कनाडा खुलेआम दे रहा है भारत विरोधी गतिविधियों का समर्थन, अलबर्टा में खालिस्तानियों को पुलिस और मेयर ने किया संबोधित
नई दिल्ली: कनाडा में एक बार फिर से भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने का मामला सामने आया है। दरअसल कनाडा की पुलिस और प्रशासन अब खुले तौर पर उन लोगों का पक्षधर हो चला है जो भारत के खिलाफ झूठा प्रोपेगैंडा चला रहे हैं। हाल ही में कनाडा के कैलगरी, अलबर्टा में एक धार्मिक समारोह के आयोजन में ऐसे पोस्टर प्रदर्शित किए गए जिनमें भारत पर हत्याओं का आरोप लगाया गया था और खालिस्तानी आतंकवादियों के नाम और चित्र दिखाए गए थे। इस समारोह में 1985 में एयर इंडिया बमबारी के मास्टरमाइंड आतंकी तलविंदर सिंह परमार को भी बतौर शहीद सम्मानित किया गया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक समारोह में कनाडाई पुलिस के अधिकारियों और कैलगरी के मेयर ने भी अपने विचार साझा किए।
पुलिस के अधिकारी और मेयर के भाषण पर सवाल
इस समारोह के आयोजन के बाद कनाडा के नागरिकों में एक नई बहस शुरू हो गई है। सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने समारोह में कनाडाई पुलिस के अधिकारी और मेयर के भाषण पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने लिखा है कि दोनों का खालिस्तानी समर्थकों को समर्थन देने का औचित्य ही क्या है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक समारोह का आयोजन आस्था के उत्सव के रूप में किया गया था, लेकिन इसने एक राजनीतिक रुख अपना लिया था। समारोह में आतंकी तलविंदर सिंह परमार जमकर महिमामंडन किया और इसका सरकारी नुमाइंदों ने खुलकर समर्थन किया। भारत पहले ही कनाडा को चरमपंथ, कट्टरपंथ और हिंसा को पॉलिटिकल स्पेस देने पर फटकार लगा चुका है। जानकारों का कहना है कि कनज्ञउा में वोट बैंक की राजनीति को लेकर ट्रूडो सरकार खालिस्तानी चरमपंथियों को खुश करने में लगी हुई है।
आतंकी तलविंदर को खालिस्तानी मानते हैं नाायक
गौरतलब है कि कनाडा में खालिस्तानी समर्थक आतंकी तलविंदर सिंह की अपने गुरुद्वारों में एक नायक के तौर पर मानते हैं। हालांकि हकीकत यह है कि यह आतंकी एयर इंडिया कनिष्क बम ब्लास्ट में 329 लोगों की मौत का जिम्मेदार है। साल 1982 में जस्टिन ट्रूडो के पिता और तत्कालीन कनाडाई प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो ने भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से किए गए इसी खालिस्तानी आतंकवादी तलविंदर सिंह परमार के प्रत्यर्पण के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था। कनाडाई पुलिस को संदेह था कि परमार कनिष्क हमले के पीछे का मास्टरमाइंड था, लेकिन बाद में उसके खिलाफ आरोप हटा दिए गए थे। खालिस्तान आंदोलन की वकालत करने वाले परमार की बाद में 1992 में पंजाब पुलिस के साथ मुठभेड़ में मौत हो गई थी।