सोवियत जासूस बताया था, बम–आविष्कारक को !
अमरीका ने प्रायश्चित किया, राष्ट्रभक्त कहकर !!
स्तंभ: गत सदी के अपने जघन्यतम पाप का अंततः अमरीका ने प्रायश्चित कर ही लिया। सात दशकों बाद, गत शुक्रवार (16 दिसंबर 2022), को सरकारी तौर पर बाइडेन प्रशासन ने महान भौतिक वैज्ञानिक जूलियस रॉबर्ट ओपनहाईमर को गद्दारी के लांछन से मुक्त किया, निर्दोष पाया तथा देशप्रेमी माना। उन्होंने अमेरिका के लिए परमाणु बम बनाया था। इसे हिरोशिमा और नागासाकी पर फोड़ा गया था। बाद में उन्हें सोवियत (कम्युनिस्ट) रूस का गुप्तचर बताकर हर किस्म के अपमान, अवमानना, अनादर करके अवसादग्रस्त बनाया गया, जब तक (1967) वे मरे नहीं। अब लंबी जांच के बाद अमरीका की ऊर्जा सचिव श्रीमती जेनिफर मुलहर्न ग्राहनहोम ने बेगुनाह वाला निर्णय घोषित कर दिया, फर्जी दस्तावेजों में त्रुटि और तथ्यहीनता पाकर। सबको दरकिनार कर दिया। मध्य-पश्चिमी राज्य मिशीगन की प्रथम महिला गवर्नर रहीं जेनिफर इस जांच से जुड़ी थीं।
ओपनहाइमर प्रारंभ से ही ऐसे अपार नरसंहार वाले शस्त्र के निर्माण का विरोध करते रहें। अंततः हिटलर और टोजों (जापानी प्रधानमंत्री) के विश्व साम्राज्य वाले सपने को नष्ट करने हेतु बम बनाने के लिए तैयार हुए। भगवत गीता के निष्णात ओपनहाइमर ने बम बनाने के बाद और जापान पर उसे फोड़ने के वक्त गीता के ग्यारहवें अध्याय के 32वें श्लोक को सुनाया था कि : “मैं (भगवान कृष्ण) लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ काल हूं।” अर्जुन का उनसे प्रश्न था : “आप कौन हैं” ? शायद ओपनहाइमर पर श्राप था दो ध्वस्त जापानी शहरों की जनता का। त्रासदी की अनुभूति स्वयं उन्हे भी हो रही थी। अतः वे प्रारूब्ध भुगतने हेतु विवश थे। इसीलिए वे जमकर सक्रिय विरोध करते रहे, जब राष्ट्रपति हैरी ट्रूमन ने परमाणु बम बनाने का आदेश दिया था। अमेरिकी राष्ट्रपति को खौफ था कि विश्वयुद्ध जीतकर सोवियत रूस अधिक विनाशकारी बम बनायेगा। विश्वव्यापी वर्चस्व बना लेगा। मगर विनाश की विभीषिका के आतंक से भयभीत ओपनहाइमर ने सरकार से सहयोग नहीं किया।
तभी सिनेटर जोसेफ मेक्कार्थी का आविर्भाव हुआ। वे इतिहास में जाने जाते हैं कम्युनिस्टों के उग्रतम विरोधी और सोवियत रूस के घोरतम शत्रु के रूप में। उन्होंने ओपनहाइमर को सोवियत कम्युनिस्टों का यार करार दिया। तभी से इस भयातुर वैज्ञानिक की दुखगाथा शुरू हुई। विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद, ओपेनहाइमर नवनिर्मित संयुक्त राज्य अमेरिका परमाणु ऊर्जा आयोग की प्रभावशाली जनरल एडवाइजरी कमेटी के अध्यक्ष बने। उन्होंने परमाणु प्रसार को बाधित करने और सोवियत संघ के साथ परमाणु हथियारों की दौड़ को रोकने के लिए परमाणु ऊर्जा के अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण के लिए अपने पद का उपयोग किया। उनके स्पष्ट विचारों के लिए कई नेताओं की आलोचना के बाद, ओपनहाइमर की 1954 में एक फरेबी सुनवाई में शासकीय सुरक्षा गारंटी रद्द कर दी गयी। आरोपी बनाया। प्रभावी रूप से उनकी प्रत्यक्ष राजनीतिक शक्ति को क्षीण कर दिया गया। तब भी उन्होंने भौतिकी में व्याख्यान, लेखन और काम करना जारी ही रखा। नौ साल बाद, राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने उन्हें सम्मानित किया। उपराष्ट्रपति लिंडन बी जॉनसन ने उन्हें राजनीतिक पुनर्वास के संकेत के रूप में एनरिको फर्मी पुरस्कार के साथ नवाजा।
ओपनहाइमर सदैव हाइड्रोजन बम के निर्माण के खिलाफ थे। उन्हें वर्षों तक सरकार द्वारा यातना पहुंचाने के बाद, समूचे अमरीकी राष्ट्र ने उनके साथ सिनेटर मैकार्थी द्वारा किए अत्याचार का विरोध किया गया। कई अमरीकी इतिहासवेत्ता इस वैज्ञानिक के लिए न्याय की गुहार करते रहें। जब उनके रूसी जासूस होने का कोई प्रमाण नहीं मिला, तो उन्हें दोषमुक्त किया गया। मगर तब तक ओपनहाइमर का निधन हो चुका था। इतिहास ने उन्हें अब सत्पुरुष का दर्जा तो दे दिया है। ओपनहाइमर का दृष्टांत केरल के अंतरिक्ष वैज्ञानिक नंबी नारायण को पाकिस्तानी जासूस बताकर उत्पीड़ित करने के समान था। उच्चतम न्यायालय ने नारायण को निर्दोष करार दिया। मगर तब तक तीन दशक बीत चुके थे। ओपेनहाइमर से उनकी सहानुभूति थी। ओपनहाइमर के सत्कर्मो ने ही उनकी मान मर्यादा लौटाई। वे अब दूसरे लोकवासी हो गए। ओपनहाइमर अपने उन शब्दों को याद कर रहे होंगे जो उन्होंने जापान पर बम फोड़ने के वक्त पर कहा था। वे पंक्तिया ओपनहाइमर ने अपने प्रिय संस्कृत कवि भर्तृहरि के शतकत्रयम से लिया था : उज्जैन नरेश भर्तृहरि का विचार था कि “उनके हाथों : युद्ध में, जंगल में, पहाड़ों की चट्टान पर, गहरे समुद्र में, भाले और बाणों के बीच में, नींद में, भ्रम में, शर्म की गहराई में, मनुष्य ने जो अच्छे कर्म किए हैं, वे उसकी रक्षा करते हैं।”
हीरोशिमा और नागासाकी पर बम विस्फोट पर ओपनहाइमर ने याद किया गीता के श्लोक को : “दिवि सूर्यसहस्त्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता। यदि भाः सदृशी सा स्याध्दासस्तस्य महात्मन”: ।।12।। (आकाश में हजार सूर्योंकि एक साथ उदय होने से उत्पन्न जो प्रकाश हो, वह भी उस विश्वरूप परमात्मा के प्रकार के सदृश कदाचित ही हो। अर्थात इस विषादग्रस्त भौतिकशास्त्री को ख्याल हो गया था कि उनके हाथों कितना भयंकर, त्रासदपूर्ण कृत्य हुआ है। प्रारूब्ध तो होना ही था। भोगा भी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)