अन्तर्राष्ट्रीयदस्तक-विशेष

म्यांमार में तनाव के बादल भारतीय नीति की परीक्षा

विवेक ओझा

म्यांमार का सत्ताधारी दल मिलिट्री जुंटा इस समय देश में गंभीर मुश्किलों का सामना कर रहा है। कई फ्रंट से म्यांमार र्के हिंसक नृजातीय उग्रवादी समूहों और विद्रोही गुटों ने म्यांमार की सैन्य सरकार की सेना के जवानो और उनके ठिकानों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। एथनिक माइनॉरिटी ग्रुप्स के विद्रोहियों (करेन, काचिन, अराकान) ने एक एलायंस तैयार कर म्यांमार की वर्तमान सैन्य सरकार को नेस्तनाबूत करने के लिए पूरा जोर लगा दिया है और इस कड़ी में लोकतंत्र समर्थक लड़ाकों के साथ गठजोड़ भी कर लिया है। इन सभी का उद्देश्य अब जुंटा रूल को खत्म कर अपना नियंत्रण स्थापित करना है। इन नृजातीय विद्रोही समूहों ने पिछले माह म्यांमार के उत्तरी शान राज्य के मिलिट्री पोस्ट पर भीषण हमले किए थे, इस प्रांत की सीमा चीन से लगती है। इस हमले के दौरान सरकार विद्रोही गुटों ने कुछ क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में भी ले लिया था। इसके लिए इन विद्रोहियों ने ‘ऑपरेशन 1027’ के तहत हिंसक कार्यवाही की थी। थ्री ब्रदरहुड एलायंस जो मिलिट्री जुंटा के खिलार्फ हिंसक हमलों के लिए जिम्मेदार है का कहना है कि वह आत्म सुरक्षा और आत्म निर्धारण अधिकार के तहत म्यांमार सेना के हवाई हमलों का प्रतिकार करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसका कहना है कि दमनकारी सैन्य तानाशाही को म्यांमार से खत्म करना इसका मुख्य उद्देश्य है।

इस तरह भारत और म्यांमार के संबंध एक बार फिर तनावपूर्ण स्थिति में दिख रहे हैं। म्यांमार में जिस तरह से तनाव और संघर्ष की स्थिति बढ़ी हुई है, उसको देखते हुए भारत को अपने नागरिकों के लिए ट्रैवल एडवाइजरी जारी करके कहना पड़ा है कि वे म्यांमार की यात्रा करने से बचें। जो भारतीय म्यांमार में पहले से ही रह रहे हैं, उन्हें सावधानी बरतने की भी सलाह भारत सरकार की तरफ से दी गयी है। भारत के विदेश मंत्रालय ने एक स्टेटमेंट जारी करते हुए इन बातों को स्पष्ट किया है। हमारे पड़ोसी देश म्यांमार को कभी शासन करना नहीं आया। सेना का खेल खेलते हुए म्यांमार की सैन्य सरकार ने लोकतांत्रिक मूल्यों का गला घोंटने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। म्यांमार की सैन्य सरकार और दुनिया के और कई सैन्य सरकारों को यह पता नहीं कि जब लोकतंत्र और लोकतांत्रिक ताकतें बदला लेना शुरू करती हैं तो तानाशाही की बुनियाद हिल जाती है। लोकतंत्र से मधुर कोई तान नहीं है और जनता से बड़ा कोई शाह नहीं है। म्यांमार के एथनिक विद्रोही समूहों ने प्रो. डेमोक्रेसी फोर्सेज के साथ भी एलायंस बनाकर मिलिट्री जुंटा की नींद उड़ा दी है। म्यांमार को सोचना चाहिए कि तालिबान ने कैसे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। अगर म्यांमार की सैन्य सरकार की नीतियों के चलते एथनिक टेररिज्म को बढ़ावा मिलता है और अफगानिस्तान जैसा कुछ होता है तो उसका जिम्मेदार कौन होगा?

