नतमस्तक होना एक दादा का
प्रसंगवश
स्तम्भ: पहली बार कल जब पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कोरोना महामारी को लेकर डोनाल्ड ट्रंप की खबर लेनी शुरू की तो पूरी दुनिया ने उनके तेवरों को ध्यान से मापा और ऐसा क्यों न होता। आखिर पूरी दुनिया के और खासकर अमेरिका के लोेग दो बार राष्ट्रपति रहे ओबामा को बहुत गंभीरता से लेते हैं और दिल से चाहते हैं।
वर्तमान राष्ट्रपति ट्रंप, जिनके पास बेशुमार दौलत है, ऐशो-आराम के अनगिनत साधन हैं, पारे की तरह फिसलते व्यवहार के लिए जाने जाते हैं। अब जबकि छह महीने बाद होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव में उन्हें अपनी असलियत पता लगेगी, उनके सिंहासन का अभी से हिलना-डुलना क्लाइमैक्स की तरह बढ़़ती प्रक्रिया की एकदम स्वाभाविक परिणति है।
चीन के वुहान में पहली बार दिसम्बर के प्रारम्भ में कोरोना का प्रकोप प्रकट हुआ और कोई डेढ़ महीने में उसने अमरीकी धरती पर 21 जनवरी को पहली दस्तक दी। वुहान से यूरोप और अटलांटिक महासागर को पार करते हुए हजारों मील दूर पहुॅचने में उसे बहुत मेहनत नहीं करनी पड़ी। अटलांटिक या अंध महासागर उस विशाल जलराशि का नाम है जो यूरोप और अफ्रीकी महाद्वीपों को नई दुनिया से अलग करती है।
यह महासागर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा महासागर है- पूरी पृथ्वी का पाॅचवां यानी 20 प्रतिशत हिस्सा उसके कब्जे में है। उसका कुल क्षेत्रफल 10 करोड़ 65 लाख वर्ग किलोमीटर है और उसकी लम्बाई थोड़ी न बहुत 12810 मील है। उसकी एक जगह अधिकतम गहराई 28614 फीट है यानी उसमें अमेरिका के कई राज्य एक साथ समा सकते हैं। यूरोप के किसी शहर से या लंदन से आप अमेरिका के लिए उड़ें तो पूरे सात घंटे आपको नीचे सिर्फ पानी ही पानी दिखेगा। इस विशालता को लाॅघने में कोरोना माई को ज्यादा दापसीना नहीं बहाना पड़ा।
अमेरिका में कोरोना का पहला केस 21 जनवरी को तब सामने आया था जब 34-35 साल का एक अमरीकी यात्री वाशिंगटन से चीन के वुहान शहर जाकर लौटा था। उसके दो दिन बाद 23 जनवरी को चीनी प्रशासन ने वुहान में सख्त लाॅकडाउन लागू किया और पूरी दुनिया ने इस बात पर अंगुली उठाई कि आखिर उसने इसमें इतनी देर क्यों की। अमेरिका आज भी इसकी जाॅच करा रहा है कि क्या इसके पीछे चीन का कोई षड्यंत्र था। ट्रंप के साथ इस तरह के तांत्रम हमेशा से हमअंग रहे हैं।
जब 2016 में वे चुनाव लड़े तो उन पर आरोप लगा था कि रूस की खुफिया एजेंसियाॅ उन्हें जिताने में हमसफर थीं। ट्रंप इन आरोपों से लम्बे समय तक घिरे रहे हैं और अमेरिकी मीडिया के एक बड़े हिस्से ने उन्हें इसके लिए कभी माफ नहीं किया। अब बराक ओबामा ने कोरोना का सामने करने में उनकी भूलचूक को लेकर उनकी कड़ी आलोचना की है।
