उत्तराखंड

सीएम धामी पहुंचे चमोली, पोखरी में किया कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल स्मृति मेले का शुभारंभ

देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी गुरुवार को चमोली पहुंचे। यहां बीजेपी कार्यकर्ताओं ने उनका जोरदार स्वागत किया। सीएम धामी ने चमोली के नागनाथ पोखरी में हिमवंत कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल खादी ग्राम उद्योग एवं पर्यटन शरदोत्सव मेले का शुभारंभ किया। इस दौरान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट भी उनके साथ मौजूद रहे।

जन कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल का जन्म रुद्रप्रयाग जिले के ग्राम मालकोटी, पट्टी तल्ला नागपुर में 20 अगस्त 1919 को हुआ था। उन्होंने मात्र 28 साल के जीवन में एक हजार अनमोल कविताएं, 24 कहानियां, एकांकी और बाल साहित्य का अनमोल खजाना हिंदी साहित्य को दिया। मृत्यु पर आत्मीय ढंग और विस्तार से लिखने वाले चंद्र कुंवर बर्त्वाल हिंदी के पहले कवि हैं।

चंद्र कुंवर बर्त्वाल 28 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए थे। लेकिन इस छोटी सी उम्र में भी वह देश-दुनिया को सुंदर साहित्य दे गए। चंद्र कुंवर बर्त्वाल की कविताएं मानवता को समर्पित थीं। बेशक वह प्रकृति के कवि पहले थे। शूरवीर ने कहा कि बर्त्वाल हिंदी साहित्य के एक मात्र ऐसे कवि थे जिन्होंने हिमालय, प्रकृति व पर्यावरण के साथ-साथ मनुष्य की सुंदर भावनाओं और संवेदनाओं को अपनी कविताओं में पिरोया। उनकी कविताएं हिमालय व प्रकृति प्रेम की साक्षी रही हैं।

‘मैं न चाहता युग-युग तक पृथ्वी पर जीना, पर उतना जी लूं जितना जीना सुंदर हो। मैं न चाहता जीवन भर मधुरस ही पीना, पर उतना पी लूं जिससे मधुमय अंतर हो’। ये पंक्तियां हैं हिंदी के कालिदास के रूप में जाने माने प्रकृति के चहेते कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल की। विश्व कवि कालिदास को अपना गुरु मानने वाले चंद्र कुंवर बर्त्वाल ने चमोली के पोखरी और रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि में अध्यापन भी किया था।

चंद्र कुंवर बर्त्वाल को प्रकृति प्रेमी कवि माना जाता है। उनकी कविताओं में हिमालय, झरनों, नदियों, फूलों, खेतों, बसंत का वर्णन तो होता ही था। लेकिन उपनिवेशवाद का विरोध भी दिखता था। आज उनके काव्य पर कई छात्र पीएचडी कर रहे हैं। कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल प्रमुख कविताओं में विराट ज्योति, कंकड़-पत्थर, पयस्विनी, काफल पाकू, जीतू, मेघ नंदिनी हैं। युवावस्था में ही वह टीबी के शिकार हो गए थे। इसके चलते उन्हें पांवलिया के जंगल में बने घर में एकाकी जीवन व्यतीत करना पड़ा था। मृत्यु के सामने खड़े कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल ने 14 सितंबर, 1947 को हिंदी साहित्य को बेहद समृद्ध खजाना देकर दुनिया को अलविदा कह दिया था।

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