टॉप न्यूज़राज्यराष्ट्रीय

बेंगलुरु पर पेयजल किल्लत की भयंकर मार, देश के तीसरे बड़े शहर से पलायन को मजबूर होते लोग

नई दिल्ली: जल ही जीवन है या पानी बचाओ, भविष्य बनाओ जैसे अनगिनत स्लोगन हैं जिनके प्रति देश के उन शहरों के लोग कतई गंभीर नहीं हैं, जिन्हें सुबह शाम जरूरत से ज्यादा या पर्याप्त मात्रा में पानी मयस्सर हो रहा है। दरअसल हम यहां बात करने जा रहे हैं कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु की जहां लोग भयंकर पेयजल किल्लत की मार झेल रहे हैं और उन्हें शायद पानी बचाने के उक्त स्लोगन अब अच्छी तरह से समझ आने लगे हैं। बेंगलुरु भारत का तीसरा सबसे बड़ा शहर है। करीब 84 लाख आबादी वाले शहर में पेयजल संकट इतना गहरा गया है कि यहां के बाशिंदे अब शहर छोड़ कर कहीं ओर बसने पर विचार करने लगे हैं। यही नहीं बल्कि भविष्य में भी पानी की आपूर्ति की चिंता में अब बेंगलुरु की रियल एस्टेट मार्केट में निवेश करने के बारे में पुनर्विचार करने को मजबूर हो चले हैं।

बेंगलुरु में सबसे ज्यादा वे लोग परेशान है जो किराए के मकानों या अपार्टमेंट्स में किराएदार हैं। यह वह आबादी है जो जिनके पास शहर छोड़ने का भी विकल्प नहीं है। पेयजल संकट के कारण इनकी हालत ऐसी हो चली है कि वे पानी से जुड़ी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में भी असमर्थ हैं। घर की किराए की मोटी रकम अदा करने के बावजूद लोगों शौचालय के लिए पर्याप्त पानी तक नहीं मिल रहा है। दक्षिणी बेंगलुरु के उत्तरहल्ली के एक निवासी के हवाले से एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि वह पहले बेंगलुरु में संपत्ति खरीदने पर विचार कर रहा था, लेकिन पानी की कमी को देखते हुए उसने अब अपना इरादा ही बदल दिया है।

शहर छोड़ने के लिए “वर्क फॉर्म होम” एक विकल्प
बताया जा रहा है कि शहर के करीब 15 साल ज्यादातर बोरवेल सूख चुके हैं। पानी हासिल करने के लिए टैंकरों पर उमड़ती भीड़ सामुदायिक तनाव को बढ़ावा दे रही हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए दूसरे शहर या राज्य से आए तकनीकी पेशेवर अब अपने संस्थानों से “वर्क फॉर्म होम” (डब्ल्यू.एफ.एच.) की मांग करने लगे हैं। उनका मानना है कि यह व्यवस्था जल संरक्षण प्रयासों में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। तकनीकी विशेषज्ञों का तर्क है कि डब्ल्यू.एफ.एच. की व्यवस्था कर्मचारियों को अपने गृहनगर में स्थानांतरित होने की अनुमति देगी, जिससे शहर के जल संसाधनों पर दबाव कम होगा।

पेयजल किल्लत के कारण बेंगलुरु में पानी का कारोबार तेज हो गया है। कई बार तो लोगों को पानी की मजबूरन भारी भरकम कीमत चुकानी पड़ रही है। बेंगलुरु के पूर्वी उपनगर मराठाहल्ली में एक बहुराष्ट्रीय निगम (एमएनसी) के लिए काम करने वाले एक अन्य तकनीकी विशेषज्ञ दीपक राघव के हवाले से मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्हें हर हफ्ते 6,000 लीटर पानी के लिए 1,500 रुपये का भारी भुगतान करना पड़ता है क्योंकि उनके किराए के घर में ट्यूबवेल सूख गया है।

याद आने लगे पानी बचाओ के नारे
इस बीच बेंगलुरु-होसुर रोड पर बेगुर में नोबल रेजीडेंसी के निवासियों ने हाल ही “पानी का दुरुपयोग बंद करो, भावी पीढ़ियों के लिए पानी बचाओ” नारे के साथ एक ‘वॉकथॉन’ का आयोजन किया। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्हें भविष्य में भी पानी की किल्लत का अहसास हो चला है। इस दौरान ब्यूटीफुल बेगुर एसोसिएशन के नेता प्रकाश ने पानी की कमी को दूर करने के लिए बोरवेल पर सरकार की निर्भरता के बारे में संदेह व्यक्त किया।

कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी. के. शिव कुमार ने पेयजल किल्लत के बीच दावा किया कि शहर में पानी के व्यापार को रोक दिया गया है। उन्होंने कहा कि शहर में 16,000 बोरवेलों में से 7,000 गैर-कार्यात्मक हैं। इस संकट से निपटने और सभी निवासियों के लिए पानी की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए बेंगलुरु जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड, ब्रुहट बेंगलुरु महानगर पालिका और नोडल अधिकारियों सहित विभिन्न प्राधिकरणों की ओर से ठोस प्रयास चल रहे हैं। इसके अलावा स्लम क्षेत्रों में मुफ्त पानी उपलब्ध कराने के प्रयास किए जा रहे हैं।

Related Articles

Back to top button