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इक्कीसवीं सदी की भारत की यात्रा-एक पृष्ठभूमि

के.एन. गोविन्दाचार्य

भाग-2

भारत पहले रूस, फिर थोड़े समय चीन और 1990 से अमेरिका बनने की कोशिश मे लगा। पर ब्राजीलीकरण की ओर बढ़ा। ब्राजील की आबादी उत्तर प्रदेश के बराबर और क्षेत्रफल डेढ़ गुना से ज्यादा।

प्रति व्यक्ति ब्राजील 12 गुना सुविधा में भारत की बनिस्वत है। बेतरतीब शहरीकरण का आलम यह है कि वहाँ तो चार शहर 2 करोड़ से अधिक है। उसमे से 70% से अधिक लोग स्लम मे है। स्लम का अर्थ यह है कि नागरिक सुविधाओं का मात्र 1% स्लमवासियों को प्राप्त होता है।

Manual for Urban Gurrilla Warfare सरीखे साहित्य प्रकाशित हो चुका था। ब्राजील एवं अन्य लैटिन अमेरिकी देश इसकी चपेट में रहे हैं। 2005 के बीच WTO चमक कम हो गई। यूरोप, अमेरिका के बीच स्वार्थों का टकराव हो गया। फलतः दोनों की WTO मे रूचि घट गई। द्विपक्षीय व्यापार वार्ता मे उनको ज्यादा फायदा लगने लगा।

भारत की राष्ट्र चेतना 1950 से 1990 के बीच धीरे-धीरे तीव्र हो गई। अगली पीढियाँ तीन प्रकार की खुमारी से मुक्त होने लगी। पहली विभाजन की त्रासदी, दूसरी उपनिवेशवाद की महिमा की खुमारी और तीसरी खोखले समाजवाद की खुमारी। इसका स्वाभाविक परिणाम होता कि राष्ट्र के बारे मे दूसरी और तीसरी धारा कमजोर पड़ती और उसका स्थान पहली धारा के विचारों को मिलता।

अंग्रेजों के जाने बाद 1950 से 80 तक समाजवाद मुख्य धारा बना। 80-2010 से सेकुलरवाद ने उसका स्थान लिया। 2010 के बाद से हिन्दुत्व मुख्य धारा बन रहा है। उसके अनेक छटाएँ पहली धारा के सहमना गतिविधियाँ, समूहों के रूप मे दिखाई पड़ती है। वह पहली धारा भारतवर्ष की राष्ट्रीय चेतना की उभार है। 1980 के बाद से राष्ट्रवादी धारा का आग्रह बढ़ता गया है।

देशज परंपरा के अनुरूप अल्पसंख्यक तुष्टीकरण का विरोध, सभी के साथ न्याय, किसी का तुष्टीकरण आदि मुहिम मे अभिव्यक्ति दिखती है।

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राम जन्म भूमि आन्दोलन उसी चेतना, आत्मछवि, आत्मस्मृति की राष्ट्रीय अभिव्यक्ति है। स्वदेशी जागरण मंच एवं उस सरीखे अनेक समूह इसी छटा की अभिव्यक्ति है।  इसी कालखंड में आतंकवाद तेजी से बढा। जम्मू कश्मीर से हिन्दुओं को भगाया गया। वही राष्ट्र चेतना के अनुकूल पोखरण विस्फोट, सुचना औद्योगिकी में भारतीयों का योगदान आदि के कारण भारतीय समाज का जीवनमूल्य, जीवनशैली में बहुत बदलाव आया।

इसी कालखंड में एशियन टाइगर्स का उभार और क्षय भी हुआ। जापान के विदेशी मुद्रा भण्डार का भी बुलबुला फूटा। अमेरिका मे दुनिया का दादा बनने की इच्छा पर सितम्बर 11, 2001 को विश्व व्यापार केंद्र न्यूयार्क पर हवाई जहाज टकराने की आतंकवादी हमला हो गया। 2005 के बाद रूस, अमेरिका, चीन के अलावा भारत और ब्राजील भी अपनी-अपनी ताकत से उभरने लगे। भारत की मेधा, अंदरूनी समाजिकता कहा काम आई। ब्राजील के हक़ मे वहाँ भूमि, जनसंख्या अनुपात पक्ष मे था।

पूरी दुनिया मे तेजी से एकाधिपत्य की ताकतें बढ़ी। अमीर-गरीब की खाई तेजी से चौड़ी हुई। पुरे विश्व मे उपभोग की होड़ मच गई। फलतः पूरी दुनिया मे प्रकृति विध्वंस बेतहाशा बढा। कमजोर वर्गों पर अत्याचार बढ़ें। हिंसा, तनाव, पलायन बढ़ने लगा। जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, अलनिनो इफेक्ट, ग्रीन हाउस इफ़ेक्ट, टाबिना टैक्स आदि शब्दावली आम होने लगी। एक तरह की किंकर्तव्यमूढ़ता, हिंसा, तनाव, अवसाद के लक्षण बढ़ने लगे।

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