जब एथनिक माइनॉरिटी समुदायों की मांग को अनसुना किया जाता है तो वहीं परिणाम आता है जो आज म्यांमार में देखा जा रहा है। गृहयुद्ध की स्थिति बन चुकी है। मिलिट्री जुंटा यानी म्यांमार की सत्ताधारी सैन्य सरकार के सैनिक वहां के एथनिक इंसर्जेंट ग्रुप्स र्के ंहसक हमलों के चलते म्यांमार से भारत की सीमा में मिजोरम आ गए। करीब 80 ऐसे म्यांमारी सैनिक जान बचाकर भारत के इलाके में आ गए। जब आन सान सूकी की लोकतांत्रिक सरकार का तख्ता पलट कर मिलिट्री जुंटा ने सत्ता संभाली तो उसे लगा कि पॉवर से हर चीज का दमन किया जा सकता है लेकिन उसे यह नहीं पता था कि एथनिक आइडेंटिटी क्राइसिस झेलने वाले मिलिट्री जुंटा का ही पत्ता साफ करने में एक गंभीर फोर्स साबित होने लगेंगे।

म्यांमार का नृजातीय संघर्ष चिंता का विषय
म्यांमार का वर्तमान नृजातीय संघर्ष भारत के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि हाल ही में म्यांमार के नेशनल यूनिटी कंसल्टेटिव काउंसिल के काउंसलर ने भारत पर आरोप लगाते हुए कहा कि भारत को म्यांमार की मिलिट्री जुंटा के प्रति वन साइडेड पॉलिसी रखते हुए उससे ही तालमेल बिठाने का काम नहीं करना चाहिए। भारत को म्यांमार के एथनिक माइनॉरिटी के खिलाफ हो रहे अत्याचारों के खिलाफ भी स्पष्ट स्टैंड रखना चाहिए जिससे सैन्य सरकार पर दबाव पड़ें। दरअसल नेशनल यूनिटी कंसल्टेटिव काउंसिल निर्वासित नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट का सलाहकारी निकाय है। फरवरी, 2021 में म्यांमार की लोकतांत्रिक सरकार को वहां की सेना द्वारा उखाड़ फेंकने के बाद ही इस काउंसिल का गठन हुआ था। इस घटना के बाद भारत सरकार ने सैन्य सरकार के स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन काउंसिल से सहयोगपूर्ण संबंध बनाए रखने पर ही बल दिया है और इसके पीछे भारत को दो बातों ने प्रभावित किया है। पहला, पूर्वोत्तर भारत की सुरक्षा का मुद्दा और दूसरा, चीन म्यांमार गठजोड़ में वृद्धि का भारत के हितों पर संभावित प्रभाव।

दरअसल, भारत का सोचना यह भी रहा है कि अगर किसी देश का प्रमुख नेतृत्व सहयोगी रुख नहीं अपनाता है तो अवैध प्रव्रजन (र्रोंहग्या, कुकी-चिन, जो कम्युनिटी) को बढ़ावा मिल सकता है, पूर्वोत्तर भारत में विदेशी षड्यंत्र, अलगाववादी ताकतों के बीच गठजोड़ को भी बढ़ावा मिल सकता है। इसलिए सैन्य सरकार को विश्वास में लेने को भारत ने जरूरी समझा। वहीं दूसरी तरह सैन्य सरकार ने म्यांमार के नृजातीय अल्पसंख्यक समूहों के मानवाधिकार, मौलिक अधिकार का घोर उल्लंघन किया, प्रेस और मीडिया के अधिकारों पर पाबंदी लगाई, एथनिक माइनॉरिटी के विरोध प्रदर्शन को बुरी तरह कुचला, नृजातीय समुदायों को उनके सभी बुनियादी अधिकारों से वंचित करने की कोशिश की जिसके चलते म्यांमार में एथनिक टेररिज्म को बढ़ावा मिला। इसी के चलते करेन विद्रोहियों ने करेन नेशनल लिबरेशन आर्मी का गठन किया, करेन नेशनल यूनियन बना। इसी प्रकार काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी, काचिन इंडिपेंडेंस आर्गेनाइजेशन भी म्यांमार की सैन्य सरकार से लड़ रही है। इसके विद्रोहियों ने पूर्वोत्तर भारत के अलगाववादी, उग्रवादी समूहों को कई अवसरों पर प्रशिक्षण दिया है। उन्हें उत्तरी म्यांमार में शरण देने का भी प्रस्ताव किया है। इससे समझा जा सकता है कि पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद, अलगाववाद और विप्लवकारी (इंसर्जेंसी) की गतिविधियों में म्यांमार की भूमिका कितनी संवेदनशील रही है।

