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ED ने कांग्रेस को दिया एकजुट होने का मौका, सोनिया गांधी के साथ खड़े दिखे असंतुष्ट नेता

नई दिल्ली : नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ ने पार्टी को एकजुट होने का मौका दे दिया है। करीब दो साल तक पार्टी की मुख्यधारा से दूर रहे असंतुष्ट नेता कांग्रेस नेतृत्व के साथ खड़े दिख रहे हैं। वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा सहित कई दूसरे असंतुष्ट नेता जांच एजेंसियों के खिलाफ पार्टी की लड़ाई में साथ दिखे। वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा ने बुधवार को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ कांग्रेस मुख्यालय में मीडिया को संबोधित किया। आजाद काफी दिन बाद अपने पुराने अंदाज में नजर आए। आजाद ने कहा कि यह एक मामला और एक परिवार से जुडा है। जब एजेंसी राहुल गांधी से पूछताछ कर चुकी है। ऐसे में सोनिया गांधी को बुलाने की क्या जरुरत थी।

पार्टी अध्यक्ष की सेहत का जिक्र करते हुए आजाद ने कहा कि पहले जंग होती थी, तो बादशाह की तरफ से हिदायत होती थी कि महिला और बीमार पर हाथ नहीं उठाना। यह हमारी परंपरा है। ईडी को ध्यान रखना चाहिए कि सोनिया गांधी को बार-बार बुलाना ठीक नहीं है। उनकी सेहत के साथ खेलना अच्छा नहीं है। इस दौरान आनंद शर्मा भी काफी आक्रामक नजर आए। नेशनल हेराल्ड मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के दौरान भी पार्टी ने धरना प्रदर्शन किया था। पर उस वक्त गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा दूर रहे थे। दरअसल, जुलाई 2020 में पार्टी के 23 नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष को पत्र लिखकर कई सवाल उठाए थे। इसके बाद हुए कई विधानसभा चुनाव में भी असंतुष्ट नेता प्रचार से दूर रहे थे।

आजाद के करीबियों का कहना है कि राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ के वक्त उनकी तबीयत ठीक नहीं थी। इसलिए, आजाद जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के खिलाफ धरना प्रदर्शन में हिस्सा नहीं ले पाए थे। दरअसल, असंतुष्ट नेताओं के समूह जी-23 में सबसे जनाधार वाले नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को राहुल गांधी ने अपने पाले में कर लिया। वरिष्ठ नेता मुकुल वासनिक को पार्टी ने राज्यसभा भेज दिया। कपिल सिब्बल ने खुद पार्टी से इस्तीफा दे दिया।

आनंद शर्मा को पार्टी ने हिमाचल प्रदेश चुनाव से संबंधित कई समितियों में जगह दी है। वहीं, पार्टी गुलाम नबी आजाद को जम्मू-कश्मीर के मामलों में तरजीह दे रही है। पार्टी नेतृत्व की तरफ से उठाए गए इन कदमों की वजह से जी-23 लगातार कमजोर होता चला गया। इस समूह में अब कुछ चुनिंदा नेता ही बचे हैं, जो फिलहाल पार्टी में अलग-थलग पड़े हुए हैं।

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