नई दिल्ली: छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा सहित विभिन्न नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सली, महिलाओं और बच्चों को अपने कैडर के तौर पर भर्ती करने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल पा रही है। अधिकारियों का कहना है कि सुरक्षा बल और खुफिया एजेंसियों के बेहतर समन्वय और ग्रामीण इलाकों में आदिवासी समुदाय तक बेहतर पहुंच की वजह से नक्सल गुटों का अभियान धरा रह गया है। सुकमा और बीजापुर को छोड़कर सुरक्षा बल ज्यादातर कोर इलाकों में अपना प्रभुत्व जमाने में सफल हुए हैं।
सुरक्षा बल से जुड़े कर्मियों की ऑपरेशन के दौरान सबसे ज्यादा मौत सुकमा व बीजापुर के इलाकों में ही हुई है। अन्य इलाकों में सुरक्षाबल अपेक्षाकृत मज़बूत स्थिति में हैं। अधिकारियों के मुताबिक कुछ वर्षों में कई वरिष्ठ नक्सली नेताओं की सुरक्षाबलों के हाथों मौत और गिरफ्तारी की वजह से नक्सली नेतृत्व के संकट से भी जूझ रहे हैं। हताशा में वे कुछ बड़ी घटनाओं और निर्दोष लोगों की हत्या कर अपना प्रभुत्व जमाने की मुहिम में जुटे हैं। इसके चलते सुरक्षाबलों को हर वक्त सतर्क रहने को कहा गया है।
पकड़ में आए ज्यादातर नक्सली छत्तीसगढ़ से
झारखंड में हाल ही में प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) समूह की केंद्रीय समिति के सदस्य प्रशांत बोस उर्फ किशन दा और उनकी पत्नी शीला मरांडी की गिरफ्तारी हुई। दोनों को खुफिया एजेंसियों और स्थानीय पुलिस की वर्षों की कड़ी मेहनत के कारण गिरफ्तार करना संभव हुआ। हाल के दिनों में पकड़ में आए ओडिशा, महाराष्ट्र, तेलंगाना में सक्रिय ज्यादातर नक्सली छत्तीसगढ़ से थे।
मिलिंद बाबूराव तेलतुम्बडे सहित 26 नक्सली मारे गए
अधिकारियों के मुताबिक हाल में महाराष्ट्र पुलिस ने जिन 26 माओवादी कैडर को मार गिराया, उनमें शीर्ष भगोड़ा मिलिंद बाबूराव तेलतुम्बडे भी शामिल था। अपने उपनाम ‘जीवा’ और ‘दीपक’ के नाम से जाने जाने वाले तेलतुंबडे भाकपा (माओवादी) के केंद्रीय समिति के सदस्य और नवगठित महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ संगम (एमएमसी) का प्रभारी भी था। मिलिंद तेलतुंबडे ने महाराष्ट्र के चंद्रपुर, गोंदिया, गढ़चिरौली, नागपुर और यवतमाल जिलों में एक शक्तिशाली नेटवर्क बनाया था। वह जंगल से शहरी क्षेत्रों की ओर बढ़ रहा था। नक्सली यहां से झारखंड तक एक गलियारा बनाना चाहते थे लेकिन उस योजना में सुरक्षाबलों ने सेंध लगा दी।
कई बड़े नक्सली नेता सुरक्षाबलों के रडार पर
सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर के जंगलों में केंद्रीय समिति के एक अन्य सदस्य अक्कीराजू हरगोपाल उर्फ रामकृष्ण उर्फ आरके की 14 अक्तूबर को मौत हो गई। इसी तरह कई अन्य बड़े नक्सली नेता सुरक्षाबलों के हत्थे चढ़े और कुछ अन्य रडार पर हैं।