और तो और, अभी हाल में जब से थ्री ब्रदरहुड एलायंस से जुर्ड़े हिंसक एथनिक विद्रोही समूहों ने म्यांमार के सैन्य कर्मियों के मिलिट्री पोस्ट पर हमले करने शुरू किए हैं, तब से भारत की सीमा से लगे हुए ऐसे सैन्य शिविरों से म्यांमार के सैनिक विद्रोहियों से जान बचाकर भारत के भूक्षेत्र में प्रवेश कर गए हैं। म्यांमार के चिन स्टेट जो भारत म्यांमार की अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास स्थित है, वहां तुईबुअल में मिलट्री कैंप को चिन नेशनल डिफेंस फोर्स ने तहस नहस कर दिया। यह फोर्स पीडीएफ से जुड़ा हुआ एक लड़ाका ग्रुप है। जब इस विद्रोही समूह का हमला हुआ तब म्यांमार के 29 सैनिक 16 नवंबर को मिजोरम में प्रवेश कर गए और फिर इन सैनिकों को भारत के प्रतिरक्षा प्राधिकारियों ने मणिपुर के मोरेह एयरलिफ्ट किया। भारत म्यांमार बॉर्डर पर विद्रोहियों के लगातार हमले के बाद से 74 से अधिक म्यांमारी सैनिक पूर्वोत्तर भारत में आ चुके हैं। अब मुद्दा यह है कि भारत सरकार इन सैनिकों के साथ कैसा बर्ताव करती है उस पर म्यांमार के विद्रोही गुटों की निगाह है। अगर उन्हें कहीं से यह लगता है कि भारत सैनिकों की सुरक्षा के लिए ज्यादा संवेदनशील है तो म्यांमार के विद्रोही गुट भड़क सकते हैं और वे पूर्वोत्तर के अलगावादी गुटों के साथ मिलकर भारत विरोधी षड्यंत्र कर सकते हैं, ड्रग्स तस्करी, हथियार तस्करी को बढ़ा सकते हैं, ऐसे में भारत की आंतरिक सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।

उत्तर पूर्वी भारत की सुरक्षा और म्यांमार
नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (खापलांग) जो नागालैंड के सबर्से ंहसक अलगाववादी और उग्रवादी संगठनों में एक है, ने म्यांमार में रहने वाले विद्रोहियों और उत्तर पूर्वी भारत में रहने वाले विद्रोहियों के साथ मिलकर भारत सरकार और उत्तर-पूर्वी राज्यों के सुरक्षा के समक्ष बड़ी चुनौती उत्पन्न की। इस गुट ने म्यांमार के टागा क्षेत्र में भारत विरोधी अभियानों को संपन्न करने का काम किया है। म्यांमार की धरती पर इनके टेरर और ट्र्रेंनग कैंप रहे हैं। श्वेलो कैंप इनमें से प्रमुख रहा है। नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (खापलांग) ने म्यांमार के अराकान साल्वेशन आर्मी के विद्रोहियों और काचिन पृथकतावादियों के साथ मिलकर म्यांमार में भारत की ऊर्जा परियोजनाओं और विकास परियोजनाओं को निशाना बनाने की योजना बनाई। यह विद्रोही कलादान मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्टेशन प्रोजेक्ट और अन्य संयंत्रों को नष्ट करने की रणनीति बनाते पाए गए। इन सबसे निपटने के लिए म्यांमार और भारत की संयुक्त सेना ने फरवरी-मार्च 2019 में सर्जिकल स्ट्राइक- 3 जिसे ऑपरेशन सनराइज भी नाम दिया गया, के माध्यम से नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (खापलांग) नगा विद्रोही समूहों और अराकान साल्वेशन आर्मी के टागा स्थित आतंकी शिविरों को नष्ट कर दिया।

नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड खापलांग ने अपने कैडरों को टागा में कैम्प खोलने और म्यांमार की सेना के खिलाफ जवाबी कार्यवाही के आदेश भी दिए हैं। उन्होंने म्यांमार के कोकी क्षेत्र में भी कैम्प खोलने का निर्णय किया । इन सब कामों को नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (खापलांग) कई उत्तर पूर्वी विद्रोही संगठनों र्के ंलक के साथ अंजाम दे रहा है, जिसमें उल्फा (आई) एनडीएफबी और केएलओ, पीएलए, एनएलएफटी शामिल हैं। विभिन्न एनएससीएन समूह भारतीय सुरक्षा बलों पर हमला करने की साजिश रचते रहे हैं जिसको नाकाम किया जाना जरूरी है। इसी क्रम में म्यांमार के र्सैंगग क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर एनएससीएन (के) और अन्य समूहों की तलाश में विशेष म्यांमार सेना इकाइयां तलाशी अभियान चलाने में लगी थीं। विद्रोही समूह अराकान सेना मिजोरम के लोंग्थलाई जिले के कई इलाकों में शिविर लगाए हुए है, जो कलादान परियोजना के लिए खतरा हैंं। कलादान मल्टी-मॉडल परिवहन परियोजना को भारत के दक्षिण-पूर्व एशिया के प्रवेश द्वार के रूप में देखा जा रहा है। इन कारणों से भारत को म्यांमार के साथ संबंधों को सहयोगपूर्ण बनाने की जरूरत रही है।

