति एसके कौल ने कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार इस तथ्य से नाखुश है कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को मंजूरी नहीं मिली, लेकिन यह देश के कानून का पालन नहीं करने की वजह नहीं हो सकती।

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