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मणिपुर के मोरेह में सुरक्षा को चाक चौबंद करेगा असम राइफल्स

नई दिल्ली (विवेक ओझा): असम राइफल्स सुर्खियों में है। वजह है मणिपुर के मोरेह में इस अर्ध सैनिक बल के डायरेक्टर जनरल लेफ्टिनेंट जनरल पी सी नायर का जांच पड़ताल की कार्यवाही। वह सिविल सोसाइटी संगठनों के सदस्यों से भी मिले। मोरेह स्थित सभी सिविक निकायों से असम राइफल्स के डीजी ने कहा कि उनकी सभी शिकायतों को सुनकर उसकी जांच पड़ताल की जाएगी तब तक बॉर्डर टाउन के सभी नागरिक खासकर महिलाएं शांति स्थापना में अपना योगदान दें।

दरअसल मणिपुर में हिंसा की स्थितियों के मद्देनजर इसके अलग अलग जिलों में सुरक्षा इंतजाम को पुख्ता करने की जरूरत है। मोरेह ही वो एंट्री प्वाइंट है जहां से म्यांमार से अवैध अफीम, हीरोइन, कोकीन और हथियार की तस्करी की जाती है। इसलिए मोरेह मणिपुर सबसे सेंसिटिव क्षेत्रों में से एक माना जाता है। यह भारत म्यांमार की सीमा पर स्थित बॉर्डर टाउन है। भारत म्यांमार के साथ 1643 किमी लंबी सीमा साझा करता है। भारत के चार राज्यों अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर और मिजोरम की सीमा म्यांमार से लगती है।

असम राइफल्स के बारे में:

असम राइफल्स भारत का सर्वाधिक पुराना अर्धसैनिक बल है जिसे ब्रिटिश भारत में 1835 में गठित किया गया था। इसका गठन ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान हुआ था। ब्रिटिशर्स ने 1835 में असम के चाय बागानों की रक्षा के उद्देश्य से कछार लेवी के नाम से एक सहायक सेना ( मिलिशिया) के रूप में इसका गठन किया था । 1917 से इसे आसान राइफल्स के नाम से जाना जाने लगा। वर्ष 1965 के पूर्व नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी ( नेफा ) के लिए अपनाई गई नीति के तहत यह भारत के विदेश मंत्रालय के तहत कार्य करता था और वर्ष 1965 में भारत सरकार के गृह मंत्रालय को इसके प्रशासनिक नियंत्रण और भारतीय सेना को इसके ऑपरेशनल नियंत्रण का अधिकार दे दिया गया।

उल्लेखनीय है कि यह भारत का ऐसा अर्ध सैनिक बल है जिसने 1962 के भारत – चीन युद्ध , 1965 और 1971 के भारत – पाकिस्तान युद्ध और श्रीलंका में भारत द्वारा ऑपरेशन पवन के तहत भेजी गई शांति वाहिनी सेना के भाग के रूप में सक्रिय भूमिका निभाई थी। उत्तरपूर्वी भारत में विप्लवकारी घटनाओं से निपटने के लिए इसने ऑपरेशन जेरिको को भी संपन्न किया था।

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