उन्होंने कहा है कि ट्रंप जिस तरह महामारी से निपट रहे हैं, वह पूर्ण अराजकता भरा तरीका है। इस आलोचना के साथ ही उन्होंने अगले राष्ट्रपति चुनाव में उनके उपराष्ट्रपति रहे जो. बिडेन को समर्थन देने की अपील की है जो हिलेरी क्लिंटन के बाद किसी बड़े नेता की दूसरी अपील है और ट्रंप की उस कार्यशैली को रेखांकित करती है जिसके तहत वे कभी चीन को धमकी देते हैं, कभी ईरान को, कभी उत्तर कोरिया को तो कभी रूस तक को।
जब कोरोना महामारी ने अटलांटिक को पार कर अमेरिकी धरती पर अपनी धमक डाली तो ट्रंप भौचक्क रह गए थे। दुनिया का सबसे शक्तिशाली नेता जो अपने को सबका दादा कहता है, समझ नहीं पा रहा था कि क्या करें।
दरअसल वे बुरी तरह घबरा गए और इधर-उधर दिशाहीन होकर हाथ पैर मारने लगे। फिर उन्होंने असली बात कह दी। वे बोलेः कोई दुश्मन ऐसा होता जो सामने मौजूद होता तो हम बातों बातों में उसे निपटा देते पर यह तो अदृश्य शत्रु है। यह तो ऐसा एनीमी है जो दिखाई नहीं देता, उससे कैसे निपटें?
पूरी दुनिया के तमाम बड़े-बड़े मुल्कों को एक बटन दबाकर नष्ट करने की क्षमता रखने वाले ट्रंप तरकशविहीन हो गए और एक के बाद एक होने वाली सैकड़ों अमेरिकियों की मौतों की गिनती करने के सिवाय कुछ नहीं कर पाए। देखते देखते पूरा न्यूयार्क शहर उजड़ गया। बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं से आसमान को बींथ कर रखने वाले न्यूयार्क शहर में मृतकों को दफनाने की जगह नहीं बची और पार्कों को कब्रगाह बनाना पड़ा।
तब से पहले कोई सोच भी नहीं सकता था कि दुनिया के किसी भी कोने में एक अमेरिकी की भी मौत पर भौंहें चढ़ा लेने वाला अमरीका बेबस था, लाचार था, दुश्मन के सामने शस्त्रविहीन होकर हाथ—पैर फुलाए खड़ा था। ट्रंप ने राज्यों को उनके हाल पर छोड़ दिया और जीवन-मृत्यु के तांडव से उन्हें ही जूझने को कह दिया। वे अपने पूर्ववर्तियों जैसा भी कुछ नहीं कर पाए।
11 सितम्बर 2001 को हुए हवाई हमलों के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने कांग्रेस से अनुरोध किया था कि ‘होमलैंड सिक्यूरिटी’ नाम का अलग विभाग बनाया जाय। राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने भी भीषण मंदी के समय कड़े संघीय उपाय किए थे। ट्रंप ने इससे उल्टे विभिन्न राज्यों द्वारा लगाए गए लाॅकडाउन को समर्थन देने तक से मना कर दिया।
नतीजा सामने था। जितनी मौतें यूरोप में कुल मिलाकर हुईं, उनसे ज्यादा अकेले अमेरिका में हो गईं। अब ट्रंप कह रहे हैें कि एक लाख लोग मर सकते हैं। अमेरिका को पूरी दुनिया समझने वाले अमेरिकी लोग भौचक्क हैं। चार करोड़ लोगों की नौकरियाॅ चली गई हैं और सामान्य हालात कब लौटेंगे, कोई नहीं जानता।
और अंत में, बराक ओबामा उस अश्वेत नेता मार्टिन लूथर किंग के उत्तराधिकारी माने जाते हैं जिसकी नस-नस में राष्ट्रवाद और दबे-कुचलों के लिए प्यार भरा था। स्व. लूथर किंग का एक जुमला सुनिए।
उन्होंने एक बार कहा था, ‘मैं लीडर हूॅ इसलिए मैं जनता के पीछे पीछे चलूॅगा’। क्या मेरे देसी नेताओ आप सुन रहे हो?