हिन्दू धर्म में अशुभ माना जाता है भद्रा काल, नहीं किया जाता है कोई भी शुभ कार्य
नई दिल्ली ; हिंदू धर्म में किसी भी कार्य को करने से पहले पंचांग के अनुसार दिन और शुभ मुहूर्त का निर्धारण किया जाता है। मान्यता है कि शुभ मुहूर्त में किए गए कार्य सफल होते हैं। हिंदू धर्म में भद्रा काल को अशुभ माना जाता है इसलिए इस दौरान कोई भी जरूरी काम करते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। हिन्दू धर्म में भद्रा काल को अशुभ क्यों माना जाता है, इसका भी अपना एक कारण है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भद्रा भगवान सूर्यनारायण की पुत्री और शनि देव की छोटी बहन हैं, जिसके कारण इनका स्वभाव शनिदेव की तरह क्रोधी बताया गया है। माना जाता है कि भद्रा के स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए भगवान ब्रह्मा ने इसे पंचांग के एक विशेष भाग में रखा था। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भद्रा काल में किसी भी तरह के शुभ कार्य जैसे मुंडन, गृहप्रवेश, वैवाहिक कार्य आदि करना अशुभ माना जाता है।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भद्रा का शाब्दिक अर्थ कल्याण है। हालांकि भद्रा इसके शाब्दिक अर्थ के ठीक विपरीत है। इसलिए भद्रा काल में शुभ कार्य करने की सलाह नहीं दी जाती है। माना जाता है कि भाद्र काल में शुभ कार्य करने से किसी भी अप्रिय घटना की संभावना बढ़ जाती है।
सनातन हिन्दू परम्पराओं के अनुसार हिन्दू पंचांग के कुल 5 भाग होते हैं। इनके नाम हैं- तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इसमें 11 करण होते हैं और सातवें करण का नाम भद्रा है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुम्भ या मीन राशि में होता है तब भद्रा का वास पृथ्वी पर होता है। जब चंद्रमा मेष, वृष या मिथुन राशि में हो तब भद्रा स्वर्ग में निवास करती है। जब चन्द्रमा धनु, कन्या, तुला या मकर राशि में रहता है तब भद्रा पाताल लोक में निवास करती है। ऐसी मान्यता है कि जिस लोक में भद्रा रहती है, उसका प्रभाव देखा जाता है। इसलिए जब भद्रा का वास पृथ्वी पर होता है तो कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है।