नशीले पदार्थों की तस्करी और भारत म्यांमार संबंध
एक और प्रमुख मुद्दा जो भारत और म्यांमार के द्विपक्षीय संबंधों में खलल डालता रहा है वह है नशीले पदार्थों की तस्करी का मुद्दा। चूंकि म्यांमार नार्कोटिक ड्रग्स की तस्करी वाले क्षेत्र स्वर्णिम त्रिभुज का हिस्सा है और यह चार उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर और मिजोरम से सीमा साझा करता है, इसलिए म्यांमार के साथ भारत के संबंध इस विषय पर बहुत संवेदनशील हो जाते हैं। मणिपुर के उखरूल, चंदेल, चूरचंद्रपुर, सेनापति और थामेंगलांग जिलों में अवैध अफीम की खेती और कोकीन, हेरोइन, एमफेटामाइन ड्रग्स की तस्करी बड़े पैमाने पर होती है। ड्रग मुक्त पूर्वोत्तर और म्यांमार दोनों देशों की साझी जिम्मेदारी है। अमेरिकी ड्रग एनफोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार, म्यांमार दक्षिण पूर्वी एशिया का 80 प्रतिशत हेरोइन उत्पादन करता है और वैश्विक आपूर्ति के 60 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है। साथ ही कोकीन की तस्करी के लिए भी यह जिम्मेदार है।

चीन और म्यांमार के ड्रगलॉड्र्स को एक दूसरे का सहयोग समर्थन समय-समय पर मिलता रहा है लेकिन सर्वाधिर्क ंचता की बात तो यह है कि भारत म्यांमार की सीमा पर कई हेरोइन लैब्स सक्रिय हैं। मिज़ोरम में म्यांमार के रास्ते से एंफेटामाइन, याबा टैबलेट्स, क्रेजी ड्रग्स, पार्टी ड्रग्स की तस्करी और अवैध खरीद फरोख्त भी काफी बढ़ चुकी है जो उत्तर पूर्वी भारत के युवा मानव संसाधन को क्षति पहुंचा रही है। नार्कोटिक ड्रग्स के इम्फाल, आइजोल, कोहिमा, सिलचर, दीमापुर में पहुंचने के बाद इसे कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, चेन्नई और बंगलुरू को डिस्पैच कर दिया जाता है। हाल के समय में भारत म्यांमार सीमा पर स्थित मोरेह पर करोड़ों रूपए मूल्य के अवैध ड्रग्स को सुरक्षा बलों द्वारा जब्त किया गया है। ऐसे कई उदाहरण अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों के संबध में आए दिन मिलते रहते हैं जिससे इस व्यापार की बढ़ती विभीषिका का पता चलता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि ड्रग तस्करी दोनों देशों के लिए एक गंभीर मसला इसलिए है क्योंकि इससे आतंक, उग्रवादी, विप्लवकारी, पृथकतावादी गतिविधियों और उन्हें करने वाले समूहों का वित्त पोषण संभव हो जाता है, इसलिए यह दोनों देशों के लिए आंतरिक सुरक्षा के साथ-साथ प्रादेशिक अखंडता का भी मुद्दा है जिसके समाधान के लिए भारत और म्यांमार ने अपनी प्रतिबद्धता भी प्रदर्शित कर रखा है। इसके अलावा नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में सक्रिय उग्रवादी अलगाववादी समूहों को भी चीन से वित्तीय सहायता और हथियार आपूर्ति के रूप में सहायता मिल रही है। ऐसे भारत विरोधी नेटवक्र्स को तोड़ने में म्यांमार का सहयोग अपेक्षित है।

Related Articles

Back to top button